
राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा। फोटो पत्रिका
Rajasthan : राजस्थान में शहरी और ग्रामीण सरकारों की राजनीति में अब एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। राज्य के नगरीय निकायों और ग्राम पंचायतों की बागडोर जनप्रतिनिधियों से लेकर अफसरों के हाथों में जा रही है। राज्य की 11310 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, और पंचायत समितियों और जिला परिषदों का कार्यकाल भी जल्द खत्म होने वाला है। वहीं, शहरी निकायों में अगले साल जनवरी तक 196 में से 113 नगर निकायों (नवगठित निकायों को छोड़कर) का कार्यकाल पूरा हो जाएगा।
यह पहला मौका होगा जब प्रदेश में एक साथ इतनी बड़ी संख्या में शहरी और ग्रामीण निकायों पर प्रशासक शासन लागू होगा। राज्य सरकार इन निकायों में चुनाव कराने की बजाय फिलहाल अफसरों को प्रशासक नियुक्त करने में व्यस्त है। अब तक नवगठित 113 और कार्यकाल पूरा करने वाले 53 नगरीय निकायों की कमान अफसरों को सौंपी जा चुकी है। इसमें प्रमुख शहर जैसे अलवर, भरतपुर, पाली, बीकानेर और उदयपुर भी शामिल हैं।
इसके अलावा जयपुर, जोधपुर और कोटा के छह नगर निगमों का कार्यकाल 9 नवंबर को समाप्त हो रहा है। इन तीनों शहरों में एक-एक निगम रहेगा और संभागीय आयुक्त प्रशासक के रूप में कार्यभार संभालेंगे। शेष 141 निकायों का कार्यकाल भी अगले दो महीने में समाप्त हो जाएगा।
इस तरह फरवरी 2024 के पहले पखवाड़े तक प्रदेश के सभी शहरी निकायों में कोई जनप्रतिनिधि नहीं रहेगा। इसके साथ ही पंचायत समितियों और जिला परिषदों का कार्यकाल भी दिसंबर में समाप्त होने जा रहा है, जबकि न्यायालय राज्य सरकार को चुनाव कराने के लिए कई बार आदेश दे चुका है।
1,09,228 पंच ग्राम पंचायत में
11,320 सरपंच ग्राम पंचायत में
10,175 पार्षद निकायों में
6,995 पंचायत सीमित सदस्य
1,014 जिला पंचायत सदस्य
(अभी करीब 3,500 नई पंचायतों की इकाई और बनेगी, जिनमें करीब 20 हजार नए जनप्रतिनिधि और चुने जाएंगे)
राज्य की 11695 ग्रामीण इकाइयों में, जहां जनता हर पांच साल में अपने जनप्रतिनिधियों को चुनती थी, अब अफसरों द्वारा प्रशासक नियुक्त किए जाएंगे। 11310 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल खत्म हो चुका है, लेकिन चुनाव न होने की वजह से सरपंचों को प्रशासक नियुक्त किया गया है। इसी तरह, 352 पंचायत समितियों में से 222 समितियों का कार्यकाल नवंबर-दिसंबर में समाप्त हो जाएगा। सरकार ने फिलहाल इन इकाइयों के चुनाव कराने की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की है।
निकाय - शुरू - समाप्त
49 - नवम्बर - 19 नवंबर-24
03 - अक्टूबर - 20 अक्टूबर-25
06 - नवम्बर - 20 नवम्बर-25
47 - दिसम्बर - 20 दिसम्बर-25
90 - जनवरी - 21 जनवरी-26
01 - फरवरी - 21 फरवरी-26
पंचायती राज संस्थाओं और नगरीय निकायों का कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद चुनाव नहीं कराए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिकाओं की सुनवाई पूरी हो चुकी है, लेकिन अभी तक फैसला नहीं आया। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने राज्य निर्वाचन आयोग को पांच साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने का आदेश दिया था, जिस पर खंडपीठ ने रोक लगा दी। इसके बाद एकलपीठ ने नगरीय निकायों के चुनाव कराने का आदेश दिया, जो अब तक लागू नहीं हो पाया है।
जनता की सबसे बड़ी चिंता यही है कि अब वे अपनी रोजमर्रा की समस्याएं किससे कहेंगे। पहले वार्ड पार्षद, सरपंच और पंचायत सदस्य तक आसानी से पहुंच हो जाती थी। वे अपनी क्षेत्रीय जनता के साथ रहते थे, इसलिए कॉलोनी या गांव की समस्याओं को अच्छे से समझकर हल कर पाते थे। लेकिन अब जब निकायों और ग्राम पंचायतों की कमान अफसरों के हाथों में जाएगी, तो लोगों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ेंगे। दूर बैठे अफसरों से मिलना और उनसे समाधान प्राप्त करना न केवल मुश्किल होगा, बल्कि समय पर एक्शन लेना भी एक चुनौती बन सकता है।
प्रदेश में नगरीय निकायों का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। परिसीमन और पुनर्गठन की प्रक्रिया के बाद 2700 नए वार्ड बनाए गए हैं। अब 10175 वार्डों में चुनाव होंगे, जबकि पहले 7475 वार्ड ही थे। 2019 में 196 नगरीय निकाय थे, अब यह संख्या बढ़कर 309 हो गई है।
Q निकायों में कार्यकाल खत्म हो रहा है, चुनाव कब कराएंगे?
