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जिस काले कानून को प्रवर समिति ने भी नकारा था, अब उस कानून का अस्तित्व भी समाप्त

विधानसभा में मंगलवार को सरकार काले कानून को वापस ले लिया।

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kala kanoon

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जयपुर। विधानसभा में मंगलवार को सरकार काले कानून को वापस ले लिया। गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया की अनुपस्थिति में सार्वजनिक निर्माण मंत्री युनूस खान ने प्रस्ताव को सदन में रखा।

सरकार ने इस विधेयक को पिछले विधानसभा सत्र में 25 अक्टूबर 2017 को प्रवर समिति को सौंपा था। हैरान करने वाली बात यह कि इस काले कानून पर प्रवर समिति के सदस्य भी चर्चा करने के लिए तैयार नहीं थे। इस लिए इस विधेयक पर एक भी बैठक नहीं हो सकी।

कई सदस्यों ने तो विधेयक को प्रवर समिति में चर्चा के लिए लाने पर असहमति परिपत्र तक लाने की चेतावनी तक दे डाली थी। उसके बावजूद भी सरकार इस बिल को वापस लेने के लिए किरकिरी से बचने के लिए यह विधेयक प्रवर समिति को सौंपे जाने का बहाना करती रही।

मंगलवार को औपचारिक रूप से यह विधेयक विधानसभा में वापस ले लिया गया है। इसके बाद अब इसका कोई अस्त्तिव नहीं रहेगा। प्रवर समिति में गृह मंत्री के अलावा सात सदस्य और थे।


बता दें कि सोमवार को विधानसभा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बजट पर जवाब के दौरान काला कानून लेने की घोषणा की थी। दागी लोकसेवकों को बचाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) मं संशोधन को वापस लेने की घोषणा करते हुए सीएम ने कहा कि काले कानून को वैसे तो सलेक्ट कमेटी को भे दिया था। यह अब तक लागू भी नहीं हो सका है। इसका अध्यादेश भी लैप्स हो चुका है। ऐसे में कानून को वापस लेने की जरूरत तो नहीं थी लेकिन फिर भी सरकार इसे सलेक्ट कमेटी से वापस ले रही है।

क्या था काला कानून
सीआरपीसी में संशोधन के जरिए सरकार दागी लोक सेवकों की कारगुजारियां छुपाने और अदालत के हाथ बांधने की कोशिश में जुटी थी। कानून लागू होने पर न तो दागी लोक सेवकों के नाम उजागर हो पाते न ही अभियोजन स्वीकृति के बिना इस्तगासों पर कोर्ट से जांच का आदेश मिल पाता। इन दोनों पर ही सरकार पाबंदी लगााने की कोशिश में थी। संशोधन के तहत यह पाबंदी पदीय कर्तव्य के तहत न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या लोकसेवक द्वारा किए कार्य को लेकर दायर इस्तगासों के मामलों में लागू करने का प्रावधान किया गया था। संशोधन में अधीनस्थ कोर्ट के सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत इस्तगासे पर सीधे जांच के आदेश देने पर रोक का प्रावधान था। अभियोजन स्वीकृत आने तक इंतजार करने का प्रावधान भी था।

नाम जाहिर करने पर थी सजा
आईपीसी की धारा 228 में 228 बी जोड़कर प्रावधान किया गया था कि सीआरपीसी की धारा 156 (3) और 190 (1) के प्रावधानों के विपरीत कार्य किया गया तो 2 साल कारावास एवं जुर्माने की सजा दी जा सकेगी। अभियोजन स्वीकृति मिलने से पहले नाम, पता, फोटो या परिवार की जानकारी का प्रकाशन या प्रसारण नहीं हो सकेगा।