रंग होली रे महाराज रंग होली रे महाराज, घडिय़ाले रो रे गढ़ भलो रे कोय तखनत भलो.., होंये होळी खेले, खेलिये महाराज, घडिय़ालो, ब्रजमण्डल, थांरी बोली प्यारी लागे हो…मन वाला हो म्हारा राज, थांसु म्हारें हेत थांरी मजलस घणी ऐ सोहावें, होंये होली खेले-खेले खेले हे लक्ष्मोरो नाथ खेलत फाग सुहावरणों, शिव के मन मायं बसें रे काशी आधी काशी में ब्राह्मण..। फाल्गुन का महीना और प्रकृति के कण-कण व मानस में परिवर्तन लाने में सक्षम मौन मन गाने को उत्कंठित हो उठता है। जैसलमेर में ऐसे ही माहौल के बीच एकादशी को निकाली गई गैरों के साथ ही पहली बार होली का अहसास होने लगा। स्वर्णनगरी में बुधवार को तबले की थाप पर अबीर गुलाल, कैसू फूलों का रंग, पिचकारी से सराबोर होली के फाग गीत गाते लोगों की टोलियां हर किसी के लिए आकर्षण का केन्द्र बनी रही। यूं तो अष्टमी से लक्ष्मीनाथजी के मंदिर में फाग शुरू होने के साथ ही होली की रंगत जमनी शुरू हो गई थी।