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राजस्थान: बारिश अधिक होने से बदला खेती का मिजाज, मरुधरा में भी धान की बुवाई, कम पानी वाली फसलें हो रहीं पीछे

कभी कम पानी के कारण मरूभूमि राजस्थान की पहचान बने इस मोटे अनाज को यहां के अन्नदाता ने भी उगाना कम कर दिया है। इसके चलते यहां डेढ़ दशक से कृषि का परिदृश्य बदल रहा है। पढ़ें कानाराम मुण्डियार की ये रिपोर्ट...

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जयपुर

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Arvind Rao

Aug 02, 2025

Rajasthan Rains Change Farming Trend

Rajasthan Rains Change Farming Trend (Patrika Photo)

जयपुर: केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से पोषण और स्वास्थ्य जागरुकता को लेकर चलाए जा रहे अभियानों के चलते मोटे अनाज यानी मिलेट्स को लोगों की थाली में अब पहले से अधिक जगह मिलने लगी है। डॉक्टर और न्यूट्रीशन एक्सपर्ट भी लगातार इसकी उपयोगिता को रेखांकित कर रहे हैं।


लेकिन इसके विपरीत चिंता की बात यह है कि खेतों से मिलेट्स दूर होते जा रहे हैं। राजस्थान जैसे मरूभूमि वाले राज्य, जहां कभी कम पानी की उपलब्धता के चलते बाजरा-ज्वार जैसी फसलें किसान की पहली पसंद थीं, वहां अब इन फसलों की बुवाई लगातार घटती जा रही है।


राजस्थान की कृषि भूमि में बदलाव


पिछले करीब डेढ़ दशक में राजस्थान की कृषि भूमि में बदलाव स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। अब किसान अधिक पानी मांगने वाली चावल, मक्का, मूंगफली और सोयाबीन जैसी नकदी फसलों की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं।


इस बदलाव के पीछे कुछ स्पष्ट कारण हैं, जिनमें प्रमुख है बाजरा-ज्वार जैसी मोटे अनाज की फसलों को बाजार में अच्छा दाम नहीं मिलना। न ही उपभोक्ताओं के बीच इसकी मांग पहले जैसी रह गई है। मंडियों में भी इन फसलों की खरीद सीमित होती है।


सरकारी खरीद बहुत सीमित


इसके अलावा, सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य के बावजूद इन फसलों की सरकारी खरीद बहुत सीमित है। किसानों को गारंटीकृत बिक्री का भरोसा नहीं होने से वे ऐसे विकल्प चुन रहे हैं, जिनसे तुरंत मुनाफा मिल सके।


नई पीढ़ी का झुकाव खेती की ओर


नई पीढ़ी का झुकाव भी आधुनिक और लाभकारी खेती की ओर है, जिसमें चावल, सोयाबीन और मक्का जैसी फसलें अधिक लाभ देने वाली मानी जाती हैं। सिंचाई सुविधाओं के विस्तार और कृषि तकनीकों के विकास के साथ अब वे फसलें भी राजस्थान में उगाई जा रही हैं, जो पहले यहां के लिए कठिन मानी जाती थीं।


क्या कहना है विशेषज्ञों का


ऐसे में यह विडंबना है कि स्वास्थ्य और पोषण के लिए जितना जोर मिलेट्स को लेकर दिया जा रहा है, किसान उसी से उतनी ही दूरी बना रहा है। अगर यह ट्रेंड जारी रहा तो भविष्य में मिलेट्स को उत्पादन स्तर पर बचाए रखना और मुश्किल हो सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मोटे अनाजों को खेती के रूप में फिर से बढ़ावा देना है तो सिर्फ थाली तक सीमित नहीं, बल्कि मंडी और समर्थन मूल्य के स्तर पर भी ठोस प्रयास करने होंगे।


इसलिए बदल रहा क्रॉप पैटर्न


-बाजरा-ज्वार फसलों को बाजार और मंडियों में अच्छा भाव नहीं मिलता, रसोई तक में डिमांड कम हो गई है।
-एमएसपी के बावजूद मोटे अनाज की फसलों की सरकारी खरीद सीमित मात्रा में होती है।
-नई पीढ़ी का चावल, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली जैसी नकदी और त्वरित मुनाफे खेती की ओर रुझान।