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थैलेसिमिया पीड़ित बच्चों की बोन मैरो जांच, जेके लोन अस्पताल में 200 बच्चों की हुई स्क्रिनिंग

थैलेसिमिया की बीमारी के कारण प्रदेश में हजारों बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

patrika photo
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जयपुर। थैलेसिमिया की बीमारी के कारण प्रदेश में हजारों बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे बच्चों को जीवन देने के लिए बोनमेरो ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है। ऐसे में आज करीब 200 थैलेसिमिया पीड़ित बच्चों व उनके परिजनों की बोनमेरो ट्रांसप्लांट के लिए जेके लोन अस्पताल में जांच की गई। मेदांता गुरुग्राम के डॉ. सत्य प्रकाश यादव ने बताया कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट और जीन थेरेपी जैसी आधुनिक तकनीकों ने इन बीमारियों के इलाज में नई उम्मीद जगाई है। थैलेसिमिया के मरीजों को अब आजीवन रक्त चढ़ाने की आवश्यकता नहीं रहती है।

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जिन बच्चों की जांच की गई है। उनमें से चयनित होने वाले बच्चों का थैलेसिमिया बाल सेवा योजना के अंतर्गत बोनमेरो ट्रांसप्लांट किया जाएगा। यह प्रोग्राम वंचित बच्चों की बीएमटी प्रक्रियाओं के लिए 10 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान करता है।डॉ यादव ने कहा कि थैलेसिमिया एक आनुवंशिक बीमारी है। इससे रेड ब्लड सेल्स का उत्पादन प्रभावित होता है। मरीजों को नियमित रूप से रक्त चढ़ाना पड़ता है। भारत में प्रति वर्ष 10,000 से 15,000 बच्चे थैलेसिमिया मेजर के साथ जन्म लेते हैं। राजस्थान की आदिवासी आबादी में यह समस्या अधिक देखी जाती है।

एप्लास्टिक एनीमिया में बोन मैरो पर्याप्त रक्त कोशिकाएं नहीं बना पाती। इससे थकान और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। भारत में हर साल करीब 20,000 नए मामले सामने आते हैं। राजस्थान में यह पैंसिटोपेनिया का दूसरा प्रमुख कारण है, जिसके 23% मामले दर्ज होते हैं।

जयपुर में थैलेसिमिया और एप्लास्टिक एनीमिया पर शनिवार को जागरूकता सत्र का आयोजन किया गया। इंडियन एकेडेमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के सहयोग से आयोजित इस सत्र में इन बीमारियों के इलाज में हुई नवीनतम प्रगति पर चर्चा की गई।