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आबादी की भेंट चढ़ते जलाशय

locationझालावाड़Published: Nov 10, 2018 05:10:46 pm

Submitted by:

jitendra jakiy

-खत्म होते रियासतकालीन परम्परागत जल स्त्रोत

Populated reservoir

आबादी की भेंट चढ़ते जलाशय

आबादी की भेंट चढ़ते जलाशय
-खत्म होते रियासतकालीन परम्परागत जल स्त्रोत
-जितेंद्र जैकी-
झालावाड़. रियासतकाल में परम्परागत जल स्त्रोत रहे जलाशय अब आबादी की भेंट चढ़ कर अपना अस्तित्व नष्ठ कर रहे है। झालावाड़ व झालरापाटन में करीब एक दर्जन से अधिक तालाब व तलाईयां बनी है लेकिन निरंतर होते अतिक्रमण से यह सिमटते जा रहै है और वह दिन दूर नही जब इसका अस्तित्व खत्म होकर मात्र चारों ओर इमारते खड़ी नजर आएगी। इसकी बानगी झालावाड़ में गोदाम की तलाई प्रमाण है। यहां नगर पालिका ने तलाई के क्षेत्र में प्लाट काट कर इसका अस्तिव खत्म कर दिया है। झालावाड़ में रियासतकालीन अन्य परम्परागत जलस्त्रोतों में मदारी खां तालाब, नया तालाब, धनवाड़ा तालाब, खंडिय़ा तालाब, गांवड़ी का तालाब, अखाड़े की तलाई आदि में लगातार मकान खड़े हो रहे है। इन जल स्त्रोतों में पहले लोग मकान बना लेते है बाद में सरकार की ओर से वोट की खातिर उन्हे पट्टे जारी कर दिए जाते है इससे तालाबों में बस्ती बस जाती है। नगर पालिकाएं भी अपनी आमदनी बढ़ाने के चक्कर में प्रकृति से खुलकर खिलवाड़ कर रही है। इसी प्रकार झालरापाटन में गोमती सागर तालाब के आसपास निरंतर अतिक्रमण का खेल जारी है। इससे तालाब का मूल स्वरुप निरंतर बिगड़ कर छोटा होता जा रहा है। मूंडलियां खेड़ी तालाब भी अतिक्रमण से अछूता नही रहा। चंद्रभागा नदी भी अतिक्रमियों के इशारे पर है।
-बारिश में आ जाती है समस्या
अपने स्वार्थ के खातिर परम्परागत जल स्त्रोतों तलाई, तालाब आदि में प्लाट काट दिए इससे यह नष्ठ हो गए और शहरों में बारिश के पानी का भराव व बारिश के पानी की उचित निकासी नही हो पाती है ओर शहर की बस्तियों में जल पलावन के हालात बन जाते है इससे जनधन की हानि हो रही है।
-गोदाम की तलाई को किया खत्म
झालावाड़ में जिस तलाई के नाम पर पूरा क्षेत्र आज भी जाना जाता है, वह गोदाम की तलाई के क्षेत्र में नगर पालिका ने प्लाट काट कर निलाम कर दिए इससे तलाई का पूरा अस्तित्व ही समाप्त हो गया। आसपास बनी इमारते के तले यह तलाई मात्र एक छोटे से गडढ़े के रुप में रह गई है, वह दिन दूर नही जब सिर्फ गोदाम की तलाई का नाम ही रह जाएगा। रियासतकाल में निर्मित हुई इस तलाई के अस्तित्व को 11 नवम्बर 1976 से ग्रहण लगना शुरु हुआ जब नगर पालिका ने इस तलाई के 220 बाई 130 फुट क्षेत्र को प्रेम मंदिर सिनेमा हाल के निर्माण के लिए 99 वर्ष के लिए लीज पर दे दिया। इसके बाद 1980 में तलाई के आधे भाग को पाट कर उस पर प्रेममंदिर सिनेमा हाल का निर्माण हुआ। उसके बाद तो लगातार तलाई को खत्म कर प्लाट बनने शुरु हो गए और देखते ही देखते रियासत कालीन यह विशाल जल स्त्रोत सिमटती चली गई। वर्तमान में इस तलाई के क्षेत्र में करीब 35-40 प्लाटों पर मकान बन चुके है।
-साढ़े 11 बीघा से ज्यादा में थी तलाई
राजस्व रिकार्ड के अनुसार शहर में स्थित गोदाम की तलाई सन् 1964-65 में 11 बीघा व 6 बिस्वा के क्षेत्र में स्थित थी। इसके बाद सेटलमेंट के तहत 1971-72 में 7 बीघा व 5 बिस्वा रह गई थी व नगर पालिका में दर्ज हो गई थी। इसके बाद से ही नगर पालिका ने परम्परागत जल स्त्रोत के अस्तित्व को खत्म करना शुरु कर दिया था।
-जलाशयों के अस्तित्व से कोई समझोता नही
इस सम्बंध में उपखंड़ अधिकारी डॉ.राकेश कुमार मीणा ने बताया कि शहर में स्थित तालाबों व जलाशयों पर अतिक्रमण हटाने के लिए समय समय पर कार्रवाई की जाती है। जलाशयों पर अतिक्रमण कर इनके अस्तित्व को बिगाडऩे वालों से कोई समझोता नही किया जाएगा। जलाशयों के संरक्षण के लिए हर सम्भव प्रयास किया जाएगा।
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