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Jodhpur AIIMS का बड़ा कारनामा, मरीज ही ‘नया’ बना सकेगा अपने शरीर का ‘खराब बॉडी पार्ट’…!

Jodhpur AIIMS: मरीज के खुद की हार्ट की त्वचा यानी पेरिकार्डियल झिल्ली से तीन कपाट वाला वाल्व बनाया और मरीज के लगा दिया। प्रदेश में पहली बार इस तरह की सर्जरी की गई है।

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Jodhpur AIIMS

Jodhpur AIIMS: एम्स जोधपुर में हृदय रोग से पीड़ित मरीज की नई तकनीकी से बेहतर सर्जरी की गई है। एक 59 वर्षीय पुरुष रोगी के महाधमनी (एऑर्टिक) वाल्व में केवल दो कपाट थे और वहां भी कैल्सिशयम जमा होने से रक्त का संचार बाधित हो रहा था। डॉक्टरों ने जापानी सर्जन डॉ ओजाकी की तर्ज पर मरीज के खुद की हार्ट की त्वचा यानी पेरिकार्डियल झिल्ली से तीन कपाट वाला वाल्व बनाया और मरीज के लगा दिया। प्रदेश में पहली बार इस तरह की सर्जरी की गई है। अब तक धातु से बना वाल्व मरीज को लगाते थे जिससे मरीज को खून पतला करने की दवाइयां भी साथ में देनी पड़ती थी। इस मामले में दवाइयां नहीं पड़ेगी। खुद की झिल्ली का वाल्व होने से मरीज के धातु वाल्व के पैसे भी बच गए। साथ ही मरीज के मस्तिष्क में रक्त स्त्राव की समस्या भी नहीं होगी।

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अब मरीज को खून पतला करने की दवाइयां नहीं खानी पड़ेगी

महाधमनी वाल्व शरीर में शुद्ध रक्त की आपूर्ति ह्रदय से शरीर को करता है। इसमें तीन कपाट होते हैं जो रक्त को हृदय से शरीर में जाने पर नियंत्रित करते हैं। सामान्यत: दो कपाट वाले मरीज के बारे में बचपन में ही पता चल जाता है तब सर्जरी करनी पड़ती है अथवा तीस वर्ष की उम्र के बाद पता चलता है। ऐसे मरीजों की उम्र साठ साल ही होती है। महाधमनी वाल्व में दो कपाट होने से वह पूरे प्रेशर से रक्त को शरीर में नहीं फैंक पाता है। इससे खुद हृदय में ही शुद्ध रक्त की मात्रा बढ़ने से बीपी बढ़ जाता है।

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एमडीएम अस्पताल में तीसरा किडनी ट्रांसप्लांट
जोधपुर. डॉ संपूर्णानंद मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध मथुरादास माथुर अस्पताल में गुरुवार को मरीज का किडनी ट्रांसप्लांट किया गया। ट्रांसप्लांट सफल रहा। फिलहाल मरीज व डोनर वार्ड में भर्ती है। अगले सप्ताह तक मरीज को छुट्टी दे दी जाएगी। बाड़मेर निवासी 39 वर्षीय रहमतुल्लाह की दोनों किडनी खराब हो गई थी। उनकी बहन ने एक किडनी देने की घोषणा की। मरीजों और डोनर दोनों की चिकित्सकीय जांच के बाद किडनी ट्रांसप्लांट का निर्णय किया गया। जयपुर स्थित सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के यूरोलॉजी और नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉक्टरों की टीम ने गुरुवार को जोधपुर आकर किडनी ट्रांसप्लांट किया। यह एमडीएम अस्पताल के मुख्य ऑपरेशन थिएटर में किया गया।

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10 साल में तीसरा किडनी ट्रांसप्लांट: वर्ष 2011 में मेडिकल कॉलेज में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू करने की घोषणा की गई थी। तब से लेकर अब तक 3 बार ही किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है। पहली बार वर्ष 2018 में एक मरीज का सफलतापूर्वक ट्रांसफर किया गया। इसमें एमडीएम अस्पताल के यूरोलॉजी विभाग के डॉ प्रदीप शर्मा भी शामिल रहे। इसके बाद अगले साल एक अन्य मरीज का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ। यह कॉम्प्लिकेशन के कारण असफल रहा। चार साल बाद जाकर अब तीसरा किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है। वर्तमान में मेडिकल कॉलेज के यूरोलॉजी विभाग में केवल दो डॉक्टर डॉ एमके छाबड़ा और डॉ गोवर्द्धन चौधरी ही कार्यरत है। दोनों ही ट्रांसप्लांट सर्जन नहीं है। सभी जीवों के ह्रदय के चारों और बनी झिल्ली पेरिकार्डियल झिल्ली कहलाती है जो हृदय की सुरक्षा करती है।

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मरीज के खुद की शरीर की त्वचा से वाल्व बना होने से उसे अन्य समस्याओं से भी निजात मिलेगी। मरीज अब 15-20 साल तक सुरक्षित है।

डॉ. आलोक शर्मा, एचओडी, कार्डियोथोरेसिक व वैस्कुलर सर्जरी विभाग, एम्स जोधपुर

मरीज के दो बाइपास सर्जरी भी की

एम्स के डॉक्टरों की टीम ने महाधमनी वाल्व को बदलने के साथ संबंधित मरीज की दो बाइपास सर्जरी भी की। मरीज की दो कोरोनरी धमनी में ब्लॉकेज भी थे। सर्जिकल प्रक्रिया का नेतृत्व कार्डियोथोरेसिक व वैस्कुलर सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ आलोक कुमार शर्मा और एनस्थीसिया के डॉ मनोज कमल ने किया।