
राज्य सरकार ने पहली बार जैसलमेर जैसे आबादी के लिहाज से सबसे छोटे जिले में एक साथ चार आइएएस अधिकारियों की तैनाती कर इस फ्रेम में मानो पूरे निचले प्रशासन को जकड़ दिया है। ऐसा अब तक कभी नहीं हुआ कि कलक्टर के अलावा जिला परिषद में मुख्य कार्यकारी अधिकारी, उपखंड अधिकारी और सहायक कलक्टर के पदों पर आइएएस अधिकारियों को पदस्थापित किया गया हो। पूर्ववर्ती सरकार ने कुछ महीनों के लिए सीइओ पद पर अवश्य महिला आइएएस को लगाया था, लेकिन कुछ अर्से बाद उनका स्थानांतरण कर दिया गया और पुन: आरएएस अधिकारी को इस पद पर लाया गया। वर्तमान में प्रतापसिंह, रश्मि रानी, सक्षम गोयल और रोहित वर्मा क्रमश: कलक्टर, सीइओ, एसडीएम जैसलमेर व एसीएम के पद पर कार्य कर रहे हैं और चारों युवा सीधे आइएएस सेवा में चयनित हैं। जबकि जैसलमेर जिले में कई वर्षों तक राज्य प्रशासनिक सेवा से पदोन्नत आइएएस को कलक्टर के रूप में काम करने का मौका पूर्व के वर्षों में मिल चुका है और उन्होंने भी कई वर्षों तक इस पद पर काम किया। एसडीएम गोयल के पास ही यूआइटी सचिव का अतिरिक्त पदभार भी है। यह पद भी अब तक आरएएस अधिकारी ही संभालते रहे हैं।
आइएएस अधिकारियों को सरकारी कार्यालयों की कमान दिए जाने से निश्चित रूप से कामकाज में एक तरह की सख्ती और समयबद्धता आई है। निचले अधिकारी व कर्मचारी ज्यादा अनुशासन के साथ काम करते हैं क्योंकि आइएएस काडर का अपना महत्व माना जाता है। निर्णय लेने में भी ये युवा अधिकारी ज्यादा चुस्त माने जाते हैं। जिससे कामकाज के निस्तारण में लगने वाले समय में भी कमी आती है।
जिले के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को आइएएस अधिकारियों के साथ तालमेल बैठाने में दिक्कतें आ रही हैं। वे किसी तरह के कामकाज के उन्हें सिफारिश करते हुए हिचक महसूस करते हैं। जिला परिषद में कभी ग्रामीण जनप्रतिनिधियों का जमावड़ा लगा रहता था, वर्तमान में वे कहीं नजर नहीं आते। पूरा कार्यालय खाली-खाली दिखता है।
जानकारों की मानें तो जैसलमेर सीमांत जिला होने के साथ यहां प्रदेश का सबसे बड़ा लैंड बैंक भी है। राज्य सरकार को यहां उद्योगों की स्थापना के लिए बड़े पैमाने पर जमीनों का आवंटन करना होता है। इसके अलावा उनके आम तौर पर किसी तरह के दबाव में आने की सम्भावना कम रहती है।
Published on:
26 Aug 2025 11:47 pm
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