
Court (फाइल फोटो पत्रिका)
जयपुर। हाईकोर्ट ने पंचायत प्रतिनिधियों को हटाने में नियमों की अनदेखी पर एतराज किया है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुना हुआ प्रतिनिधि जनता की आवाज होता है और उसे पद से हटाने में अत्यधिक सावधानी व निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। एक मामले में तो कोर्ट की सख्ती के बाद सरकार ने प्रधान का निलंबन ही वापस ले लिया।
न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड व न्यायाधीश अवनीश झिंगन ने पिछले दिनों पंचायत प्रतिनिधियों को हटाने के दो अलग-अलग मामलों में नियमों की पालना नहीं होने पर आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा कि राजस्थान पंचायती राज नियमों के नियम 22 में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना पंचायत प्रतिनिधि हटाने के आदेश पारित किए जा रहे हैं। जांच अधिकारी के नियमों की पालना नहीं करने से आदेशों में गंभीर त्रुटि हो रही है।
न्यायाधीश ढंड ने पूर्णमल वर्मा के मामले में पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिव, सभी संभागीय आयुक्तों और कलक्टरों को निर्देश दिया कि वे सभी पंचायत समितियों के मुय कार्यकारी अधिकारियों को नियम 22 में निर्धारित प्रक्रिया से अवगत कराएं, ताकि चुने हुए प्रतिनिधियों को हटाते समय गलतियों से बचा जा सके। साथ ही, टोंक जिले की पनवार ग्राम पंचायत के सरपंच वर्मा के मामले को कोर्ट ने पुनर्विचार के लिए भेज दिया।
उधर, न्यायाधीश झिंगन ने खैरथल-तिजारा जिले की कोटकासिम पंचायत समिति प्रधान विनोद कुमारी सांगवान के मामले पर दखल किया। सरकार ने बीडीओ से मारपीट के आरोप में प्रधान को निलंबित कर दिया था, जिस पर याचिकाकर्ता सांगवान के अधिवक्ता प्रदीप कलवानिया ने कहा कि मारपीट के मामले में कलक्टर से जांच करवाई और मात्र सात दिन में प्रधान को दोषी मानकर निलंबित भी कर दिया। इस पर कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सरकार के अधिवक्ता से कहा कि चुने हुए प्रतिनिधि से ऐसा व्यवहार नहीं किया जा सकता। कोर्ट के सख्त रुख के बाद सरकार ने कुछ ही घंटों में निलबन वापस ले लिया।
Published on:
04 Aug 2025 07:59 am
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