scriptसड़क पर भूखे-प्यासे गोवंश को भटकते देख खुद के हिस्से की जमीन पर खोल दी गोशाला | A man open Cow shelter in Hadetar Sanchore | Patrika News

सड़क पर भूखे-प्यासे गोवंश को भटकते देख खुद के हिस्से की जमीन पर खोल दी गोशाला

locationजालोरPublished: Apr 14, 2019 10:38:30 am

अब सड़क मार्ग से गुजरने वाले लोगों से चंदा मांगकर पाल रहा 200 गोवंश को

Cow shelter

सड़क पर भूखे-प्यासे गोवंश को भटकते देख खुद के हिस्से की जमीन पर खोल दी गोशाला

वींजाराम डूडी
सांचौर. मन में सेवा करने का जज्बा हो तो विपरीत परिस्थतियों के बावजूद लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। सांचौर क्षेत्र के हाड़ेतर गांव का दुबला-पतला यह युवक गोसेवा की मिसाल बनकर सामने आया है। पिछले पांच साल से ज्यादा समय से बिना किसी सरकारी सहायता के गोसेवा को लेकर चलाई जा रही यह मुहिम औरों के लिए भी प्रेरणादायी साबित हो रही है। जानकारी के अनुसार हाड़ेतर निवासी टैक्सी चालक सुजानाराम विश्नोई पांच साल पहले टैक्सी चलाकर घर का गुजारा चलाता था, लेकिन सड़क पर भूखे-प्यासे भटकते गोवंश को देख अचानक उसके मन में गोवंश के प्रति प्रेम जाग उठा। फिर क्या था उसने गांव की गोचर व सड़कों पर विचरण करने वाले बेसहारा गोवंश की सेवा की ठान ली। ग्राम पंचायत से गोशाला के लिए जमीन मांगी तो सहयोग नहीं मिला, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। आमजन व गोभक्तों से सहयोग मांग गोशाला के लिए जमीन ले ली। कुछ समय बाद वह जमीन भी खाली करने की नौबत आई तो अपने हिस्से की कृषि भूमि पर गोशाला शुरू कर दी। वर्तमान में खेती की जमीन पर गोसरंक्षण को लेकर चारे-पानी की व्यवस्था के लिए जेब में एक पैसा नहीं होने के बावजूद यह व्यक्ति करीब २०० गोवंश का पालन अपने हौसले के दम पर कर रहा है। गायों के चारे के लिए सांचौर-रानीवाड़ा सड़क मार्ग पर घंटों तक झोली फैलाए खड़ा रहता है और लोगों से गोग्रास एकत्रित कर रहा है। उसकी ओर से यह कार्य पिछले तीन साल से लगातार किया जा रहा है। गांव मेंं घूमने वाला एक भी बेसहारा पशु इस पहल के बाद विचरण करता हुआ नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में उसकी यह पहल आस-पास के गांवों के लिए गोसेवा की एक मिसाल बन गई है। इस गोशाला में सरकारी अनुदान के नाम पर कुछ नहीं मिल रहा है। सारी मदद आम लोगों के सहयोग से हो हो रही है। खुद सुजानाराम विश्नोई रानीवाड़ा सड़क मार्ग पर गोशाला के आगे खड़ा रहकर यहां से गुजरने वाले वाहनों को रुकवाता है और गोग्रास इक_ा करता है। इन्हीं रुपयों से गोवंश की सेवा की जा रही है।
बेसहारा पशुओं को मिला आसरा
हाड़ेतर का सुजानाराम विश्नोई हर रोज बेसहारा गोवंश को कभी सड़क मार्ग पर भूखे-प्यासे भटकते देखता तो कभी भूख मिटाने के लिए कंटीली बाड़ फांदकर खेतों में विचरण करते हुए देखता। कई बार तो गोवंश सड़क मार्ग पर हादसे का शिकार होने के बाद तड़पते हुए नजर आता। यह सब वह देख नहीं पाया और गोशाला की व्यवस्था कर डाली। इस तरह अब करीब दो सौ से ज्यादा बेसहारा गोवंश को गोशाला में आसरा मिल रहा है।
गोग्रास इक_ा करने के बाद चलाता है टैक्सी
सुजानाराम की गोशाला हाड़ेतर गांव की सरहद में सांचौर से रानीवाड़ा जाने वाले मुख्य सड़क मार्ग पर स्थित है। गोशाला खोलने के बाद गायों के लिए चारे की व्यवस्था सड़क मार्ग से गुजरने वाले वाहनों को रुकवाकर करता है। इसके लिए सुबह ७ बजे गोशाला के आगे सड़क मार्ग पर दानपात्र लेकर खड़ा हो जाता है। जहां से गुजरने वाली टैक्सी, निजी बस, रोडवेज बसों, सरकारी कर्मचारी, पुलिस प्रशासन के वाहन व व्यापारियों के साथ-साथ यहां से हर रोज दिहाड़ी मजदूरी पर जाने वाले मजदूर व स्कूली बच्चे भी अपनी इच्छानुसार सहयोग के लिए गोग्रास देकर जाते हैं। वहीं आधे दिन खुद के परिवार का पालन पोषण करने के लिए सुजानाराम टैक्सी चलाता है।
बीमार गायों का भी हो रहा इलाज
विश्नोई गोशाला में खुद गायों के लिए चारा डालने के साथ साथ साफ-सफाई का कार्य भी करता है। वहीं गोशाला में बीमार गाय या सड़क हादसे की शिकार गायों के इलाज के लिए भी एक निजी चिकित्सक से इलाज करवाया जाता है। चिकित्सक भी गोवंश के लिए निशुल्क सेवा दे रहा है। वहीं गोग्रास की राशि से चारे की गाडिय़ों का स्टॉक किया जाता है। जिससे यह गोशाला चल रही है।
किसानों को भी मिली निजात
विश्नोई की ओर से गोशाला खोलने के बाद गांव के किसानों को भी पशुओं के आतंक से निजात मिली है। इससे पहले गांव में भूख के मारे बेसहारा गोवंश किसानों ेके खेतों की बाड़ तोड़कर घुस जाते थे। जिससे किसानों की फसल को नुकसान पहुंचता था। वहीं रात के समय किसानों को फसलों की निगरानी रखनी पड़ती थी, लेकिन अब गोशाला खोलने के बाद किसानों को इस समस्या से काफी निजात मिली है। ग्रामीण भी इस पुनीत कार्य से खुश हैं।
इनका कहना…
गोसेवा करना अब जीवन का हिस्सा बन चुका है। सरकारी अनुदान मिले तो सरकार की इच्छा। गायों को भूखे-प्यासे सरकार के भरोसे मरते नहीं देख सकता। बेसहारा गोवंश भूखा-प्यासा ना रहे बस यही प्रयास रहता है। इस प्रकार की पहल अन्य गांवों में भी ग्रामीणों को करनी चाहिए। ताकि बेसहारा गोवंश का संरक्षण हो सके।
– सुजानाराम विश्नोई, ग्रामीण, हाड़ेतर

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