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राजस्थान में सिलिकोसिस का कहर: हर दिन 4 मौतें, सपनों के महल बनाने वाले मजदूर खुद दम तोड़ रहे

राजस्थान में 'सिलिकोसिस' का कहर बढ़ता जा रहा है। दो साल में 5 हजार 983 मामले सामने आए, जिनमें 2 हजार 917 मरीजों की मौत हो चुकी है। कई जिलों में मौतें मरीजों से ज्यादा हैं, जिससे देर से पहचान उजागर होती है।

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Silicosis

बांदीकुई के बड़ियाल कला क्षेत्र में सिलिकोसिस से पीड़ित लोग (फोटो- पत्रिका)

जयपुर: पत्थरों को तराशकर दूसरों के सपनों का महल खड़ा करने वाले मजदूर आज खुद अपनी ही सांसों की जंग हार रहे हैं। राजस्थान के धूल भरे रास्तों और खनन की खदानों से एक ऐसी खामोश चीख सुनाई दे रही है, जिसे ‘सिलिकोसिस’ कहते हैं।

बता दें कि यह सिर्फ एक बीमारी नहीं, बल्कि उन हजारों परिवारों की त्रासदी है, जहां चूल्हा जलाने के जतन में घर के मुखिया पत्थर बन रहे हैं। आंकड़ों की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस बीमारी के शिकार लोगों में से औसतन चार लोग हर रोज काल का ग्रास बन रहे हैं।

राजस्थान में जानलेवा फेफड़ों की बीमारी सिलिकोसिस का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। हालत यह है कि कई जिलों में तो मौत के मामले मरीजों से भी ज्यादा हैं। इससे जाहिर है कि बड़ी संख्या में मरीजों की पहचान बहुत देर से हो रही है।

प्रदेश में पिछले दो साल में सामने आए मरीजों की बात करें तो राज्य में 5 हजार 983 मामले सामने आए हैं। इनमें 3 हजार 066 मरीज हैं, जबकि 2 हजार 917 मरीजों की मौत हो चुकी है। यानी लगभग आधे मामले मौत के हैं, जो बीमारी की भयावहता को उजागर करते हैं। करौली और सिरोही जैसे जिलों में डरावने हालात हैं। दो साल में करीब तीन हजार लोगों की मौत हुई है।

खनन और पत्थर उद्योग की मार

विशेषज्ञों के अनुसार, जिन जिलों में खनन, पत्थर कटाई, क्रशर और माइंस अधिक हैं। वहीं सिलिकोसिस का प्रभाव भी ज्यादा है। लंबे समय तक सिलिका युक्त धूल में काम करने वाले मजदूर इसकी चपेट में आ रहे हैं। समय पर जांच, सुरक्षा उपकरण और पुनर्वास की कमी बीमारी को घातक बना रही है।


सवाल जो खड़े होते हैं…


-क्या मरीजों की समय पर स्क्रीनिंग हो रही है?
-जिन जिलों में मौतें ज्यादा हैं, वहां इलाज और निगरानी व्यवस्था क्यों कमजोर रही?
-मुआवजे के साथ-साथ रोकथाम और वैकल्पिक रोजगार पर कितना काम हुआ?

शहरमौतेंमरीज
जोधपुर580617
दौसा254720
करौली391225
सिरोही28067
धौलपुर235189
भरतपुर202163
भीलवाड़ा156178

रोकथाम जरूरी…

समय पर रोग की पहचान, काम के दौरान सुरक्षा मानकों का पालन और धूल रहित कार्य वातावरण ही सिलिकोसिस से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है। शुरुआती लक्षण दिखते ही मजदूर को जोखिम वाले काम से हटाकर निगरानी में रखा जाए, तभी बीमारी को घातक बनने से रोका जा सकता है।
-डॉ. नीरज गुप्ता, एमडी (श्वसन चिकित्सा), जेएलएन मेडिकल कॉलेज, अजमेर