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JKK : ‘चंदेरी उत्सव’ में बुनकरों ने बताया चंदेरी साड़ी का 600 साल पुराना इतिहास

जवाहर कला केंद्र ( JKK Jaipur ) के शिल्प ग्राम में 'चन्देरी मध्यप्रदेश उत्सव' के अंतर्गत चल रही 'मृगनयनी' प्रदर्शनी में मूल दस्तकारों ने चन्देरी साड़ियों ( Chanderi Sari ) पर व्याख्यान दिया। इन कारीगरों ने चन्देरी साड़ियों की बनाई के इतिहास और निर्माण प्रक्रिया पर बारीकी से प्रकाश डाला। ( History Of Chanderi Sarees )

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जयपुर

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Abdul Bari

Feb 04, 2020

Chanderi Utsav at JKK Jaipur : history of chanderi sarees

Chanderi Utsav at JKK Jaipur : history of chanderi sarees

जयपुर। जवाहर कला केंद्र ( JKK Jaipur ) के शिल्प ग्राम में 'चन्देरी मध्यप्रदेश उत्सव' के अंतर्गत चल रही 'मृगनयनी' प्रदर्शनी में मूल दस्तकारों ने चन्देरी साड़ियों ( Chanderi Sari ) पर व्याख्यान दिया। इन कारीगरों ने चन्देरी साड़ियों की बनाई के इतिहास और निर्माण प्रक्रिया पर बारीकी से प्रकाश डाला।

चंदेरी साड़ी का इतिहास लगभग 600 वर्ष पुराना ( History Of Chanderi Sarees )

चंदेरी के विशेषज्ञ बुनकर अब्दुल खालिद ने चन्देरी मंगलवार को चंदेरी पर विशेष व्याख्यान देते हुए कहा कि चंदेरी साड़ी का इतिहास लगभग 600 वर्ष पुराना है माना जाता है कि तब करीब 20 हजार बुनकर मौलाना मजीबुद्दीन उलूफ के अनुयाई के रूप में बंगाल के लखनौती (ढाका) से, जिसे बुनाई का गढ़ माना जाता था, विस्थापित होकर चंदेरी आए थे। इन्होंने चन्देरी में बुनाई का काम शुरू किया। तब 17 वीं शताब्दी तक कपड़ा व्यवसाय में चंदेरी के सूती कपड़े की प्रतिस्पर्धा ढाका के उत्कृष्ट मलमल से रही। इसके बाद जब 300 काउंट वाला सूती कपड़ा इजाद हुआ। यह कपड़ा आंध्र प्रदेश के कोलीकंडा के पेड़ की जड़ से तैयार बेहतरीन धागे से बुना जाने लगा। इससे चंदेरी की साड़ियां बंगाल के मलमल से टक्कर लेने लगी।


उन्होंने बताया कि वर्ष 1930 में चंदेरी की शानदार बुनाई देखकर जापान सरकार ने अपने यहां से इसके लिए सिल्क देने का निर्णय लिया। इससे तैयार साड़ियां अपने विश्व स्तरीय पहचान बनाने में कामयाब रही। तब भी चंदेरी साड़ियां काफी कीमती होती थी, जिससे इनका उपयोग केवल राजघरानों और धनाढ्य परिवारों में होता था। बाद में मध्य प्रदेश सरकार ने चन्देरी साड़ियों को आमजन तक पहुंचाने की योजना बनाई। तब चन्देरी उत्पादों को सरकारी प्रोत्साहन मिला और इस साड़ी की कुछ डिजाइन आमजन तक पहुंच वाली भी बनने लगी।

सिर्फ चन्देरी में बन सकती है

बुनकर खालिद ने बताया कि दरअसल, चंदेरी की खास जलवायु के कारण साड़ी का निर्माण वहीं हो सकता है, अन्यत्र नहीं।

पहले बनती थी सिर्फ सफेद साड़ी

अन्य कारीगर अज़ीम ने यह रोचक बात बताई कि पहले यह सदी सिर्फ सफेद बनती थी। बाद में, सरकार ने रंगाई के संसाधन उपलब्ध कराए। तब से हर रंग में साड़ियां बनने लगी, जिससे इनकी मांग भी बढ़ी।

मेहनत और बारीक काम

खालिद और अज़ीम ने बताया कि इसकी अधिक कीमत की एक वजह यह है कि इसके निर्माण में धागे, कपड़ा इत्यादि ऑरिजिनल होते हैं। साथ ही, बुनाई सधे हाथ से बहुत ही बारीकी से की जाती है। एक साड़ी को तैयार करने में कई बुनकरों को किसी दिन मेहनत करनी पड़ती है। कालांतर में चन्देरी में साड़ियों के अलावा दुपट्टे और सलवार सूट भी बनने लगे। कई फिल्मों में भी चन्देरी साड़ियों और दुपट्टों का प्रयोग हुआ है।

साढ़े 3 हज़ार से 2.86 लाख तक की साड़ी

बुनकर खालिद बताते हैं कि अब चंदेरी में 35 सौ रुपए की साड़ी भी उपलब्ध है। साथ ही, 2 लाख 86 हजार तक की साड़ी चंदेरी में बनती है।


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