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Rajasthan HIV: मां के पेट से हर साल सैकड़ों शिशु HIV संक्रमित हो रहे पैदा, 4000 से अधिक बच्चों को रेगुलर लेनी पड़ रही दवा

राजस्थान में गर्भवती महिलाओं की एक छोटी सी जांच नहीं होने की वजह से हर साल सैकड़ों बच्चे HIV संक्रमित पैदा हो रहे हैं। जिसकी वजह से इन बच्चों को अब रेगुलर दवा का सेवन करना पड़ रहा है।

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Rajasthan HIV

फोटो-एआई जेनरेटेड

जयपुर। राजस्थान में मां से नवजात बच्चे तक एचआईवी पहुंचने की रफ्तार रुकने का नाम नहीं ले रही। राज्य में इस समय 4,082 से ज्यादा बच्चे एचआईवी की दवा ले रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की ताजा रिपोर्ट बताती है कि हर साल करीब 20 लाख महिलाएं गर्भवती होती हैं, लेकिन इनमें से बहुतों की एचआईवी जांच ही नहीं हो पाती, जिसकी वजह से बच्चे संक्रमित पैदा हो रहे।

जांच में बड़ी चूक

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान सिर्फ 0.02% यानी करीब 400 महिलाएं ही एचआईवी पॉजिटिव पाई जाती हैं। लेकिन ज्यादातर महिलाओं को तो प्रसव के समय तक पता ही नहीं चलता कि वे संक्रमित हैं। कई सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में गर्भवती महिलाओं की नियमित एचआईवी जांच नहीं हो रही। अगर समय पर जांच और दवा शुरू हो जाए तो मां से बच्चे में संक्रमण 90% तक रोका जा सकता है। फिर भी यह आसान-सा काम नहीं हो पा रहा।

60 हजार से अधिक लोग सेवन कर रहे HIV की मुफ्त दवा

राजस्थान में 28 एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) केंद्र, आठ सार्वजनिक-निजी भागीदारी एआरटी केंद्र और 21 लिंक एआरटी केंद्र स्थापित किए गए हैं, जहां एचआईवी से पीड़ित 60,450 लोगों को मुफ्त एंटी-रेट्रोवायरल दवाएं प्रदान की जाती हैं, जिनमें 4,082 बच्चे भी शामिल हैं। इन संसाधनों के बावजूद, मां से बच्चे में संक्रमण का संचरण एक गंभीर समस्या बनी हुई है।

अधिकारी क्या कहते हैं?

स्वास्थ्य विभाग के एक बड़े अधिकारी ने कहा कि 'हम कोशिश कर रहे हैं कि हर गर्भवती महिला की कम से कम एक बार एचआईवी जांच जरूर हो। ग्रामीण इलाकों में कैंप लगाए जा रहे हैं, आशा कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी जा रही है। लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।' स्वास्थ्य विभाग यौनकर्मी, ट्रक ड्राइवर, प्रवासी मजदूर और ड्रग यूज करने वालों जैसे हाई-रिस्क ग्रुप पर खूब काम कर रहा है। मुफ्त कंडोम, सुई-सिरिंज, जागरूकता कैंप, बस स्टैंड-रेलवे स्टेशन पर काउंसलिंग सब चल रहा है। लेकिन मां-बच्चे वाला मोर्चा अब तक कमजोर ही बना हुआ है।

विशेषज्ञों की राय

  • हर गर्भवती महिला की कम से कम एक बार एचआईवी जांच पक्की हो
  • पॉजिटिव निकले तो तुरंत दवा शुरू हो
  • प्रसव के समय और बाद में भी बच्चे को दवा दी जाए

इतना करने के बाद तो 2-3 साल में नए बच्चों में एचआईवी लगभग खत्म हो सकता है। फिलहाल राजस्थान में हर साल सैकड़ों मासूम बच्चे सिर्फ इसलिए एचआईवी की जिंदगी भर दवा खाने को मजबूर हो रहे हैं क्योंकि उनकी मां की एक साधारण सी जांच छूट गई।