
खेतों की रक्षा और पूर्वजों को समर्पित पर्व (Photo source- Patrika)
Amus Tihar 2025: बस्तर अंचल अपने समृद्ध आदिवासी विरासत, सांस्कृतिक विविधता और परंपरागत त्योहारों के लिए जाना जाता है। यहां की लगभग 85 प्रतिशत आबादी मुरिया, माड़िया, हल्बा, गोंड, धुरवा और भतरा जैसी जनजातियों से मिलकर बनी है, जिनकी जीवनशैली, कृषि आधारित रहन-सहन और प्रकृति-आधारित धार्मिक विश्वास त्योहारों को विशिष्ट पहचान देते हैं।
इन परंपराओं में ’’अमुस तिहार’’ एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो खेतों की सुरक्षा, अच्छी फसल की कामना और वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य संरक्षण के उद्देश्य से मनाया जाता है। ग्राम पंचायत बड़े चकवा के उप सरपंच एवं युवा आदिवासी नेता पूरन सिंह कश्यप बताते हैं कि यह पर्व पूर्वजों के कृषि ज्ञान और सामाजिक स्वास्थ्य चेतना का प्रतीक है। वर्षा ऋतु में पौधों में खनिज तत्वों की अधिकता और पर्यावरणीय संक्रमण के जोखिम को ध्यान में रखते हुए, पूर्वजों ने अमुस तिहार की परंपरा की शुरुआत की।
इस दौरान कुछ पत्तियाँ और वनस्पतियाँ मनुष्यों और पशुओं के पाचन के लिए हानिकारक हो सकती हैं। इसके साथ ही, वर्षा ऋतु में फंगस, वायरस और बैक्टीरिया की सक्रियता भी बढ़ जाती है। सभी औषधियों और पूजा सामग्री को अपने कुल देवी-देवताओं के वास स्थल ‘गुड़ी’ में अर्पित किया जाता है। गुड़ी को सिंदूर, फूलों और रंगों से सजाया जाता है। वहां जल, जंगल, जमीन, पहाड़ और नदियों की सामूहिक पूजा होती है, जो अमुस तिहार की आत्मा मानी जाती है।
इस अवसर पर आदिवासी समुदाय जंगल से औषधीय पौधे जैसे - लगड़ा जोड़ी, रसना, भेलवा पत्ता, जंगल अदरक, हेदावरी, पाताल कांदा, शिरड़ी आदि एकत्र करते हैं। इन जड़ी-बूटियों का मिश्रण तैयार कर जानवरों को खिलाया जाता है, ताकि वे संक्रमण से सुरक्षित रह सकें। रसना और भेलवा की डगालों को खेतों में गाड़ा जाता है जिससे कीट प्रकोप से बचाव होता है। साथ ही, नागर, हावड़ा, कुल्हाड़ी-कुचला जैसे कृषि औजारों की पूजा कर फसल की सुरक्षा के लिए सेवा अर्जी दी जाती है।
Amus Tihar 2025: अमुस तिहार के साथ ही ‘गोड़दी बाछ’ की शुरुआत होती है, जिसमें बच्चे झूलों पर झूलते हैं। यह झूला ’गोड़दी’ कहलाता है और यह परंपरा लगभग एक माह तक चलती है। इसका समापन नुआ खानी के दिन ‘गोड़दी देव’ को अर्पण के साथ किया जाता है।
अमुस तिहार केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह बस्तर के पूर्वजों के वैज्ञानिक सोच, प्रकृति प्रेम और सामाजिक स्वास्थ्य की दूरदर्शिता का उदाहरण है। यह पर्व आज भी आदिवासी समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी जीवंत है, और आधुनिक समाज को प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत जीवन की प्रेरणा देता है।
Published on:
24 Jul 2025 02:16 pm
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