
झालावाड़। साठ के दशक तक चुनाव के दौरान हाथ से लिखीं पर्चियां ही पैंफलेट होती थीं। मतदान करने पहुंचे मतदाता द्वारा बोले गए नाम पर विश्वास करते थे। राशन कार्ड या फिर व्यक्ति का चेहरा ही पहचान पत्र होता था। गुजरे दौर में चुनाव की प्रक्रिया के बारे में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व सचिव 78 वर्षीय अंबालाल सेन कुछ ऐसे ही संस्मरण बताते हैं। सेन के अनुसार मतदान कर्मियों के पास हाथ से लिखी सूची होती थी। अधिकतर लोग अंगूठा लगाते थे लेकिन मतदान प्रक्रिया में पूरी तरह निष्पक्ष होती थी। उन्होंने 1970 से 1992 तक जिले में प्रशासनिक तौर पर चुनावों की बागड़ोर संभाली थी।
मतपेटी वापस मंगवाई
गागरोन क्षेत्र सन् 1980-81 के दौरान पहले कोटा मे था बाद में झालावाड़ अंतर्गत हो गया। इस दौरान चुनाव के समय गागरोन में हुए मतदान के बाद मतपेटी गलती से झालावाड़ की जगह कोटा चली गई थी। बाद में सूचना मिलने पर व्यक्तिगत तौर पर कर्मचारी भेजकर पेटी वापस मंगवाई गई थी।
पार करते थे नदी
उस समय मतदान केंद्रों पर अधिकारी तो जीप में जाते थे लेकिन मतदान कर्मियों को साइकिल, घोड़ा, खच्चर एवं पैदल ही मतदान सामग्री लेकर गांवों में जाना पड़ता था। गागरोन में मतदान कर्मियों को पैदल नदी पार करके जाना पड़ता था। जैसा कि उन्होंने संवाददाता जितेन्द्र जैकी को बताया।
Published on:
06 Nov 2018 10:53 am
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