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Maharana Pratap: इतिहास में फैलाई गई महाराणा प्रताप को लेकर कई झूठी बातें, राजस्थान के राज्यपाल ने खोली परतें

Pride of India: क्या सच में महाराणा प्रताप ने अकबर को भेजी थी संधि की चिठ्ठी? इतिहास में क्या छुपाया गया महाराणा प्रताप का असली योगदान? राज्यपाल ने किया बड़ा खुलासा।

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जयपुर

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Rajesh Dixit

May 29, 2025

महाराणा प्रताप दीर्घा का अवलोकन कर प्रताप के शौर्य से जुड़े प्रसंगों का जीवंत अवलोकन किया। फोटो-पत्रिका।

महाराणा प्रताप दीर्घा का अवलोकन कर प्रताप के शौर्य से जुड़े प्रसंगों का जीवंत अवलोकन किया। फोटो-पत्रिका।

Haldighati Battle: जयपुर। राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज राष्ट्र भक्ति के पर्याय थे। दोनों के जन्म के बीच 90 साल का अंतराल है। यदि वे दोनों समकालीन होते तो देश की तस्वीर दूसरी होती। वीरता और देशभक्ति को लेकर दोनों को समान दृष्टि से देखा जाता है। यहां तक कि शिवाजी महाराज का भौंसले वंश तो स्वयं को मेवाड़ के सिसोदिया वंश से जोड़ता है। महाराणा प्रताप की वीरता को सम्मान देने के लिए संभाजी नगर में प्रताप की अश्वारूढ़ प्रतिमा स्थापित की गई है।

राज्यपाल बागडे बुधवार शाम को उदयपुर जिले के प्रताप गौरव केंद्र राष्ट्रीय तीर्थ स्थित कुम्भा सभागार में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बप्पा रावल से महाराणा प्रताप तक और उनके बाद के शासकों ने विदेशी आक्रांताओं को खदेड़कर देश की रक्षा की। महाराणा प्रताप का संपूर्ण जीवन स्वाभिमान के लिए संघर्ष की प्रेरणा देता है। देश की अस्मिता की रक्षा के लिए उनके योगदान को युगों-युगों तक याद रखा जाएगा।

नई पीढ़ी से छुपाई गई महाराणा प्रताप की वीरगाथा

राज्यपाल ने कहा कि प्रारंभिक दौर में भारत का इतिहास विदेशियों ने लिखा। इसमें कई झूठे तथ्य अंकित किए गए। उन्होंने आमेर की राजकुमारी और अकबर के विवाह को भी झूठा बताया। उन्होंने कहा कि अकबर की आत्मकथा अकबरनामा में इसका कोई जिक्र नहीं हैं। इसके अलावा महाराणा प्रताप की ओर से अकबर को संधि की चिठ्ठी लिखने का तथ्य भी पूरी तरह से भ्रामक है। प्रताप ने कभी अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया। इतिहास में अकबर के बारे में ज्यादा और महाराणा प्रताप के बारे में कम पढ़ाया जाता है। हालांकि अब धीरे-धीरे स्थितियां सुधर रही हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में नई पीढी को अपनी संस्कृति और गौरवशाली इतिहास को सहेजते हुए हर क्षेत्र में अग्रसर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

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महाराणा प्रताप भारत के स्वराज की लड़ाई के पुरोधा

मुख्य वक्ता ऑर्गनाइजर समाचार पत्र के प्रधान संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि महाराणा प्रताप भारत के स्व अर्थात् स्वराज और स्वाभिमान की लड़ाई के पुरोधा हैं। यही लड़ाई 1857 की क्रांति का मूल है। वीर सावरकर ने देश के स्वाभिमान के संघर्ष के जो छह पृष्ठ लिखे, उसमें से एक पृष्ठ मेवाड़ के संघर्ष का है। उन्होंने कहा कि उसी स्व के संघर्ष को जीवित रखने के लिए प्रताप गौरव केंद्र जैसे स्थलों की स्थापना की आवश्यकता महसूस हुई, उसी स्व को जीवित रखने के लिए महाराणा प्रताप की जयंती मनाना आवश्यक है।

हल्दी घाटी युद्ध के दौर के बारे में कुछ अनर्गल कहा जाए तो कोई बड़ी बात नहीं

केतकर ने कहा कि महाराणा प्रताप द्वारा मेवाड़ के स्वाभिमान की रक्षा के लिए किए गए संघर्ष को लेकर कई भ्रामक बातें फैलाई जाती हैं। जब आधुनिक टेक्नोलॉजी के समय में ऑपरेशन सिंदूर के वीडियो तक दिखाए गए, इसके बावजूद देश में ही मौजूद कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं तो हल्दी घाटी युद्ध के दौर के बारे में कुछ अनर्गल कहा जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है। उस दौर में भी प्रताप को अपनों से संघर्ष करना पड़ा था और आज भी यही हो रहा है।

महाराणा प्रताप संघर्षों के बीच भी कुशल प्रशासक

केतकर ने कहा कि महाराणा प्रताप ने न केवल युद्ध के मैदान में अपने पराक्रम से मेवाड़ का मान बढ़ाया, अपितु संघर्षों के बीच भी कुशल प्रशासक के तौर पर मेवाड़ की कला-संस्कृति और साहित्य को संरक्षित एवं संवर्धित किया। उन्होंने मेवाड़ की कला - संस्कृति को रेखांकित करते हुए कहा कि मुगल स्थापत्य के नाम पर आज बहुत कुछ बेचा जा रहा है, जबकि मेवाड़ की स्थापत्य कला को पढ़ाया जाना चाहिए। चावण्ड की चित्रकला की प्रदर्शनी लगनी चाहिए, ताकि नई पीढ़ी हमारी गौरवशाली धरोहर का महत्व समझ सके।

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