
इधर उधर की...
जगजीत सिंह की गजल "तुम इतना जो मुस्करा रहे हो, क्या गम है जिसको छिपा रहे हो", तो आपने सुनी ही होगी। लेकिन यहां चुनावों में उल्टा हो रहा है। यहां "रोना-धोना पॉलिटिक्स" चल रही है। पहले कांग्रेस की एक नेत्री फूट-फूट कर रोई, रुंआसे होकर बोली,दो बार से हार रही हूं। इस बार तो मेरी लाज रख दो। बड़ी मुश्किल से तीसरी बार टिकट लाई हूं। अब मैं "खुशी के आंसू" से रोना चाहती हूं। इस बार भी हार गई तो मानो समझो,अगली बार टिकट नहीं मिलेगा। इनके "आंसू पॉलिटिक्स" ने इनके प्रतिद्धंदी नेताजी बोल पड़े, रोने-धोने से वोट नहीं मिलते हैं मैडम, क्षेत्र में काम करना होता है।
इनके आंसू सूखे भी नहीं होंगे कि कांग्रेस के ही एक नेताजी भी रो पड़े। ये सांगानेर से हैं। मतदाताओं के बीच पहुंचे बोले,भैय्या अब तो टिकट मिल गया, लेकिन वोट भी दे दो। पिछली बार हार गया था। कहते-कहते भावुक हो गए। थोड़ी देर में रो पड़े।
इस "आंसू पॉलिटिक्स" में कांग्रेस के नेता ही बाजी मार रहे है तो भला भाजपा वाले क्यों पीछे रहें। राजधानी में भाजपा के एक संत भी रो पड़े। कांग्रेसी जनता के सामने रो रहे थे कि भाजपा वाले पत्रकारों के सामने। संत बोले,मंदिर तोड़े जा रहे हैं। पलायन हो रहा है। कहते-कहते हिंदू कार्ड खेल गए और फिर रो पड़े। अब एक और नेताजी हैं। शहर के पॉश इलाके से हैं पॉश इलाके की विधानसभा क्षेत्र से खड़े हुए हैं। इन्होंने कार्यालय खोला और सुबह ही तीन गायें मरी मिली। तुरंत पत्रकारों को बुलाया और गायों की मौतों पर सिसकारी लेकर रो पड़े। इधर रोना ही जारी था कि उधर कांग्रेस के एक नेताजी बोल पड़े। यह सब ड्रामा है। चुनाव जीतने का। फालतू की नौटंकी कर रखी है। ये माहौल खराब कर रहे हैं। ये नेताजी बोलने में बड़बोले हैं। बोलते-बोलते यहां तक बोल गए कि इन्होंने खुद ने गाय मारकर अपने कार्यालय के पास पटक दी हैं।
खैर...नेताओं का रोना अभी जारी है। चार नेताजी रो पड़े हैं। अभी तो चुनाव प्रचार परवान चढ़ना है। देखते हैं कि मतदान तक कितने नेताओं को यह रोना पॉलिटिक्स भाता है। आखिर में एक वोटर बोल ही पड़ा। "तुम जो इतना रो रहे हो...क्या हार रहे हो जिसको छिपा रहे हो।"
-राजेश दीक्षित
Published on:
11 Nov 2023 10:01 am
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