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जैसलमेर का प्रवेश द्वार पोकरण, पर्यटन हब बनने की संभावनाएं अपार

केवल 24 वर्षों के अंतराल में दो बार परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को भारत की सामरिक ताकत से परिचित कराने वाली धरती पोकरण आज भी पर्यटन मानचित्र पर जगह बनाने को तरस रही है।

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केवल 24 वर्षों के अंतराल में दो बार परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को भारत की सामरिक ताकत से परिचित कराने वाली धरती पोकरण आज भी पर्यटन मानचित्र पर जगह बनाने को तरस रही है। स्थिति यह है कि जैसलमेर के किले, हवेलियों, तालाबों और धोरों की बराबरी करने वाले ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों से समृद्ध पोकरण केवल राहगीर पर्यटकों को देखता रह जाता है। यहां पर्यटन को बढ़ावा मिले तो यह स्वर्णनगरी जैसलमेर का सशक्त सहायक बन सकता है। पोकरण फिल्ड फायरिंग रेंज में 1974 व 1998 में हुए परमाणु परीक्षणों के बाद विश्व स्तर पर पहचान बना चुकी परमाणु नगरी को आज भी पर्यटन नगरी बनने का इंतजार है। ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि और यहां की लोक संस्कृति व लोककला की देश में अलग पहचान है। यहां प्रतिवर्ष 5 लाख से अधिक देशी, विदेशी व धार्मिक पर्यटक आते है, लेकिन ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि का पर्याप्त प्रचार नहीं होने से वे यहां की कला से बिना रुबरु हुए ही रुखसत हो जाते है, जिससे यहां आने वाले सैलानियों से पर्यटन व्यवसाय को परोक्ष रूप से लाभ नहीं मिल पा रहा।

दूरी 110 किलोमीटर, पर्यटन 10 प्रतिशत भी नहीं

पोकरण से केवल 110 किलोमीटर दूर जैसलमेर में हर साल करीब 50 लाख से अधिक पर्यटकों की आवक होती है। इनमें से लगभग 85 प्रतिशत पर्यटक जोधपुर व बीकानेर मार्ग से होकर पोकरण से गुजरते है। बावजूद इसके यहां ठहरने वालों की संख्या महज 5 लाख है। ठहरने वाले भी मुख्य रूप से गुजरात से आने वाले श्रद्धालु होते है, जो रामदेवरा और बालीनाथ आश्रम के दर्शन के बाद सीधे जैसलमेर निकल जाते है।

विश्वस्तरीय पहचान, फिर भी पर्यटन मानचित्र से दूर

परमाणु परीक्षणों से पोकरण ने केवल वैश्विक पहचान बनाई, लेकिन आज भी यह शहर केवल परमाणु नगरी के नाम तक सीमित रह गया है। यहां की लोक संस्कृति, कला और ऐतिहासिक धरोहरें पर्याप्त प्रचार के अभाव में हाशिये पर है। नतीजतन, पर्यटक यहां ठहरकर स्थानीय व्यवसाय को लाभ पहुंचाने की बजाय आगे निकल जाते है।ये स्थल है पोकरण की शान

- जैसलमेर का सोनार किला बनाम पोकरण का बालागढ़ फोर्ट, जो रियासतकालीन स्थापत्य और झरोखेदार नक्काशी का बेहतरीन उदाहरण है।- ऐतिहासिक गड़ीसर तालाब की तरह पोकरण के सालमसागर व रामदेवसर तालाब लाल पत्थर से बने घाटों के साथ ऐतिहासिक धरोहर है।

- जैसलमेर की पटवा हवेलियों जैसी ही कलात्मकता पोकरण की लाल पत्थर की दर्जनों हवेलियों में देखने को मिलती है।- जैसलमेर की पीले पत्थर की छतरियों की तर्ज पर पोकरण की पहाड़ी पर बनी लाल पत्थर की छतरियां पर्यटकों को लुभाती है।

धोरे- जैसलमेर के सम व खुहड़ी जैसे धोरों की बराबरी पोकरण क्षेत्र के लोहारकी व फलसूंड के मखमली धोरे कर सकेंगे।- कैलाश टैकरी मंदिर, पुराने साथलमेर के अवशेष और शक्तिस्थल जैसे स्थल भी पर्यटन के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।

...तो पोकरण भी बन सकेगा आकर्षण

पर्यटन विभाग को पोकरण की धरोहरों का ऑनलाइन प्रचार-प्रसार कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों तक पहुंचाना चाहिए। इसके साथ ही सालमसागर, रामदेवसर तालाब और शक्तिस्थल का पुनरुद्धार कर इन्हें आकर्षण का केंद्र बनाया जा सकता है। जैसलमेर की तर्ज पर पोकरण में होने वाले एक दिवसीय मरु महोत्सव को दो दिन का कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया जाए। इसके अलावा लोहारकी व फलसूंड के धोरों को विकसित कर पर्यटकों के लिए गतिविधियां शुरू की जा सकती है। पोकरण की लाल मिट्टी के बर्तनों और हस्तशिल्प को विशेष पहचान दिलाई जाए तो संरक्षण मिल सकेगा।