पार्षद बने बिना निकाय अध्यक्ष चुनाव लडऩे के नियम से पिछले कुछ दिनों से राजस्थान में सियासी पारा चढ़ा हुआ है। इस नियम का उपमुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पायलट समेत कई मंत्री खुलेतौर पर विरोध कर रहे हैं। जबकि नगरीय विकास मंत्री धारीवाल इस नियम को 2009 में पारित विधेयक का हिस्सा बता रहे हैं। नगर निकाय और पंचायत चुनाव से पहले नेताओं की लगातार हो रही बयानबाजी के चलते राजस्थान में कांग्रेस ( Congress ) दो धड़ों में बंटती दिखी। वहीं भाजपा भी सरकार में फूट को मुद्दा बनाने में जुट गई। ऐसे में यह मामला दिल्ली तक पहुंचा।
महाराष्ट्र में मतदान समाप्त होते ही राजस्थान प्रभारी महासचिव पांडे मंगलवार को दिल्ली ( Delhi ) पहुंचे और राजस्थान के नेताओं से वार्ता शुरू की। पांडे ने सीएम गहलोत, डिप्टी सीएम पायलट और मंत्री धारीवाल से संपर्क किया। इसके बाद पांडे ने बुधवार को बताया कि पार्षद नहीं होने के बावजूद निकाय अध्यक्ष का चुनाव लडऩे का नियम नया नहीं बनाया गया है। यह 2009 से ही लागू था, लेकिन किसी का इस पर ध्यान नहीं गया।
अब जबकि यह मामला सामने आया और पायलट ने जनता की आवाज उठाते हुए इसे लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं बताया। ऐसे में सभी से वार्ता की गई। सरकार इस नियम को वापस लेने पर सहमत है। जल्द ही इसमें संशोधन किया जाएगा। गौरतलब है कि परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ( Pratap Singh Khachariyawas ) व खाद्य व आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा भी इसको लेकर विरोध जता चुके हैं।