पलायन का संकट और नियमों की मार से उद्योग-धंधे लाचार
मजदूरों को ठहराने की गाइडलाइन की बाध्यताओं से शुरू नहीं हो पा रही अधिकतर इकाइयां

जयपुर. लॉकडाउन के इस मोड पर मजदूरों का पलायन एक ओर जहां भविष्य में प्रदेश उद्योग-धंधों पर संकट पैदा कर रहा है, वहीं औद्योगिक इकाइयों को शुरू करने की अनुमति के सरकारी नियम भी उद्यमियों पर दोहरी मार का कारण बन रहे हैं। मामला औद्योगिक इकाइयों में मजदूरों के प्रबंधन से जुड़ा है।
सरकार ने नगरीय क्षेत्र में इकाइ खोलने की अनुमति इस शर्त पर दी है कि वहां काम करने वाले मजदूरों के आवास की व्यवस्था कारखाना परिसर या बगल वाले भूखंड पर हो। अब यह शर्त प्रदेश में अस्सी प्रतिशत की संख्या रखने वाली सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी की इकाइयों के लिए मुसीबत बन गई है। वृहद उद्योगों में बड़ा आधारभूत ढ़ांचा होने के कारण मजदूरों का आवास संभव है, लेकिन छोटे उद्योगों के पास इतनी जगह और आर्थिक संसाधन नहीं कि वह मजदूरों को रख कर उनके रहने—खाने का खर्च उठा सकें। इसी के चलते प्रदेश के बड़े—बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में भी 10—20 प्रतिशत ही इकाई अपना कामकाज शुरू कर पाई हैं।
छह हजार रुपए प्रति मजदूर खर्च
उद्यमियों का कहना है कि मजदूरों को परिसर में रखने पर हर माह प्रति मजदूर कम से कम छह हजार रुपए रहने और खाने का खर्च आता है। लॉकडाउन में पहले से इकाई बंद होने से नुकसान झेल रहे उद्यमियों पर यह दोहरी मार जैसा है।
डेढ़ माह बाद क्यों खोला रास्ता
लॉकडाउन अवधि के तकरीबन डेढ़ माह बाद जाकर मजदूरों को अपने-अपने राज्यों में भेजने के सरकारी फैसले पर भी सवाल उठ रहे हैं। उद्यमियों का कहना है कि यह फैसला बहुत देर से किया गया। अब यदि आगामी दिनों में उद्योग शुरू भी होंगे तो मजदूरों की अनुपलब्धता के चलते कामकाज कई महीनों तक शुरू ही नहीं हो पाएगा।
8 लाख में से बन रहा डेटा
भविष्य की चुनौती से लडऩे के लिए प्रवासियों से आवागमन के बीच मजदूरों का डेटा भी तैयार कर रही है। उद्योग विभाग के आंकड़ों के अनुसार करीब 13 लाख से अधिक लोगों ने प्रदेश में आने और यहां से जाने की दोनों श्रेणियों में पंजीकरण कराए हैं, इनमें मजदूरों के अलावा तीर्थयात्री, विद्यार्थी और अन्य श्रेणियों के लोग हैं। इसमें आठ लाख लोग राजस्थान आने वाले हैं। सरकार इन आठ लाख में से मजदूरों का अलग डेटा तैयार करा रही है।
नियमों में ढ़ील के लिए सरकार को लिखा
मजदूरों के ठहराव के नियम को लेकर मैने सरकार को लिखित में निवेदन किया है। कहा है कि यदि किसी नियोक्ता के पास श्रमिकों को रखने की व्यवस्था नहीं हो तो वहां श्रमिकों को निजी वाहन से आने—जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। श्रमिकों के ठहराव के लिए निर्धारित दायरा तय कर देना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो काफी चीजें आसान हो जाएंगी।
नीरज के.पवन, श्रम सचिव
अब पाइए अपने शहर ( Jaipur News in Hindi) सबसे पहले पत्रिका वेबसाइट पर | Hindi News अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें Patrika Hindi News App, Hindi Samachar की ताज़ा खबरें हिदी में अपडेट पाने के लिए लाइक करें Patrika फेसबुक पेज