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जानिए क्या है यह विवादित अध्यादेश और क्यों सरकार को लेना पड़ा वापस

अब यह बिल संशोधन के साथ अगले सत्र (बजट सत्र) में आएगा...

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जयपुर

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Dinesh Saini

Oct 24, 2017

Vasundhara

जयपुर। अफसरों-नेताओं को संरक्षण देने वाले विवादित बिल पर आखिरकार राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार झुक ही गई। भ्रष्ट लोकसेवकों को बचाने के लिए लाया गया दण्ड प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक-2017 को चौरतरफा विरोध और विपक्ष के भारी हंगामे के बाद राज्य विधानसभा ने मंगलवार को प्रवर समिति को सौंप दिया। अब यह बिल संशोधन के साथ अगले सत्र (बजट सत्र) में आएगा। प्रवर समिति गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया की अध्यक्षता में बनेगी और बिल में संधोशन को लेकर मंथन करेगी। आइए जानते हैं राजे सरकार के इस विवादित अध्यादेश के बारे में, आखिर ये है क्या?

क्या है काला कानून
वसुंधरा राजे सरकार एक अध्यादेश लेकर आई है। जिसके अनुसार अब पूर्व और वर्तमान जजों, मजिस्ट्रेटों और सरकारी कर्मियों के खिलाफ पुलिस या कोर्ट में शिकायत करना आसान नहीं होगा। ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज कराने के लिए सरकार से इजाजत लेना जरूरी होगा।

आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 के अनुसार ड्यूटी के दौरान किसी जज या किसी भी सरकारी कर्मी की कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट के माध्यम से भी प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जा सकती। इसके लिए सरकार की स्वीकृति अनिवार्य होगी। हालांकि यदि सरकार इसकी स्वीकृति नहीं देती है तो 180 दिन के बाद कोर्ट के माध्यम से प्राथमिकी दर्ज कराई जा सकती है।

इस अध्यादेश के अनुसार किसी भी सरकारी कर्मी, जज या अधिकारी का नाम या कोई अन्य पहचान तब तक प्रेस रिपोर्ट में नहीं दे सकते, जब तक सरकार इसकी अनुमति न दे। इसका उल्लंघन करने पर दो वर्ष की सजा का प्रावधान है।

आम आदमी सोशल मीडिया पर भी नहीं कर सकेगा पीड़ा उजागर
भ्रष्ट अफसरों को बचाने के लिए सरकार ने मीडिया और अदालत को ही नहीं, आम आदमी को भी पूरी तरह दायरे में बांध दिया है।

सुनवाई नहीं होने पर वह पीड़ा सोशल मीडिया पर भी उजागर नहीं कर पाएगा। अभियोजन स्वीकृति से पहले अफसर का नाम सोशल मीडिया पर उछाला तो उसे दो साल की सजा भोगनी पड़ सकती है।

यूं चलेगी मनमानी
विधिवेत्ता सवाल उठा रहे हैं कि अभियोजन के लिए तो स्वीकृति का सीआरपीसी की धारा 197 में प्रावधान है लेकिन जांच के लिए प्रावधान नहीं है। भ्रष्टाचार के मामलों में अब तक स्थिति यह है कि 20 फिसदी लोकसेवकों के खिलाफ तो अभियोजन स्वीकृति दी ही नहीं जाती। अब सब कुछ अंदरखाने चलेगा, जिससे अभियोजन स्वीकृति में मनमानी बढ़ेगी।

इस अध्यादेश के पीछे सरकार का ये रहा तर्क
राजे सरकार का कहना है कि कुछ झूठे शिकायतकर्ताओं और ब्लैकमेलर मीडिया के चलते ईमानदार अधिकारियों का काम करना मुश्किल हो गया है। ऐसे में ईमानदार अधिकारियों की छवि खराब न हो इसलिए यह कानून लाना पड़ा। सरकार का कहना है कि मीडिया कुछ अधिकारियों को चिहिंत करके खबर करती है। इससे सही अफसर को काम करने में परेशानी होती है। दरअसल, यह कानून फर्जी आरोपों की आड़ में पूरे सिस्टम को जवाबदेही से बचाने की कवायद है।

कांग्रेस ने दी काले कानून की संज्ञा
कांग्रेस ने राज्य की भाजपा सरकार द्वारा लाए जा रहे दण्ड विधियां राजस्थान संशोधन अध्यादेश, 2017 का विरोध करते हुए इसे काले कानून की संज्ञा दी है। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ऐसा काला कानून बना रही है जिससे घूसखोर कार्मिकों के हौसले बुलंद होंगे, राज्य में हर स्तर पर भ्रष्टाचार का बोलबाला होगा और कोई उसके खिलाफ आवाज उठा सकेगा।

बीजेपी विधायकों ने भी किया विरोध
विपक्ष तो राजे सरकार के इस अध्यादेश का विरोध कर ही रही है। लेकिन बीजेपी विधायकों ने भी इसका समर्थन नहीं किया है। बीजेपी विधायक नरपत सिंह राजवी और घनश्याम तिवाड़ी ने कहा कि ये बिल बीजेपी के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के विरोध में लाया गया बिल है, इसलिए हम इसका समर्थन नहीं कर सकतें।

तो काले कानून के विधेयक पर इन वजहों से झुकी सरकार...
- कानूनविदों की आपत्ति: सरकार की ओर से यह संशोधन किया जाना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन है।
- आगामी चुनावों के मध्यनजर प्रावधान में संशोधन।
- वकीलों का विरोध- न्यायिक काम का किया बहिष्कार।
- विपक्ष के साथ-साथ सत्तापक्ष के द्वारा भी विरोध।
- आम जनता भी इस अध्यादेश के खिलाफ।