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ये महिलाएं बनी समाज के लिए मिसाल: महिला रिक्शा चालकों की कहानी, उनकी ही जुबानी

लड़ाई जब खुद से हो तो संघर्ष कितना भी बड़ा हो, जीत हौसलों की होती है। संघर्ष की इन कहानियों में जयपुर की ई-रिक्शा चालक महिलाओं के आत्मविश्वास और हौसलों ने उन्हें एक नया मुकाम दिया है।

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जयपुर। लड़ाई जब खुद से हो तो संघर्ष कितना भी बड़ा हो, जीत हौसलों की होती है। संघर्ष की इन कहानियों में जयपुर की ई-रिक्शा चालक महिलाओं के आत्मविश्वास और हौसलों ने उन्हें एक नया मुकाम दिया है। आज ये महिलाएं समाज के लिए मिसाल बन गई हैं। पत्रिका ने ऐसी ही कुछ महिला रिक्शा चालकों से बात की तो उनकी सोच समाज के लिए एक संदेश देती नजर आई-

काम का कोई जेंडर नहीं होता: बसंता
बसंता 4 वर्ष से रिक्शा चलाकर घर चला रही है। वह अपने 3 बच्चों के साथ अकेली रहती है। शादी के बाद उसे आए दिन घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता था। लेकिन बसंता ने ज़ुल्म सहने की जगह संघर्ष का रास्ता चुना। पढ़ी लिखी नहीं होने से कहीं नौकरी नहीं मिली तो उसने रिक्शा चलाने का निर्णय किया। बसंता का कहना है कि काम का कोई जेंडर नहीं होता। बसंता पढ़ी लिखी नहीं है, लेकिन उसे अपने अधिकारों का ज्ञान है और सरकार की सभी योजनाओं का भी पूरा लाभ उठाती है। उसने अपने घर में सीसीटीवी कैमरा भी लगवाया हुआ है, जो उसके फोन से कनेक्ट है, ताकि काम के दौरान वो अपने बच्चों पर भी नजर रख सके। बसंता ने अपनी जैसी कई महिलाओं को रिक्शा चलाना सिखाया।

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हर लड़की बने आत्मनिर्भर: रूपसिंह
बेबी रूपसिंह 2 वर्ष से रिक्शा चला रही है। लॉकडाउन के दौरान पति का काम बंद हो गया था। जब घर खर्च के लिए पैसा मांगती तो मारपीट करता था। आर्थिक स्थति ख़राब होने से पति घर छोड़कर चला गया। घर में राशन न होने के कारण वह परेशान रहने लगी। उसने बताया कि घर में मुझे रोता देख बच्चों ने कहा कि आप पापा का रिक्शा चलाओ। दस वर्षीय बेटे ने मुझे रिक्शा चलाना सिखाया। पहले घर से बाहर नहीं निकलती थी, लेकिन आज वह आत्मनिर्भर बन गई है। वह कहती है कि हर लड़की को आत्मनिर्भर होना चाहिए ताकि आने वाली परेशानियों का सामना करने में सक्षम हो।

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अपने बच्चों के लिए मैं काफी हूं: निशा
निशा अपने 3 बच्चों के साथ जयपुर में अकेली रहती है। 13 साल की उम्र में ही उसका बाल विवाह कर दिया गया। शादी के बाद ससुराल वालों और पति का रवैया उसके लिए ठीक नहीं था। वह घरेलू हिंसा का शिकार होती चली गई। ससुराल वालों के खिलाफ पुलिस के पास गई तो सभी ने उसका साथ छोड़ दिया। पैसे की कमी होने के कारण उसे किसी भी तरह की कोई कानूनी सहायता नहीं मिली। इन मुश्किलों से जूझते हुए निशा ने फैसला किया कि अब और ज़ुल्म नहीं सहेगी और अपने बच्चों के साथ जयपुर आ गई। निशा ने बताया जब उसने रिक्शा चलाना शुरू किया तो आस-पास के लोग ताने देते थे। इसकी परवाह किए बिना वह आगे बढ़ती रही। अब वही लोग उसकी तारीफ करते नहीं थकते।