31 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

मरुस्थल से लुप्त हो रही फोग झाड़ी, संरक्षण की दरकार

निरंतर पडऩे वाले अकाल, नहरी व नलकूूप क्षेत्र में कृषि कार्य में हुई वृद्धि के कारण मरुस्थल की ऐसी कई उपयोगी झाडिय़ां, जो धीरे-धीरे लुप्त प्राय होने लगी है।

2 min read
Google source verification
jsm

निरंतर पडऩे वाले अकाल, नहरी व नलकूूप क्षेत्र में कृषि कार्य में हुई वृद्धि के कारण मरुस्थल की ऐसी कई उपयोगी झाडिय़ां, जो धीरे-धीरे लुप्त प्राय होने लगी है। फोग झाडिय़ां है, जो पशुओं के लिए ही नहीं, बल्कि मानव जीवन के लिए जीवनदायिनी झाड़ी मानी जाती है। यह झाड़ी मरुस्थली क्षेत्र में ही पाई जाती है। अब फोग बाहुल्य क्षेत्रों में अब फोग की झाडिय़ां भी लगभग समाप्त होने लगी है। मरुप्रदेश की महत्वपूर्ण झाड़ी फोग की झाड़ी रेगिस्तान की एक महत्वपूर्ण वनस्पति में आती है। जिसकी लम्बाई कम होती है, लेकिन धरती पर चौड़ाई में अधिक फैलती है। इसकी छोटी-छोटी हरी पत्तियां पशुओं के लिए पौष्टिक आहार मानी जाती है तो इसकी फलियों में निकलने वाले बीज की रोटी भी बनाई जा सकती है। जिसे खाकर व्यक्ति अपना निर्वाह भी कर सकते है। क्षेत्र में वर्षों पूर्व पड़े भीषण अकाल के दौरान लोगों की ओर से यहां फोग के बीज की रोटियां बनाकर अपना जीवनयापन करने की भी जानकारी मिलती है। इस झाड़ी से निकलने वाले रस आक्लेटैक्स के विष के प्रतिरोधी के रूप में भी माना जाता है। इस झाड़ी का तना व लकडिय़ां ईंधन के रूप में भी उपयोग लिए जाते है। यह झाड़ी जमीन पर अधिक फैलने के कारण आंधियों के दौरान उपजाऊ मिट्टी को रोकने व खेतों में भूमि के कटाव को रोकने का भी कार्य करती है।

संरक्षण की दरकार

फोग की झाडिय़ां विशेष रूप से मरुस्थलीय इलाकों, शुष्क मैदानी क्षेत्रों गंगानगर, पंजाब आदि क्षेत्रों में अधिकतर पाई जाती है। मरुस्थल क्षेत्र के बहुउपयोगी झाड़ी को वनस्पति की विलुप्त होती झाडिय़ों में सम्मिलित कर इसके संरक्षण के प्रयास नहीं किए गए तो पश्चिमी राजस्थान से हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी। फोग की झाडिय़ां सर्वाधिक रूप से सीमावर्ती नाचना क्षेत्र में पाई जाती थी। यहां इन्दिरा गांधी नहर से हो रही सिंचाई व आधुनिक कृषि यंत्रों की चपेट में आने से फोग की झाडिय़ां लुप्तप्राय होती जा रही है। इसके अलावा पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में गए नवतला, केरू, बालाना, काहला, सोजिया, एटा सहित 20 गांवों में सर्वाधिक फोग की झाडिय़ां पाई जाती थी। यहां आए दिन होने वाले युद्धाभ्यास व फायरिंग के दौरान भी झाडिय़ां समाप्त हो गई। यहां आम लोगों व पशुओं का जाना भी प्रतिबंधित है। इसी प्रकार फलसूंड, भणियाणा, लाठी, चांधन, अजासर, लोहारकी, चांदसर, बरड़ाना, नया नवतला व आसपास क्षेत्र के रेतीले धोरों में पाई जाती थी, लेकिन किसानों की ओर से कृषि कार्यों व खेती के दौरान उन्हें काट दिया गया है। क्षेत्र के वनस्पति विशेषज्ञों के अनुसार फोग प्रजाति की वनस्पति व झाड़ी को बचाने के लिए इंटरनेशनल यूनियन फोर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज आईयूसीएन की रेड डेटा बुक में सिफारिश सूची में भी सम्मिलित किया गया है।