- एक राज्य-एक चुनाव के तहत आगे बढ़ रहे हैं। सरकार दिसम्बर-जनवरी में चुनाव कराने को तैयार थी, लेकिन ओबीसी आयोग की प्रक्रिया लंबी खिंचने और विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान शुरू होने से चुनाव नहीं कराए जा सकते। फरवरी-मार्च तक चुनाव कराने का प्रयास करेंगे।
Q जनता अफसरों के भरोसे हैं, क्या इससे समस्याएं नहीं बढ़ेंगी?
- प्रशासकों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि जनता की समस्याओं की तुरंत सुनवाई की जाए। जो लापरवाही करेगा, उसे परिणाम भुगतने होंगे। पूर्व पार्षदों के जरिए लोग अपनी समस्याएं अफसरों तक पहुंचा सकते हैं। हम सभी नेताओं से भी उम्मीद करते हैं कि वे जनता के बीच बने रहें।
Q हाईकोर्ट चुनाव कराने के आदेश दे रहा है, आदेश क्यों नहीं माना?
- सरकार कोर्ट का पूरा सम्मान करती है, लेकिन अब विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान चल रहा है। कोर्ट को इसकी जानकारी दी जा रही है।
जनता में सरकार के प्रति नकारात्मक माहौल है। कांग्रेस की ओर से किए गए 73वें और 74वें संविधान संशोधन से भी सरकार को चिढ़ है। सरकार ब्यूरोक्रेसी के सहारे ही शासन चला रही है, यही पैटर्न वे नीचे तक लागू करना चाहती हैं।
गोविंद सिंह डोटासरा, प्रदेशाध्यक्ष, कांग्रेस
एक राज्य-एक चुनाव प्रक्रिया के तहत चुनाव बार-बार होने से बेहतर है कि एक बार में सभी चुनाव किए जाएं। ओबीसी आयोग की रिपोर्ट आते ही चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
मदन राठौड़, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा
कार्यकाल समाप्त होने से पहले नए चुनाव कराना अनिवार्य है। धारा 11 में भी यह प्रावधान स्पष्ट है कि प्रशासक केवल दो स्थितियों में नियुक्त किया जा सकता है-एक, नए निकाय में और दूसरा, भंग किए गए निकाय में। ऐसे में छह महीने के भीतर चुनाव कराना जरूरी है।
अशोक सिंह, पूर्व विधि निदेशक
अन्य पिछड़ा वर्ग को पंचायती राज संस्थाओं और नगरीय निकाय चुनाव में आरक्षण से संबंधित रिपोर्ट जल्द पेश करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, रिपोर्ट तैयार होने में कितना समय लगेगा, यह कहना मुश्किल है।
मदन लाल भाटी, अध्यक्ष, राजस्थान राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग (राजनीतिक प्रतिनिधित्व) आयोग
Updated on:
08 Nov 2025 09:09 am
Published on:
08 Nov 2025 09:08 am
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