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रियासतकाल में ऐसे बिखरते थे होली के रंग, निकलती थी शाही सवारी, लगता था राजदरबार

locationझालावाड़Published: Mar 19, 2019 03:11:10 pm

Submitted by:

jitendra jakiy

-इतिहास के झरोखे से वर्तमान तक का सफर

In the princely state, such splendid colors were the color of Holi, th

रियासतकाल में ऐसे बिखरते थे होली के रंग, निकलती थी शाही सवारी, लगता था राजदरबार

रियासतकाल में ऐसे बिखरते थे होली के रंग, निकलती थी शाही सवारी, लगता था राजदरबार
-इतिहास के झरोखे से वर्तमान तक का सफर
-जितेंद्र जैकी-
झालावाड़. प्रेम का रंग, भाईचारा व भेदभाव मिटाकर आपसी साम्प्रदायिक सौहार्द के त्यौहार होली पर रियासतकाल में जहां एक ओर राजपरिवार के मुखिया आमजन के बीच में शाही सवारी के रुप में आकर होली के रंगों से सरोबार होते थे, कोठी पर राजदरबार सजता था व आमजन बेबाक होकर उत्साह के साथ महाराजराणा से रुबरु होता था। आजादी के बाद होली के रंग भी बदलते चले गए फिर हाथी की शाही सवारी की जगह वाहन ने ले ली। नरेश एक वाहन में बैठकर होली के लिए निकलते थे। पीछे रंग व गुलाल से भी बोरियां होती थी जिससें वह लोगों पर गुलाल लगाते चलते थे। वह लोगों का अभिवादन करते व प्रेमपूर्वक मिलते थे। यह परम्परा करीब 60 के दशक के उत्तराद्र्ध तक चली। कालान्तर में धीरे धीरे सिमटती चली गई। वहीं वर्तमान में अब लोग आदर्श होली की जगह आधुनिकता के नाम पर हुल्लड़ता व फूहड़ता का दामन पकड़ लेते है।
-आंखों में तैर जाता है मंजर
शहर के 90 वर्षीय वृद्ध रामनारायण सेन ने बताया कि उन्होने महाराजराणा राजेंद्र सिंह, भवानी सिंह व हरिश्चंद सिंह का समय देखा है। होली के दिन तो शहर का वातावरण ही हर्षोल्लास से भर जाता था। कई दिनो पहले से ही होली की तैयारियां शुरु हो जाती थी। युवकों की टोलियों पहले से जंगल से लकडिय़ां लाकर एकत्र कर देते थे। होली दहन के दिन अलग अलग मोहल्लों में दहन का सुंदर आयोजन किया जाता था। धुलेण्डी पर गढ़ भवन परिसर, घंटाघर परिसर आदि स्थानों पर युवाओं की टोली एकत्र होकर प्रेम पूर्वक एक दूसरे रंग, गुलाल लगाते थे, इस दौरान मुस्लिम लोग भी बड़े ही उल्लास से होली खेलते थे। राजपरिवार से नरेश भी जनता से होली खेलते थे।
– रियासतकालीन होली का दृश्य
इतिहासकार ललित शर्मा के अनुसार झालावाड़ राज्य में होली का त्यौहार मालवी परम्परा के अनुसार हालिका पर्व के पांचवें दिन मनाया जाता था। इस दिन महाराजराणा भवानीसिंह हाथी पर सवार होकर जुलूस के साथ पूरे नगर छावनी में घूमते थे। और प्रमुख व्यक्तियों के आवासों पर जाकर रंग गुलाल डालते थे। दर्शकों एवं आम व्यक्तियों के हाथों में रंग, गुलाल, मालाएं होती थी। नरेश अपनी पिचकारी से सभी पर रंग डालते थे। नरेश की सवारी के समय जनता में गुलाल के बने लड्डू जैसे गोले बनाए जाते थे। इन्हे गुलाल गोटा कहा जाता था। लनता इन्हे एक दूसरे पर फैंकती थी। इस क्रम से रंग की बरसात होती थी और उमंग तथा प्रसन्नता का वातावरण बनता था। इस रंग बिरंगे पर्व को देखने के लिए ूदर दूर के लेाग झालरापाटन व छावनी में अपने रिश्तेदारों के यहां पहले से ही आ जाते थे। इस दिन नरेश सामान्य जनता, दुकानदारों, सेठ साहूकारों और अहलकारों से बड़ी प्रसन्नतापूर्वक मिलते थे। होली का धुलेण्डी पर्व राज परविार द्वारा पृथ्वी विलास पेलेस के प्रीतम विलास में मनाया जाता था। यहां एक बड़े से कुण्ड में पानी में धोलकर रंग भरा जाता था। इस दिन पृथ्वी विलास पेलेस में राज दरबार का भी आयोजन किया जाता था।
