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सरकार से नहीं मिली मदद तो दिव्यांग ने खुद बदली तकदीर

Janjgir champa: सरकार दिव्यांग सहित अन्य लोगों के लिए कई योजनाएं चला रही है। साथ ही इसका हर कोई को फायदा मिले कहकर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है।

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Divyang himself changed his fate when he did not get help from the government

दिव्यांग ने खुद बदली तकदीर

Chhattisgarh News: जांजगीर-चांपा। सरकार दिव्यांग सहित अन्य लोगों के लिए कई योजनाएं चला रही है। साथ ही इसका हर कोई को फायदा मिले कहकर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही की वजह से जरूरतमंद लोगों को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में दिव्यांग ने खुद की जिंदगी बदल डाली और ससुराल जाकर चाट, गुपचुट का ठेला चलाकर अपना परिवार का पालन पोषण कर रहा है। लोगों को सहारा बनाने के बजाय इस युवक ने खुद को इतना मजबूत कर लिया कि लोग अब मिसाल तक देने लगे हैं।

सफलता के रास्ते में एक ही बाधा होती है, वह है खुद की नकारात्मक सोच, यदि सोच सकारात्मक हो तो एक न एक दिन मुकाम जरूर हासिल हो जाता है। एक दिव्यांग युवक ने इसे करके दिखा दिया, लोगों को सहारा बनाने के बजाय इस युवक ने खुद को इतना मजबूत कर (story of self reliance) लिया कि लोग अब मिसाल तक देने लगे हैं। हम बात कर रहे हैं बलौदा विकासखंड के गांव जावलपुर के दिव्यांग सूरज साहू का। सूरज साहू को शादी के पहले कोई टेंशन नहीं था। शादी हुआ, इसके बाद भी शासन-प्रशासन की ओर से किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं मिला।

सरकारी योजना का लाभ लेने के लिए दफ्तरों का चक्कर काटते-काटते सूरज का चप्पल घिस गया। इसके बावजूद आज न तो उसका न राशन कार्ड बन सका, गैस सिलेंडर मिला और दिव्यांग को मिलने वाला पेंशन भी नहीं मिल पा रहा है। वह लगातार दफ्तरों का चक्कर काटता रहा, लेकिन वहां केवल आश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं मिला। वह काफी परेशान हो गया। उनके बच्चे भी हो गए। ऐसे में परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था।

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नहीं हारा हिम्मत

दिव्यांग सूरज हिम्मत नहीं हारा और अपने ससुराल नवागढ़ विकासखंड के गांव धनेली में मेन रोड में मकान होने के कारण वहां पहुंच गया। जहां चाट, गुपचुप का ठेला लगाकर कारोबार शुरू कर दिया। खुद से शुरू किए गए रोजगार के बल पर अपने परिवार का भरण पोषण तो कर ही रहे हैं, साथ ही अच्छी जिंदगी भी गुजार रहे हैं। उन्होंने बताया कि दिव्यांगों के प्रति लोगों को अब सोच बदलनी होगी और किसी की दिव्यांगता को अभिशाप के रूप में न देखें।

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मजबूरी ने आगे पढ़ने की नहीं दिया

उन्होंने बताया कि वह बचपन से ही दिव्यांग हैं और बमुश्किल आठवीं तक की पढ़ाई कर सके। चाट, गुपचुप बेचकर रोजाना 500 से 800 रुपए तक कमा लेते हैं, आगे की पढ़ाई भी करना चाहता थे पर मजबूरी ने आगे पढ़ने के इजाजत नहीं दी।

ट्रायसाइकिल मिली, वह भी कंडम

सूरज बताते है कि लगातार दफ्तराें चक्कर काटने के बाद एक ट्रायसाइकिल मिला था। वह इतना ज्यादा कंडम था कि दूसरे दिन ही उसके पार्ट्स अलग-अलग हो (story of self reliance) गए। फिर उसको जिला पंचायत स्थित दफ्तर में किराया का वाहन का ले जाकर पटक आया। सालभर से ज्यादा समय हो गया, केवल आश्वासन ही मिल रहा है।

- अभी तक ट्रायसाइकिल नहीं मिला है तो गलत है। जानकारी लेकर जल्द ही ट्रायसाइकिल प्रदान किया जाएगा।

टीपी भावे, समाज कल्याण विभाग जिपं

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