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पितृ पक्ष: 3 अक्टूबर को आ रही अनूठी तिथि, पितरों को दिलाएगी तृप्ति

नर्मदा तीर्थ में विशेष श्राद्ध कर्म करेंगे लोग

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unique and rare tithi of shraddha paksha on 3 october

unique and rare tithi of shraddha paksha on 3 october

जबलपुर । पितृ पक्ष में लोग पितरों को तर्पण कर उन्हें तृप्त कर रहे हैं। तीर्थ स्थल एवं अपने निवास स्थान पर लोग पिंडदान एवं तर्पण कर रहे हैं। ज्योतिर्विदों के अनुसार जिन परिवारों के पितर संतृप्त रहते हैं, वे सुख-समृद्धि और उन्नति का आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष में तिथि के अनुसार श्राद्ध कर्म किया जाता है। इसमें एक दिन मातृ पितरों के लिए विशेष है। इस दिन मातृ पितरों को पिंडदान व तर्पण किया जाता है। जबकि, पितृ मोक्ष अमावस्या को ज्ञात, अज्ञात सभी पितरों को जल तर्पण किया जाता है। विशेषकर मातृ ऋण के उद्धार के लिए नवमी की तिथि सबसे उत्तम है। इस दिन किया गया तर्पण न केवल मातृ दोष को दूर करता है, बल्कि सभी पितरों को तृप्ति प्रदान करता है।

मिलती है संतृप्ति
ज्योतिर्विद जनार्दन शुक्ला के अनुसार मातृ नवमीं के दिन तर्पण करने से मात़ृ ऋण से मुक्ति मिलती है। 3 अक्टूबर को मातृ नवमीं तिथि में तीर्थ स्थलों में पिंडदान करने वालों की संख्या अधिक रहेगी। पितृ पक्ष में इस दिन महिला वस्त्रों का दान, असहायों को भोजन एवं उनकी मदद से पितर प्रसन्न होते हैं। पितृ मोक्ष अमावस्या तिथि 9 अक्टूबर को सभी पितरों को तर्पण किया जाएगा। पितृ पक्ष में पितरों को संतृप्त करने के लिए संस्कारधानी में कई स्थानों पर श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है।

भागवत कथा में पितरों का आवाहन
श्रीमद् भागवत ग्रंथ के अनुसार इस कथा के श्रवण से सात पीढ़ी तृप्त हो जाती है। जिस परिवार में भागवत कथा होती है, वे अपने पितरों का आवाहन करते हैं और कथा श्रवण के लिए पितर वायु रूप में आते हैं। पितृ पक्ष में श्रीमद् भागवत कथा का महत्व और बढ़ जाता है। पितर प्रेत नहीं होते हैं जबकि, श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण से धुंधकारी जैसी प्रेत को भी मोक्ष प्राप्त हो गया था। यहीं कारण है लोग श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कर रहे हैं।

नर्मदा तट पर मेला
ग्वारीघाट के तीर्थ पुरोहित अभिषेक मिश्रा ने बताया, पितृ पक्ष में सूर्योदय से सूर्यास्त तक लोग श्राद्ध कर्म कर रहे हैं। दूर दराज के लोग तीर्थ स्थल में पिंडदान करने आ रहे हैं। मातृ नवमीं को काफी संख्या में श्रद्धालु श्राद्ध कर्म करने आते हैं।
ग्वारीघाट के अलावा, जिलहरीघाट, दरोगाघाट, तिलवारा घाट आदि में श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। माहौल धर्म मय है। कई लोग पितरों की स्मृति में बाल कटवाकर छौर कर्म भी कराते हैं। इसके बाद ब्राम्हणों को भोजन कराकर दान आदि दिया जा रहा है।