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गांधी लाइब्रेरी : साल 2020 से नहीं हुई खरीदी, पुरानी किताबों से ही पढ़ रहे बच्चे, डिजिटली सेवा भी पांच दिनों से बंद

गांधी लाइब्रेरी : साल 2020 से नहीं हुई खरीदी, पुरानी किताबों से ही पढ़ रहे बच्चे, डिजिटली सेवा भी पांच दिनों से बंद

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gandhi library jabalpur

gandhi library jabalpur

  • अधिकतर बच्चे खुद लेकर आ रहे अपनी किताबें, इंटरनेट बंद होने से डिजिटली पढ़ाई भी है बंद
  • 3 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च करके दिया गया था आधुनिक रूप

gandhi library jabalpur :हर की सबसे पुरानी लाइब्रेरी इन दिनों अपने हाल पर रो रही है। पिछले पांच सालों से यहां एक भी नई किताब की आवक नहीं हुई है और न ही इस ओर जिम्मेदारों ने कोई ध्यान दिया है। नतीजतन यहां पढऩे आने वालों की संख्या कम होती जा रही है। यहीं नहीं बारिश के चलते पिछले करीब पांच दिनों से इंटरनेट सेवा बंद है, जिससे डिजिटली पढ़ाई करने आने वालों को निराश होकर लौटना पड़ रहा है। नई किताबें उपलब्ध न होने से बहुत से स्टूडेंट्स अपने साथ किताबें लेकर लाइब्रेरी पहुंच रहे हैं।

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gandhi library jabalpur :पांच साल से नई किताबें नहीं आईं

जानकारी के अनुसार पिछले पांच सालों से लाइब्रेरी में कोई नई किताब नहीं खरीदी गई है। जबकि किताबों का प्रपोजल कई बार नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारियों को दिया जा चुका है। वर्तमान में जिन किताबों को खरीदने का प्रपोजल दिया गया है, उनमें अंग्रेजी भाषा की 62 और हिन्दी भाषा की 133 किताबें शामिल हैं। इनमें साहित्य, कविता, कहानियां, प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़े विषय शामिल हैं।

gandhi library jabalpur :नेट बंद है तो कैसे हो डिजिटली पढ़ाई

स्मार्ट सिटी द्वारा पांच साल पहले इस लाइब्रेरी को 3 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च कर नया रूप दिया गया था। यहां मौजूद दुर्लभ पुस्तकों को डिजिटलीकरण करने की पहल की गई थी। जिसके तहत करीब 15 हजार किताबें अब डिजिटली उपलबध हैं। जिनमें अधिकतर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों से जुड़े विषयों की किताबें शामिल हैं। लाइब्रेरी प्रभारी के अनुसार पिछले दिनों हुई तेज बारिश के चलते यहां की इंटरनेट सेवा बंद हो गई थी। जिससे डिजिटली उपलब्ध किताबें अभी उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। इंटरनेट सेवा की बहाली के लिए स्मार्ट सिटी को पत्र लिखा गया है, लेकिन अभी तक कोई देखने भी नहीं आया है।

gandhi library jabalpur :140 साल पुराना है इतिहास, आज 40 हजार किताबें मौजूद

टाऊन हॉल स्थित गांधी भवन पुस्तकालय की शुरुआत साल 1885 में हुई थी, तब अंग्रेजों का शासन चलता था। साल 1922 में इसे जबलपुर नगर निगम को सौंप दिया गया। जिसका संचालन तब से निगम ही कर रहा है। 15 हजार किताबों से शुरू हुई लाइब्रेरी में आज 40 हजार से ज्यादा किताबें व दुर्लभ साहित्य सहित कई ऐसे लेख उपलब्ध हैं, जो ऐतिहासिक कहे जाते हैं। साल 1871 में प्रकाशित गजट पत्र भी लाइब्रेरी में उपलब्ध है।

gandhi library jabalpur : फैक्ट फाइल


40 हजार किताबें उपलब्ध हैं। इनमें उपन्यास, कहानियां, साहित्य, कॉम्पटेटिव एग्जाम की किताबें शामिल हैं।
15 हजार डिजिटली उपलब्ध है। इसमें ज्यादातर कंटेंट एग्जाम प्रिपेशन की तैयारियों के लिए जरूरी किताबें हैं।
110 लोग बैठकर पढऩे आते है।
100 लोगों ने डिजिटली सब्सक्रिप्शन ले रखा है।

लाइब्रेरी में पांच सालों से अभी कोई खरीदी नहीं की गई है। हालांकि अंग्रेजी और हिन्दी भाषा की करीब 200 किताबों का प्रपोजल तैयार है, जिसके स्वीकृत होते ही नई किताबें लाइब्रेरी में आ जाएंगी। डिजिटल सेवा इंटरनेट बंद होने से बाधित है। जिसे सुधार के लिए स्मार्ट सिटी को पत्र लिखा गया है। एक दो दिन में जिसके शुरू होने की संभावना है।

  • सागर बोरकर, प्रभारी, गांधी भवन पुस्तकालय