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पर्यटकों की पहली पसंद बनी मंडावा की होली

locationझुंझुनूPublished: Mar 18, 2019 01:15:50 pm

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पर्यटकों की पहली पसंद बनी मंडावा की होलीकेवल गुलाल से खेली जाती है धूलंडीमंडावा. वैसे तो होली का त्योहार सभी जगह मनाया जाता है और चंग की थाप के साथ होली की धमाल भी सभी जगहों पर देखी जाती है। लेकिन मंडावा की विख्यात सूखी होली में तो चंग-ढफ, नगाड़ा व बांसुरी की आवाज के साथ साथ ढोल और ताशों की गूंज भी देखने को मिलती है। यहां की होली पर ढोल ताशा बजाने की एक अनोखी परम्परा है। परम्परा से जुड़ी एक खास बात यह भी है कि हिन्दू- मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग होली के त्योहार में शामिल होकर सौहार्द व भाइचारे की मिसाल पेश करते हैं। होली के जुलूस के दौरान हजारों की संख्या में महिलाएं भी घरों की छतों पर चढकऱ या आम रास्तों में खड़ी होकर बिना किसी झिझक के इस पर्व का आनंद लेती हैं। मंडावा शालीन सभ्य होली की गैर में कीचड़, पक्के रंग व पानी का उपयोग करने पर स्व विवेक से प्रतिबंध है। धुलंडी के दिन सिर्फ और सिर्फ सुखे गुलाल से होली खेली जाती है।

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पर्यटकों की पहली पसंद बनी मंडावा की होली

पर्यटकों की पहली पसंद बनी मंडावा की होली
केवल गुलाल से खेली जाती है धूलंडी
मंडावा. वैसे तो होली का त्योहार सभी जगह मनाया जाता है और चंग की थाप के साथ होली की धमाल भी सभी जगहों पर देखी जाती है। लेकिन मंडावा की विख्यात सूखी होली में तो चंग-ढफ, नगाड़ा व बांसुरी की आवाज के साथ साथ ढोल और ताशों की गूंज भी देखने को मिलती है। यहां की होली पर ढोल ताशा बजाने की एक अनोखी परम्परा है। परम्परा से जुड़ी एक खास बात यह भी है कि हिन्दू- मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग होली के त्योहार में शामिल होकर सौहार्द व भाइचारे की मिसाल पेश करते हैं। होली के जुलूस के दौरान हजारों की संख्या में महिलाएं भी घरों की छतों पर चढकऱ या आम रास्तों में खड़ी होकर बिना किसी झिझक के इस पर्व का आनंद लेती हैं। मंडावा शालीन सभ्य होली की गैर में कीचड़, पक्के रंग व पानी का उपयोग करने पर स्व विवेक से प्रतिबंध है। धुलंडी के दिन सिर्फ और सिर्फ सुखे गुलाल से होली खेली जाती है। वहीं शालीनता का परिचय देते अपरिचित लोगों को उनकी सहमति के बिना सूखा रंग या गुलाल तक भी नहीं लगाया जाता। विश्व में अनोखी छाप रखने वाले मंडावा शहर की ये परम्परा अन्य लोगों को पानी बचाने के साथ साथ सौहार्द व भाईचारा बनाए रखने की प्रेरणा देती है। इसी भावना से प्रेरित होकर स्थानीय लोगों के साथ साथ सैंकड़ों की संख्या में देशी-विदेशी मेहमान होली देखने आते है वे यहां आकर होली ही नही देखते है बल्कि होली की गेर में शामिल होकर कर आनंद लेने के साथ होली के रंगों से रंग जाते हैं। सैलानियों के शामील होने से यहां की अनूठी होली में चार चांद लग जाते हैं।
कई वर्षों से चली आ रही परम्परा
इस अनूठी परम्परा को वैध श्री लक्ष्मीधर शुक्ला ने एक शताब्दी पहले शुरू की थी। करीब 110 साल पूर्व वैध शुक्ला ने श्री सर्व हितेषी व्यायामशाला संस्था की स्थापना की थी। फागुन की मस्ती तो सबकी मस्ती है, कि भावना से प्रेरित होकर एक अखाड़ा खोला था।
अखाड़े में चंग-ढफ, नगाडा व बांसुरी के साथ ढोल-ताशा बजाने तथा धूलंडी की गेर में किचड़, फुहड़पन, अश्लीलता रहित सूखी होली खेलने की परम्परा शुरू की। परम्परा को आज भी बरकरार रखते हुए धूलंडी के जुलूस में केवल गुलाल से ही होली खेली जाती है।
बसंत पंचमी से होती है महोत्सव की शुरूआत
बसंत पंचमी के दिन अखाड़ा में ढोल-ताशों की धून के साथ धर्म ध्वज रोपकर फागुनी कार्यक्रमों का आगाज किया जाता है।। फाल्गुन शुक्ल एकादशी को रात्रि में अखाड़े से धर्म ध्वज लेकर फागुनी जुलूस निकाला जाता है।
जुलूस मुख्य बाजार से गुजरता हुआ देर रात्रि को नगरपालका चौक में पहुंचता है। यहां धर्म ध्वज को रोपकर जुलूस का समापन किया जाता है। फिर इसी चौक पर होली पर्व तक फागोत्सव के कार्यक्रम होते हैं। धूलंडी के दिन सुबह नगरपालिका चौक में हिन्दू व मुस्लिम सहित अनेक विदेशी पर्यटक भी एकत्रित होते है। यहां एक दूसरे के गुलाल का तिलक करते है। वहीं गले मिलकर एक दूसरे को होली की शुभकामनाएं देते है। फिर यहां से श्री सर्व हितैशी व्यायाम व अखाड़ा के नेतृत्व में धर्म ध्वज को लेकर वैध लक्ष्मीधर शुक्ला की शोभायात्रा के साथ गेर का जुलूस शुरू होता है। वहीं कुछ लोग अनेक प्रकार के स्वांग रचकर होली का आनंद लेते साथ साथ चलते है। समापन के बाद धर्म ध्वज को वापस अखाड़े में लाकर रख दिया जाता है।
सगुन के तौर पर पूजा-अर्चना की
पचलंगी. होली के त्योंहार का रविवार को एकादशी पर सगुन(खेराखांंडा)माडनें के साथ ही कई धार्मिक कार्यक्रमों की शुरूआत हुई। महिलाओं ने मंगल गीत गाये फाल्गुन एकादशी से होली के 5 दिवसीय पर्व की शुरूआत हुई । घर घर मे गोबर से ढ़ाल, तलवार, होली बना कर(खेराखांडा) सगुन मांडे गए।
धमालों की प्रस्तुति
मंडावा. कस्बे के वार्ड सात में स्थित बगीची के हनुमान मंदिर परिसर में शनिवार रात्रि को विष्णु महाराज के सानिध्य में फागोत्सव का आयोजन हुआ। फागोत्सव में वार्ड की चंग मंडली द्वारा देर रात्रि तक मस्ती भरे धमलों की प्रस्तुती दी। इसी प्रकार अखाड़ा में चंग, नगाड़ा व ढ़ोल – ताशा बजाने का कार्यक्रम हुआ। रविवार रात्रि को कस्बे की सभी ढफ़ मंडलिया अखाड़ा से निकलने वाले फागुनी एकादशी के जुलूस मे शामिल हुई।
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