
जिला अस्पताल की ये है हकीकत, हर रोज दो-तीन शवों का पोस्टमार्टम और हर रोज मानवता होती है शर्मसार
जांजगीर-चांपा. दुर्घटना हो या अकाल मृत्यु! मौत के बाद पुलिसिया कार्रवाई से गुजरना परिजनों की मजबूरी रहती है, क्यों कि दुर्घटना के बाद शव का परीक्षण करना पुलिस रिकार्ड में अनिवार्य रहता है। यह काम नि:शुल्क होना चाहिए, लेकिन जिला अस्पताल में इस काम के लिए लूट मची है।
पोस्टमार्टम के लिए स्वीपर परिजनों से बिना 500 रुपए लिए काम शुरू नहीं करता। सिर्फ इतना ही नहीं इस काम के लिए परिजनों को स्वीपर का हाथ-पांव तक जोडऩा पड़ता है। मानवता को शर्मसार करने वाला क्षण यहां कोई नई बात नहीं है। यहां हर रोज दो-तीन शवों का पोस्टमार्टम होता है और हर रोज मानवता शर्मसार होती है। आर्थिक रूप से मजबूत परिजन काम जल्दी निकलवाने मोलभाव नहीं करते। वहीं गरीब किस्म के लोगों को शराब की नशे में धुत स्वीपर के हाथ-पांव भी जोडऩे पड़ते हैं।
जिला अस्पताल में परिजनों को शव का पोस्टमार्टम कराना लोहे के चना चबाने से कम नहीं है। परिजनों की आंख में आंसू की धार बहते रहती, तो वहीं स्वीपर को पोस्टमार्टम के लिए अवैध उगाही की चिंता रहती है। मानवता को शर्मसार करने वाला पल जिला अस्पताल के मरच्यूरी के बाहर हर रोज देखने को मिलता है।
दुर्घटना में मौत के बाद पोस्टमार्टम जरूरी रहता है, लेकिन शासन के द्वारा इसके लिए ठोस प्रबंध नहीं किए जाने से जरूरतमंदों को शर्मसार होना पड़ता है। हद तो तब हो गई जब जिला अस्पताल जैसे जगहों में मात्र एक स्वीपर से काम एक दशक से लिया जा रहा है। वह पोस्ट भी जुगाड़ का है। दरअसल यहां जिस स्वीपर से काम लिया जा रहा है उसकी पोस्टिंग पामगढ़ में है, लेकिन वह बीते एक दशक से जिला अस्पताल में काम कर रहा है। इसके चलते उसके भाव सातवें आसमान में रहता है।
डॉक्टर व पुलिस बेबस
जिला अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि यह काम बड़ा तकलीफों भरा है, क्योंकि जिला अस्पताल में स्वीपर पद की भर्ती नहीं है। मात्र एक स्वीपर के भरोसे जिला अस्पताल है, उस स्वीपर का भी हाथ-पांव जोड़कर काम चलाया जाता है। पोस्टमार्टम कक्ष के बाहर पुलिस की टीम व डॉक्टर केवल इस नाम से तमाशबीन बने रहते हैं क्योंकि समय पर स्वीपर नहीं पहुंचा रहता है। जब तक उसे खर्चा-पानी नहीं मिलता वह काम शुरू नहीं करता।
एक स्वीपर के भरोसे जिला अस्पताल
जिला अस्पताल में केवल एक स्वीपर की रेग्यूलर नियुक्त है। बाकी 10 स्वीपर जीवनदीप समिति के फंड से डेलीवेजेस कर्मचारी हैं। डेलीवेजेस 10 कर्मचारी अस्पताल की साफ सफाई का काम देखते हैं। एक रेग्यूलर कर्मचारी के जिम्मे जिला अस्पताल के पोस्टमार्टम की जिम्मेदारी रहती है। यहां हर रोज दो तीन पोस्टमार्टम होता है। केवल एक स्वीपर के द्वारा खुलेआम वसूली की जाती है। इस कर्मचारी पर लगाम भी नहीं लगाया जाता। क्यों कि ऐसे वर्ग के लोगों की कमी है।
एक को सिखा रहे काम ताकि वक्त पर काम आए
बताया जा रहा है कि एक स्वीपर के बदौलत पोस्टमार्टम का काम किसी भी सूरत में नहीं हो सकता। यदि वह बीमार पड़ जाए या कहीं बाहर चला जाए तो इसके लिए परिजनों, डॉक्टरों व पुलिस वालों को हायतौबा करनी पड़ती है। समस्या को देखते हुए एक अन्य स्वीपर को काम सिखाया जा रहा है। हालांकि वह स्वीपर भी उसी का भाई है जो जिला अस्पताल में काम करता है। जिसे सिखाया जा रहा है वह नगरपालिका का कर्मचारी है। जरूरत पडऩे पर उसे बुलाया जाता है। ताकि किसी के बगैर काम न अटके।
-जिला अस्पताल में एक नियमित स्वीपर कार्यरत है। उसकी भी पोस्टिंग पामगढ़ में है। उससे जैसे-तैसे काम लिया जाता है। पोस्टमार्टम के लिए कुछ खर्च आता है। उसके लिए हो सकता है मांग करता होगा। शासन इस पोस्ट को खत्म कर दिया है। इससे भर्ती भी नहीं किया जा सकता, जो है उसी से काम चलाया जा रहा- डॉ. यूके मरकाम, प्रभारी सिविल सर्जन, जिला अस्पताल
Published on:
24 Jul 2018 06:39 pm
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