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Jaipur: जयपुर की बदहाली: 995 करोड़ गए कहां? गड्ढों, जलभराव और अंधेरे से जूझता शहर, सच्चाई उजागर

शहर के बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए दोनों नगर निगमों ने मिलकर करीब एक हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर दिए, लेकिन विकास मुख्यत: शहर के खास इलाकों तक ही सीमित रहा। बाहरी वार्डों में आज भी लोग सड़क, सफाई और रोशनी जैसी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं।

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जयपुर के दोनों नगर निगमों के पहले बोर्ड का कार्यकाल अब समाप्ति की ओर है। शहर के बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए दोनों नगर निगमों ने मिलकर करीब एक हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर दिए, लेकिन विकास मुख्यत: शहर के खास इलाकों तक ही सीमित रहा। बाहरी वार्डों में आज भी लोग सड़क, सफाई और रोशनी जैसी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं। पांच साल के कामकाज की समीक्षा में यह सामने आया कि, विकास के दावे अधिकतर कागजों में ही सिमटे रहे और लोग जलभराव, अंधेरे और टूटी सड़कों के बीच जीने को मजबूर हैं।

लड़ाई कुर्सी की…भुगत रही जनता

हैरिटेज नगर निगम की महापौर मुनेश गुर्जर अपने ही दल के विधायकों से अनबन के चलते समितियों का गठन तक नहीं कर सकीं। नई सरकार के गठन के बाद सितंबर-2024 में भ्रष्टाचार के मामले में मुनेश को महापौर और पार्षद पद से निलंबित कर दिया गया। 24 सितंबर को कुसुम यादव को कार्यवाहक महापौर बनाया गया और इसके साथ ही समितियों का गठन भी किया गया, जिनमें कांग्रेस और निर्दलीय पार्षदों को शामिल किया गया।

वहीं, ग्रेटर नगर निगम में भाजपा बोर्ड बना लेकिन आयुक्त से विवाद के चलते सौया गुर्जर की महापौर पद से छुट्टी हो गई। इसके बाद डेढ़ वर्ष तक शील धाभाई ने कार्यवाहक महापौर के रूप में कार्यभार संभाला। इसके बाद सौया फिर महापौर बनीं।

शहर बंटने से विकास हारा, राजनीति जीती

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने राजधानी को दो हिस्सों में बांटकर हैरिटेज और ग्रेटर नगर निगम बना दिए। इससे कांग्रेस को फायदा हुआ और हैरिटेज नगर निगम में अपना महापौर बना लिया। लेकिन दोनों नगर निगमों में शुरू से ही राजनीति हावी रही।

विश्व विरासत के बाद भी खाली हाथ

विश्व विरासत सूची में शामिल परकोटा क्षेत्र में अतिक्रमण और अवैध निर्माण को रोकने में हैरिटेज नगर निगम अब तक विफल रहा है, जबकि यह कार्य प्राथमिकता में होना चाहिए था।

‘हमने वोट दिया… वे वादे भूल छोड़ गए गड्ढे’

जब जनप्रतिनिधि वोट लेने आए थे, तब वादा किया कि सड़क बनवाएंगे, लाइट लगवाएंगे और कचरा लेने के लिए हूपर भी समय पर भेजेंगे… लेकिन अधिकतर वादे आज तक अधूरे हैं। यह पीड़ा उन लोगों की है, जो अपने पार्षद से ढेरों उमीद लगाए बैठे हैं। बदले में केवल इंतजार मिला है। कॉलोनियों में बातचीत के दौरान सामने आया कि पांच साल पहले किए गए वादे आज तक हकीकत नहीं बने।
आस-पास की कॉलोनियों में सीवर लाइन नहीं है। सड़क का इंतजार हमें भी है। पार्षद ने भरोसा दिलाया है कि बोर्ड के अंतिम माह में सड़क बनवा देंगे। -रामजीलाल शर्मा, आजाद नगर
सड़कों का काम नहीं हुआ। स्ट्रीट लाइट लगाने में मनमानी की गई। पार्षद से लेकर निगम अधिकारियों से कई बार कहा, लेकिन समाधान नहीं मिला। -मनोहर चौधरी, हाज्यावाला

ढाणी की ओर जाने वाली सड़क अब बन रही है… यह सुनते-सुनते पांच साल बीत गए। इस बार भी भरोसा दिया गया है। बरसात में बहुत परेशानी होती है। -गोपाल बुनकर, छोटी बालियों की ढाणी
मुख्य सड़क का बुरा हाल है। कई वर्षों से सड़क ऐसी ही है। जेडीए में कोई सुनवाई नहीं होती। नगर निगम से उमीद थी, लेकिन अब तक सड़क बनाने का काम पूरा नहीं हुआ है। -आशीष पुरी, बैंकर्स कॉलोनी