-ऐसा भी होता था मनोरंजन
होली के दिन कोठी पर जंगल से तेंदू वृक्ष को काटकर मंगाया जाता था। उसे पेलेस के मैदान में गाड़ा जाता था। उस वृक्ष की डाल पर एक कपड़े में गुड़ और रुपया बांण कर लटकाया जाता था। उस वृक्ष की ओर से एक व्यक्ति भिन्न भिन्न प्रकार की अपेन मुख्य से मुद्राएं स्वांग बनाता था व स्त्रियां उस वृक्ष को लकड़ी से पीटती थी। अंत में उस वृक्ष पर विजयी प्राप्त कर उसे फेंक दिया जाता था।
-न्हावण का आता था आनंद
जिले में होली पर्व के तेहरवें दिन स्नान त्रयोदशी का आयोजन होता था। स्थानीय भाषा में इसे न्हावण कहा जाता था। इस दिन को भी रंगों से खेला जाता था। इस पर्व की विशेषता सामाजिक मान्यता थी। इस दिन अपनी जाति बिरादरी में सालभर में जिसके घर में (गमी) किसी सदस्य की मृत्यु पर होती थी वहां उसकी जाति के लेाग रंग का पात्र लेकर जाते थे व उस पर रंग का छीटा डालते थे। इससे एस व्यक्ति के घर में हुई गमी का सामाजिक प्रभाव शून्य हो जाता था। इस दिन संध्या के समय लोग अपने अपने समाज के मंदिरों पर एकत्र होते थे। वहां पर सिंघाड़े के सेव और खिरनी पितरित की जाती थी। यह परम्परा व्यवस्था राज्य काल पर बदस्तूर जारी रही थी।
-निकलती थी शाही सवारी
राजपरिवार के सदस्य चंद्रजीत सिंह ने बताया कि होली के समय रियासतकाल में महाराजराणा हरिश्चंद सिंह के समय शहर के गढ़ भवन से शाही सवारी निकलती थी। जो शहर के मुख्य मार्ग से होकर पृथ्वी विलास पेलेस पहुंचती थी। इसमें एक हाथी पर राज परिवार के सदस्य सवार होते थे। वहीं पीतल के कलश में पानी व रंग भर कर आम लोगों से होली खेली जाती थी। वर्तमान में भी जनता पृथ्वी विलास पर उनसे मिलने के लिए आती है जिसका वह परम्परा के अनुसार स्वागत करते है।
होगा होली का दहन, रहेगी धुलेण्डी की धूम
-होली के लिए सजे बाजार
झालावाड़. हर्षोल्लास के महापर्व होली की तैयारी में शहर के बाजार सज गए है। बाजारों में नई नई वैराईटी व डिजाइन की पिचकारियां व रंग नजर आने लगे है। बुधवार को शहर में करीब डेढ़ दर्जन स्थानों पर होली का दहन किया जाएगा। इसदौरान इन स्थलों पर आकर्षण विद्युत सजावट की जाएगी। इसके लिए तैयारी पूरी कर ली गई है। धुलेण्डी पर रंग व गुलाल का धमाल रहेगा। इसके लिए भी शहर में कई स्थानों पर रंग व पिचकारी की ुदुकाने लग गई है। बड़ा बाजार में रंग व पिचकारी की दुकान वाले रामप्रसाद ने बताया कि इस समय बाजार में बृज की पिचकारी की डिमांड़ है यह करीब साढ़े तीन फिट लम्बी पिचकारी है। वहीं मिसाईल, प्रेशर वाली पिस्तोल, बंदूक, पम्प डोरोमोन आदि पिचकारी बिक रही है। वहीं रंगों में आरारोट की गुलाल,तोता मैना,गुलाबी रुह, मेार की सुखी व लिक्विट रंग चलन पर है। धुलेण्डी पर स्वांग बनाने के लिए नकली दाड़ी,मूछे, बाल, मुखोटे, विभिन्न प्रकार की टोपियों भी बिक रही है।
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