
जहां सूरज की तपिश से आकाश भी झुलस जाता था और जहां बिजली और पंखों का नामोनिशान नहीं था, फिर भी लोगों के दिलों में सुकून का एक अलग ही अहसास था। यह सुकून किसी और चीज़ में नहीं, बल्कि जैसलमेर की जीवनशैली, उसकी परंपराओं और प्रकृति में बसा था। यह वो समय था जब गर्मी का मौसम भी लोगों के बीच सामंजस्य और मिलन का कारण बनता था, जहां छतें, खस और घड़े का पानी, सब मिलकर जीवन को ठंडक देते थे। जब आजकल के दौर में बिजली के बिना गर्मी की कल्पना भी कठिन हो, तब जैसलमेर में लोगों का जीवन सादगी से भरा था। बिजली का अभाव था, पंखे काम नहीं करते थे, लेकिन गर्मी को मात देने के लिए लोग अपने घरों की छतों पर चटाइयां बिछाकर सोते थे। रात के समय, जब हवा हल्की सी ठंडी हो जाती थी, तो यह छतें एक ठंडक का अहसास देती थीं। यह केवल सोने का स्थान नहीं था, बल्कि यहां लोग अपने परिवार के साथ समय बिताते, बातें करते और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों का आनंद लेते थे।
जैसलमेर की गर्मी में जल का महत्व खास था। घरों में जल की कमी कभी महसूस नहीं हुई, क्योंकि घड़ों से पानी लाकर उसे घरों तक लाया जाता था। यह पानी न केवल पीने के लिए, बल्कि दिनभर की ठंडक बनाए रखने के लिए भी उपयोगी होता था। इसके साथ ही खस की महक, जो गर्मी के दिनों में हवा में फैली रहती थी, जीवन को ठंडक देने के साथ-साथ ताजगी भी लाती थी। खस से बने पर्दे और झूले गर्मी से राहत देने के लिए प्रभावी थे और घरों में ठंडक बनाए रखते थे।
आजकल के बच्चे इस पुरानी जीवनशैली को समझ नहीं सकते। मुमताज़ बाई जो जैसलमेर की एक पुरानी बस्ती की निवासी हैं, कहती हैं, हमारे समय में जब न बिजली थी, न पंखे, तब भी गर्मी का अहसास हम बड़े आराम से करते थे। आजकल के बच्चे इस शांति को नहीं समझ सकते, क्योंकि अब उनके पास कूलर और एसी हैं। यह पुराने समय की सादगी थी, जो आज भी उनकी यादों में बसी हुई है।
आज भले ही जैसलमेर में कूलर, एसी और बिजली की व्यवस्था बेहतर हो गई है, लेकिन यहां के लोग अपनी पुरानी परंपराओं को भुला नहीं पाए हैं। छतों पर बैठकर गर्मी की रातों को जीना, खस की महक लेना और पानी की सादगी का अहसास, यह सब आज भी जैसलमेर के लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।
Published on:
25 Apr 2025 09:43 pm
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