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Jaigarh Fest: जयगढ़ हैरिटेज फेस्टिवल सपोर्टेड बाय राजस्थान पत्रिका रहा, इतिहास पर हुई बात, तो संगीत ने घोली मिठास

Jaipur News: जयगढ़ फोर्ट में विरासत, इतिहास और संगीत का अनूठा संगम देखने को मिला। जयगढ़ हैरिटेज फेस्टिवल के दूसरे दिन लोकसंगीत, विचार-सत्र और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने पूरे माहौल को सुरों और सरगम से भर दिया।

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फोटो: पत्रिका

Jaigarh Heritage Festival 2025: ऐतिहासिक जयगढ़ फोर्ट में रविवार को विरासत और इतिहास पर बात हुई, वहीं लोकगीत और संगीत के साथ शब्दों की गर्माहट घुली, शाम होते ही लोक कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से उत्साह भर दिया। जयगढ़ हैरिटेज फेस्टिवल में दूसरे दिन फोर्ट की वादियों में सुबह से रात तक सुरों की सरगम ने मिठास घोली।

राजस्थान की राजनीतिक-सांस्कृतिक संरचना, जातीय संबंधों, युद्ध रणनीतियों को लेकर मंच पर चर्चा हुई। दिनभर गीत-संगीत के कई सेशन हुए। इसके साथ ही फेस्टिवल का समापन भी हुआ। सुबह की शुरुआत विचारशील वातावरण में हुई, जहां डागर आर्काइव्स म्यूजियम के सहयोग से पंडित मोहन श्याम शर्मा ने प्रस्तुति दी।

इसके बाद जयपुर दरबार में चित्रकला और फोटोग्राफी सत्र में डॉ. गाइल्स टिलॉटसन ने डॉ. मृणालिनी वेंकटेस्वरन से बातचीत की और जयपुर की राजसी विरासत के दृश्य एवं कलात्मक दस्तावेजीकरण को लेकर जानकारियां साझा कीं। जयगढ़ हैरिटेज फेस्टिवल सपोर्टेड बाय राजस्थान पत्रिका रहा। फेस्टिवल टीमवर्क आर्ट्स और पूर्व राजपरिवार के सदस्य पद्मनाभ सिंह के सहयोग से हुआ है।

जिंदगी की राह में…


सर्द हवाओं के बीच गजल की महफिल में दिव्यम और ख्वाब की जोड़ी ने समां बांध दिया। उनकी आवाज ने ऐसा जादू बिखेरा कि महफिल में मौजूद लोग रुमानियत में सराबोर हो उठे। उन्होंने एक के बाद एक जिन्दगी की राह में टकरा गया कोई… बहुत बैचेन है दिल…. करती हैं सखियां कैसी-कैसी बतियां… और दिल लगाना सीखना होगा… समेत कई गजलों की प्रस्तुति दी।

प्रतिभागियों ने स्थापत्य को उकेरा

संगीतकार सौमिक दत्ता ने 'वन साइज फिट्स ऑल' सेशन में सिलाई, हैंडवर्क और प्राचीन हस्तकलाओं को संगीत की लय से जोड़ते हुए अनूठी प्रस्तुति दी। पारंपरिक कारीगरी की बारीकियों को धुनों के उतार-चढ़ाव के साथ समन्वित कर उन्होंने दिखाया कि कैसे सुई-धागे और कपड़ों की बनावट भी रचनात्मक अभिव्यक्ति का रूप ले सकती है। दर्शकों ने संगीत और हस्तकला के इस संगम को काफी सराहा।

स्केचर्स मीट आयोजित

फेस्टिवल में स्केचर्स मीट का भी आयोजन हुआ। इसमें जय राजोरिया और अरविंद सिंह ने सभी उम्र के कलाप्रेमियों को स्केच आर्ट की बारीकियों के बारे में बताया। प्रतिभागियों ने जयगढ़ की दीवारों, कंगुरों और स्थापत्य सौंदर्य को कागज पर उकेरा और इस अनुभव को यादगार बताया।

