मंदिर के गर्भ गृह में मूलनायक ऋषभदेव के साथ दो अन्य तीर्थंकरों की मूर्ति देवविमान के आकार के सुन्दर मकराने की वेदी पर विराजमान है। इस वेदी पर बहुत ही बारीक कोरनी और जयपुर शैली में सोने का काम किया हुआ है। मूलगंभारे के बाहर विशाल रंगमंडप है जिसके गुम्बज में वाद्ययंत्र हाथ में लिए हुए 16 नर्तकियों की कलात्मक मूर्तियां हैं। इसके साथ ही 24 तीर्थंकरों के मिनिएचर पेंटिंग्स, प्राकृतिक रंगों और सोने से बनी हुई है। रंगमंडप के बाहर की तरफ एक तोरणद्वार है जो की आबू के विश्वप्रसिद्ध देलवाड़ा मंदिर के तोरण से मिलते जुलते है। रंगमंडप के खम्भों और दरवाजे में अनेक देवी-देवताओं, यक्ष- यक्षिणियों आदि की मूर्तियां बनी हुई है। पुरे रंगमंडप में प्राकृतिक रंगों (कीमती रंगीन पत्थरों और जड़ी बूटियों के चूर्ण से निर्मित) का बहुलता से उपयोग कर इसे नयनाभिराम बनाया गया है।
65 फीट ऊंचा शिखर
जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के संघ मंत्री ज्योति कोठारी ने बताया कि मंदिर का 65 फीट ऊंचा शिखर प्रतिहार शैली में बना है। इसमें चार दिशाओं में चार तीर्थंकर मूर्तियां भी बनी हुई है। इस मंदिर के साथ ही आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभु भगवन का भी एक मंदिर है इसलिए यह जुड़वां मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर का स्वामित्व और व्यवस्था जयपुर के जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के अधीन है। इस संस्था के तहत 10 सितम्बर को सुबह जौहरी बाजार स्थित शिवजीराम भवन में भगवन महावीर का जन्म वाचन उत्सव मनाया जाएगा, जिसमें समाज के धर्मावलंबी हिस्सा लेंगे।