31 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Patrika National Book Fair: पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की पुस्तकों वैदिक विवाह सूक्त व पुरुष सूक्त पर हुई चर्चा

5th Day Of Patrika National Book Fair 2025: पत्रिका नेशनल बुक फेयर के 5वें दिन पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की पुस्तकों वैदिक विवाह सूक्त व पुरुष सूक्त पर विस्तार से चर्चा की गई।

3 min read
Google source verification

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी (फोटो: पत्रिका)

Discussion On Patrika Group Editor-In-Chief Gulab Kothari's Books: जयपुर के जवाहर कला केंद्र के शिल्पग्राम में आयोजित पत्रिका नेशनल बुक फेयर के पांचवें दिन पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की पुस्तकों वैदिक विवाह सूक्त व पुरुष सूक्त पर विस्तार से चर्चा की गई। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर परिसर के पूर्व निदेशक वाई.एस. रमेश और संस्कृत विश्वविद्यालय में राजस्थान मंत्र प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. देवेंद्र कुमार शर्मा रहे। वाई.एस. रमेश ने कहा कि गुलाब कोठारी की पुस्तकों में विवाह से संबंधित जो गहन भाष्य किया गया है, वह आज की युवा पीढ़ी को समझना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने बताया कि पुस्तक में दांपत्य जीवन के बारे में 70 पृष्ठों में विस्तृत जानकारी दी गई है, जिसमें विवाह को केवल भोग का साधन नहीं, बल्कि दो परिवारों के संस्कारों का मिलन माना गया है।

भारत में विवाह पवित्र संस्कार है, जो मोक्ष तक साथ रहने का बंधन बनाता है, जबकि पश्चिमी संस्कृति में विवाह को भोग की दृष्टि से देखा जाता है, जिससे तलाक जैसे सामाजिक मुद्दे बढ़ रहे हैं। विवाह के लिए संकल्प का होना जरूरी है। यदि संकल्प टूट जाए, तो पति-पत्नी का रिश्ता समाप्त हो जाता है। इस कारण विवाह में प्रेम, समर्पण और संस्कार का महत्व अधिक है। उन्होंने कहा कि दांपत्य जीवन में यदि सच्चे प्रेम और संस्कारों का पालन किया जाए, तो न केवल परिवार की नींव मजबूत होती है, बल्कि समाज में आदर्श स्थापित होते हैं। आज की युवा पीढ़ी को ऐसी किताबें अवश्य पढ़नी चाहिए।

वेदों के अध्ययन से व्यक्ति मुक्ति की ओर होता है अग्रसर : डॉ. शर्मा

डॉ. देवेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि वेद वह ग्रंथ हैं, जो इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट का परिहार करने के उपाय बताते हैं। वेदों से कर्म, सन्मार्ग व धर्म का सही मार्गदर्शन मिलता है। वेदों के छह अंग होते हैं ज्ञान कांड, कर्म कांड, उपासना कांड, ब्राह्मण, उपनिषद और आरण्यक। इनके अध्ययन से व्यक्ति मुक्ति की ओर अग्रसर होता है। उन्होंने कोठारी का उल्लेख करते हुए कहा कि वे वर्तमान समय के ऋषि हैं, जिन्होंने वेदों की व्याया सरल भाषा में की है। जिससे आमजन इन्हें आसानी से समझ सकें।

पुरुष और स्त्री के बीच अंतर शारीरिक रूप में है, जबकि आत्मा एक है : कोठारी

Q परिवार के दबाव में बदला व्यवहार, पत्नी मायके चली गई, ऐसे में संस्कृति और बराबरी के बीच सही संतुलन कैसे पाऊं? क्या इसका कोई ब्रह्मास्त्र है? विवाह को लेकर जो कन्फ्यूजन है इसे कैसे दूर करें?

गुलाब कोठारी. हम एक ऐसी सभ्यता में खड़े हैं, जहां संस्कृति कभी नहीं बदलती। हम सब आत्मा हैं और शरीर केवल एक साधन है, जिसका उपयोग हम जीवन की यात्रा में करते हैं। विवाह का वास्तविक स्वरूप शरीर के बीच नहीं, बल्कि दो आत्माओं के मिलन में होता है। भारतीय विवाह मंत्रों से जुड़ा है, न कि केवल दस्तखत से। पुरुष और स्त्री के बीच अंतर केवल शारीरिक रूप में है, जबकि आत्मा एक है।

वाई.एस. रमेश. इस तरह के सवालों का कोई ब्रह्मास्त्र नहीं है। जब कुछ भी काम नहीं आता, और आखिरकार जो समाधान मिल जाए, वही हमारे लिए ब्रह्मास्त्र बन जाता है। यह पूरी तरह से आपके विवेक पर निर्भर करता है। विवेक ही सही दिशा दिखाएगा और समाधान तक पहुंचाएगा।

Q प्रेम और प्यार में क्या अंतर है?

गुलाब कोठारी. दांपत्य जीवन में पुरुष की बुद्धिमत्ता और महिला की संवेदनशीलता का अद्वितीय मिलन होता है और यही सच्चा प्रेम है। प्रेम होता नहीं किया जाता है, जहां प्रेम किया जाता है वो कभी खत्म नहीं होगा।

वाई.एस. रमेश. प्रेम और प्यार में गहरा अंतर है। प्यार वह भावना है, जो स्वार्थ और भौतिक इच्छाओं से जुड़ी होती है। यह बाहरी आकर्षण पर आधारित होता है और कभी-कभी अस्थिर हो सकता है। वहीं, प्रेम नि:स्वार्थ और आत्मिक होता है। यह मन से किया जाता है, जहां हम किसी व्यक्ति को उसकी सच्चाई के साथ स्वीकार करते हैं, बिना किसी अपेक्षा के। प्रेम में समझ, समर्पण और समान होता है, जबकि प्यार में स्वार्थ और व्यक्तिगत इच्छाएं होती हैं।

Q अगर हम लिव-इन रिलेशनशिप में हैं, तो इसमें गलत क्या है? क्या हमें यह पहले से नहीं जानना चाहिए कि हम जिस व्यक्ति के साथ जीवन बिताने जा रहे हैं, वह हमसे सच्चा प्यार कर सकता है या नहीं और क्या हम एक-दूसरे का साथ निभा सकते हैं?

वाई.एस. रमेश. लिव-इन रिलेशनशिप फिल्मी सोच है, जो हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है। यह पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर अपनाया गया है, जो हमारी सभ्यता और रिश्तों के मूल्यों को कमजोर कर रहा है। आज की युवा पीढ़ी को यह समझने की आवश्यकता है कि भारतीय संस्कृति और विवाह संकल्प का गहरा महत्व है, जो रिश्तों में आत्मा का मेल और सच्चे बंधन की नींव रखता है। पाश्चात्य संस्कृति में हम अक्सर रिश्तों को अस्थिर और झूलते हुए देखते हैं।