युद्ध और प्रशासनिक कौशल के मिलते निशान

डॉ. रीमा हूजा ने कहा कि राजस्थान की राजनीति का प्रभाव भारत के व्यापक राजनीतिक ढांचे पर भी पड़ा है। राजस्थान की राजनीतिक-सांस्कृतिक छवि में अनेक वर्गों और समुदायों का योगदान रहा है। सिर्फ जो फिल्मों में आता है, वह ही राजस्थान नहीं है। उन्होंने मिर्जा राजा मानसिंह को याद करते हुए कहा कि उनके काबुल से लेकर बंगाल तक युद्ध और प्रशासनिक कौशल के निशान मिलते हैं। बांग्लादेश और उत्तर भारत के 'मान बाजार उनके ही नाम पर हैं।

सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने का प्रयास

पत्रिका अपनी गहरी जड़ों और कला के संरक्षण के लिए पहचाना जाता है। कुलिशजी के समय से ही पत्रिका संस्कृति से घनिष्ठ रूप से जुड़ा रहा है। साथ ही ऐसे सार्थक अभियानों का हिस्सा रहा है, जो युवाओं को उनकी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने व महत्व को समझाने का कार्य करते हैं। इस वर्ष कुलिशजी की जन्म शताब्दी के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। जयगढ़ फेस्टिवल राजस्थान की संस्कृति और इतिहास के प्रामाणिक उत्सवों में से एक है।

राजनीतिक-सांस्कृतिक छवि में अनेक वर्गों व समुदायों का योगदान

राजस्थान पत्रिका के 'राजस्थान एंड द सबकॉन्टिनेंट पॉलिटिक्स, पॉलिटी एंड द आर्ट ऑफ वॉर' विषयक सत्र में जयपुर को राजधानी बनाने से लेकर मीणा और कछवाओं के बीच के रिश्तों पर संवाद हुआ। इतिहासकार डॉ. रीमा हूजा, शोधकर्ता जिज्ञासा मीणा, इतिहासकार पंकज झा और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिमन्यु सिंह आढ़ा ने राजस्थान की राजनीतिक-सांस्कृतिक संरचना, जातीय संबंधों, युद्ध रणनीतियों को लेकर बात रखी।

डॉ. आढ़ा ने कहा कि इतिहास मल्टीलेयर होता है, जिसे साधारण तरीके से नहीं समझा जा सकता है। उन्होंने मीणा और कछवाहा वंशों के संबंधों को लेकर कहा कि इनके रिश्ते की भी अपनी गहराई है। जब भी कोई नया कच्छवाहा शासक बनता था, तो उसका राज तिलक मीणाओं के नेता द्वारा किया जाता था।

मैं तो पिया से नैना मिला आयी रे… पर झूम उठे लोग

फेस्टिवल में शाम को 'कारीगर स्पॉटलाइट' सत्र में राजस्थानी लोक कलाकार चुग्गे खान ने प्रस्तुति से श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने कार्यक्रम की शुरुआत 'बालमजी म्हारा, साहिबजी म्हारा, झिरमिर बरसे मेव…' की प्रस्तुति के साथ की। इसके बाद उन्होंने 'म्हारो हेलो सुणज्यो रामा पीर… घर-घर होवे पूजा थारी, गांव-गांव गुण गावां…' की प्रस्तुति दी तो श्रोता भी सुर से सुर मिलाते नजर आए। जैसे ही उन्होंने 'मैं तो पिया से नैना मिला आयी रे.. ढोला से नैना मिला आयी रे…' की प्रस्तुति दी तो श्रोता नाचने लग गए।

खड़ताल वर्कशॉप का आयोजन

फेस्टिवल के दौरान प्रसिद्ध लोक कलाकार चुग्गे खान की अगुवाई में खड़ताल वर्कशॉप का आयोजन हुआ। इसमें देश-विदेश के युवाओं ने हिस्सा लिया। वर्कशॉप में पारंपरिक खड़ताल की मूल समझ और ताल-लय पकड़ने की तकनीक के बारे में बताया गया। खान ने प्रतिभागियों को राजस्थान की लोक संगीत परंपरा और खड़ताल के ऐतिहासिक महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि हर ताल के पीछे एक भाव और ऊर्जा छिपी होती है, कलाकार उसे महसूस करके वाद्य में उतारता है।