
(पत्रिका फाइल फोटो)
Rajasthan News: राजस्थान में 'वन स्टेट वन इलेक्शन' को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। राज्य निर्वाचन आयुक्त मधुकर गुप्ता के एक बयान ने भजनलाल सरकार और भाजपा के नेतृत्व को असहज स्थिति में ला खड़ा किया है। आयुक्त ने मंगलवार देर शाम स्पष्ट शब्दों में कहा कि 'वन स्टेट वन इलेक्शन' व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है और एक साथ पंचायती राज एवं शहरी निकाय चुनाव कराना फिलहाल मुमकिन नहीं है।
दरअसल, आयुक्त के इस बयान ने सरकार की उस रणनीति पर सवालिया निशान लगा दिया है, जिसे भाजपा ने पिछले कई महीनों से अपने प्रमुख चुनावी संकल्प के रूप में पेश किया था। सीएम भजनलाल शर्मा और नगरीय निकाय एवं स्वायत्त शासन राज्य मंत्री झाबरसिंह खर्रा ने कई मंचों से 'वन स्टेट वन इलेक्शन' की घोषणा की थी। लेकिन अब निर्वाचन आयोग के रुख ने इस योजना को झटका दे दिया है।
राज्य निर्वाचन आयुक्त मधुकर गुप्ता ने घोषणा की है कि अगले दस दिनों में पंचायती राज और स्थानीय निकायों के चुनावों का कार्यक्रम घोषित कर दिया जाएगा। जिन पंचायतों और निकायों का कार्यकाल पूरा हो चुका है, वहां अगले दो महीनों के भीतर चुनाव कराए जाएंगे। बता दें, जनवरी 2025 में 6759, मार्च 2025 में 704 पंचायतों का कार्यकाल पूरा हो चुका है। वहीं, सितंबर-अक्टूबर 2025 में 3,847 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है।
इसके अलावा, उदयपुर, बीकानेर, भरतपुर, अलवर और पाली के पांच नगर निगमों में प्रशासक नियुक्त हैं, जहां जल्द ही चुनाव होने हैं। इसके बावजूद, सरकार की ओर से पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों के परिसीमन की अधिसूचना जारी नहीं हो पाई है।
इधऱ, राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव की तैयारियां तेज कर दी हैं, लेकिन परिसीमन की प्रक्रिया में देरी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि अगले सप्ताह तक परिसीमन की अधिसूचना जारी नहीं हुई तो आयोग पुरानी सीमाओं के आधार पर ही चुनाव कराएगा। गुप्ता ने साफ कहा कि चुनाव कार्यक्रम की घोषणा तक परिसीमन की जो स्थिति होगी, उसी के आधार पर चुनाव होंगे।
राज्य निर्वाचन आयुक्त ने 'वन स्टेट वन इलेक्शन' को दो प्रमुख कारणों से अव्यावहारिक बताया है, संवैधानिक बाधाएं और संसाधनों की कमी। 73वें और 74वें संविधान संशोधन के अनुसार, पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों के चुनाव हर पांच साल में करवाना अनिवार्य है। असामान्य परिस्थितियों को छोड़कर, चुनाव को छह महीने से ज्यादा टाला नहीं जा सकता।
वहीं, जिन निकायों और पंचायतों का कार्यकाल पूरा हो चुका है, वहां प्रशासक नियुक्त किए गए हैं। लेकिन कई शहरी निकायों और पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 2026 और 2027 तक पूरा होगा। इनमें समय से पहले निर्वाचित बोर्ड को भंग करना संवैधानिक रूप से संभव नहीं है। जिनका कार्यकाल पूरा हो गया है, वहां भी हाईकोर्ट के आदेशों के बाद अब और देरी की गुंजाइश नहीं बची है।
दूसरी और वन स्टेट वन इलेक्शन' के लिए आवश्यक संसाधन जुटाना भी एक बड़ी चुनौती है। एक साथ चुनाव करवाने के लिए हजारों EVM, पर्याप्त पुलिस बल और कर्मचारियों की जरूरत होगी। गुप्ता ने बताया कि राज्य निर्वाचन आयोग के पास अभी इतनी ईवीएम उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा, एक साथ चुनाव करवाने के लिए सैकड़ों करोड़ रुपये का अतिरिक्त बजट चाहिए, जो सरकार के लिए तत्काल उपलब्ध कराना मुश्किल है।
इसके अलावा 'वन स्टेट वन इलेक्शन' की सबसे बड़ी बाधा संवैधानिक प्रावधान हैं। जब तक संविधान में संशोधन नहीं होता, तब तक सभी पंचायतों और निकायों के चुनाव एक साथ कराना संभव नहीं है। कुछ संस्थाओं का कार्यकाल समय से पहले पूरा करवाने और कुछ के चुनाव टालने के लिए विशेष अनुमति की जरूरत होगी। कोरोना जैसी असामान्य परिस्थितियों में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से चुनाव टालने की अनुमति ली थी, लेकिन अब हाईकोर्ट के सख्त रुख के बाद यह विकल्प भी बंद हो गया है।
राज्य निर्वाचन आयोग के जल्द चुनाव करवाने के फैसले ने सरकार की 'वन स्टेट वन इलेक्शन' की घोषणा को विफल कर दिया है। पंचायती राज चुनावों में सरपंच किसी राजनीतिक दल के चुनाव चिह्न पर नहीं लड़ते, इसलिए इनका सियासी असर सीमित हो सकता है। लेकिन नगर निगम, नगर परिषद और नगरपालिकाओं के चुनावों में पार्षद, मेयर, सभापति और अध्यक्षों के परिणाम सियासी नरेटिव को प्रभावित करेंगे। विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस, सरकार की इस विफलता को बड़ा मुद्दा बना सकती है।
राज्य निर्वाचन आयोग अगले सप्ताह तक चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करेगा। सरकार की कैबिनेट सब-कमेटी की परिसीमन पर रिपोर्ट का इंतजार है। यदि समय पर परिसीमन की अधिसूचना जारी हो जाती है तो नए वार्डों और सीमाओं के आधार पर चुनाव होंगे। अन्यथा, आयोग पुरानी सीमाओं के आधार पर ही मतदान कराएगा।
पंचायती राज संस्थाओं और निकायों की नई सीमाओं में बदलाव के लिए सरकार ने जो प्रस्ताव तैयार किए हैं, उनकी अधिसूचना जारी करना जरूरी है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो पुरानी सीमाओं के आधार पर ही मतदान होगा। जयपुर, जोधपुर और कोटा नगर निगमों के चुनाव भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा होंगे।
बताते चलें कि चुनाव करवाने में सबसे बड़ी चुनौती वोटर लिस्ट को अपडेट करना है, जिसमें कम से कम दो महीने का समय लगेगा। नए परिसीमन पर अंतिम समय में फैसला होने से असमंजस की स्थिति बन सकती है। इसके अलावा, सरकार और निर्वाचन आयोग के बीच समन्वय की कमी भी एक चुनौती होगी। आयोग को ईवीएम, पुलिस बल और कर्मचारियों की व्यवस्था के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने होंगे।
Published on:
22 Aug 2025 06:13 pm
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