
विदेश में आहुति देते एनआरआइ (फोटो-पत्रिका)
जयपुर। सात समंदर पार भी भारतीय परंपराओं की लौ बुझी नहीं है। पितृपक्ष की यह परंपरा अब भारत तक सीमित नहीं है। अमरीका, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, दुबई, इंग्लैंड और कनाडा तक पूर्वजों की याद में सामुदायिक भवनों और मंदिरों में आयोजन हो रहे हैं। एनआरआइ परिवार आधुनिक जीवनशैली के बीच पूर्वजों के लिए तर्पण, भजन, हवन और दान-पुण्य कर सनातन संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं।
विदेशों में भारतीय समाज और ब्राह्मण संगठनों ने इस परंपरा को जीवित रखने का बीड़ा उठाया है। कहीं सामूहिक तर्पण तो कहीं घर-घर परिजन अपने पूर्वजों को याद कर पिंडदान और तर्पण कर रहे हैं। विद्वान ब्राह्मणों की उपलब्धता न होने पर प्रवासी भारतीय स्वयं धार्मिक ग्रंथों को पढ़कर अनुष्ठान कर रहे हैं।
न्यूजर्सी निवासी वेद राठौड़ व भीम राघव ने कहा कि बच्चे और युवा भी देखते हैं कि उनके माता-पिता कैसे पूर्वजों को तर्पण करते हैं। पूर्वजों का पसंदीदा भोजन बनाने के साथ ही उनके नाम का ग्रास निकालते हैं। भारत से वीडियो कॉल पर पंडित से तर्पण करवाते हैं।
सर्व ब्राह्मण महासभा एसोसिएशन ऑस्ट्रेलिया के संस्थापक रवि शर्मा ने बताया कि सब लोग एकत्र होकर पूर्वजों को याद करते हैं। सामूहिक अनुष्ठान में संस्था के वरिष्ठ लोग पूजन कराते हैं। जाति, धर्म के भेद से परे रहकर हवन में आहुति देने के साथ कौए को खाना खिलाया जाता है। गोसेवा के साथ ही मंदिर में भजन कीर्तन किया जाता है। वहीं वर्जीनिया निवासी मोनी-रमित माथुर ने कहा कि मंदिर में खाने के लिए राशन सामग्री और दान दिया जाता है। साथ ही सामाजिक प्रकल्पों को पूरा किया जाता है।
सनातन संस्कृति में श्राद्ध पूर्वजों का आभार जताने की क्रिया है। श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है। यानी जो कार्य श्रद्धा से किया जाए वह श्राद्ध है। श्राद्ध में श्रद्धा के साथ प्रकृति की भी उपासना है। श्राद्ध के दौरान पंच बलि में गो, श्वान, काक, चींटियों को भोजन कराकर सेवा कार्य किया जाता है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। -पं. सुधाकर पुरोहित, ज्योतिषाचार्य
Published on:
11 Sept 2025 09:16 am
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