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Rising Rajasthan: सिंगल विंडो फ्रेम में 14 विभाग निभा रहे औपचारिकता, रूठ रहे निवेशक

पिछली सरकारों ने जो एमओयू और एलओआई किए उनका अधिकतम स्ट्राइक रेट 15 प्रतिशत ही रहा है। शेष या तो कागजी प्रक्रिया में उलझ गए या फिर हवा-हवाई साबित हुए।

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राजस्थान में औद्योगिक निवेश की व्यापक संभावनाएं हैं। सरकारें बड़े प्रोजेक्ट व निवेशकों को बुलाने के लिए समिट व सम्मेलन भले ही करती रहीं हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अपेक्षित सुविधाएं नहीं मिलने पर आम तौर पर निवेशक रूठे ही रहे। पिछली सरकारों ने जो एमओयू और एलओआई किए उनका अधिकतम स्ट्राइक रेट 15 प्रतिशत ही रहा है। शेष या तो कागजी प्रक्रिया में उलझ गए या फिर हवा-हवाई साबित हुए। विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें से कई उद्योगपति, निवेशकों ने तो अपने कदम इसलिए पीछे खींच लिए क्योंकि सिंगल विंडो की पुख्ता व्यवस्था नहीं थी। फास्ट ट्रैक पर काम नहीं होने से निवेश नहीं आ पाया।

अब भी यही परेशान करने वाली स्थिति बन रही है। सिंगल विंडो सिस्टम के नाम पर 14 विभागों को कॉर्डिनेशन की जिम्मेदारी दी हुई है, ताकि निवेशकों के प्रोजेक्ट से जुड़ी प्रक्रिया और बाधाओं का एक ही जगह समाधान हो सके। इसके लिए ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टमेंट प्रमोशन (बीआईपी) कमिश्नर के निर्देशन में इन विभागों की हर सप्ताह मीटिंग होना भी तय किया गया, लेकिन सरकार बदलने के बाद इक्का-दुक्का मीटिंग ही की गई। कामकाज का यही ढर्रा बना रहा तो आशंका यह भी जताई जा रही है कि इन्वेस्टमेंट समिट कहीं उद्योगपति-निवेशकों का मिलन समारोह बनकर नहीं रह जाए।

ये हैं विभाग

उद्योग, रीको, श्रम विभाग, नगरीय विकास, स्वायत्त शासन, जलदाय, ऊर्जा, फैक्ट्री बॉयलर, उपभोक्ता मामले विभाग, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, सार्वजनिक निर्माण विभाग, पर्यटन, राजस्व विभाग, प्रदूषण नियंत्रण मंडल।

यह भी काम हो तो बने बात

-उद्योगों के लिए सस्ती और नियमित बिजली की उपलब्धता

-जल आवंटन का स्थायी प्लान और नीति की जरूरत।

-औद्योगिक क्षेत्रों में सस्ती जमीन

-मजबूत कनेक्टिविटी और ट्रांसपोर्ट सिस्टम।

-कानून-व्यवस्था की मजबूती

इन क्षेत्रों में निवेश के लिए एमओयू

थर्मल व अक्षय ऊर्जा

पर्यटन स्टार्टअप

यूचर रेडी सेक्टर

एग्री बिजनेस शिक्षा

एग्रो फूड इण्डस्ट्री

सूचना एवं प्रौद्योगिकी

इन्फ्रास्ट्रकचर

चिकित्सा माइनिंग

निवेशकों के विश्वास के लिए यह जरूरी…

फास्ट ट्रैक डेस्क पर हो काम- जो एमओयू हुए हैं, उनके लिए फास्ट-ट्रैक डेस्क बने और उसकी जवाबदेही तय हो। सप्ताह में एक बार जिला कलक्टर खुद मॉनिटरिंग करें। जिन-जिन उद्यमियों-संस्थानों ने एमओयू किए हैं, टीम उनसे संपर्क में रहे। 100 करोड़ से ज्यादा निवेश वाले प्रोजेक्ट्स की मुयमंत्री स्तर पर समीक्षा होगी तो अफसरों में भी सक्रियता ज्यादा बनेगी।

यहां हो रहा- गुजरात, पंजाब, तमिलनाड़ु, तेलंगाना में इसी तर्ज पर काम हो रहा है।

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