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राजस्थान के इस गांव में 73 साल पहले से बंद है मृत्यु भोज, रस्सी डालकर तय हुआ था पहला सरपंच

झुंझुनूं जिला मुख्यालय झुंझुनूं से 21 किमी दूर भोजासर गांव ने सामाजिक सुधार की मिसाल कायम की है। गांव के लोगों ने 73 साल पहले ही मृत्यु भोज जैसी कुप्रथा पर रोक लगा दी थी।

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फोटो पत्रिका

मंडावा (झुंझुनूं)। जिला मुख्यालय झुंझुनूं से 21 किमी दूर भोजासर गांव ने सामाजिक सुधार की मिसाल कायम की है। गांव के लोगों ने 73 साल पहले ही मृत्यु भोज जैसी कुप्रथा पर रोक लगा दी थी। आजादी से पहले यहां शिक्षा का दीप जल चुका था और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद करणीराम की स्मृतियां आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं।

गांव में यूं आई जागरूकता

आजादी से पूर्व गांव के लोग जागीरदारी और सामंतवाद से त्रस्त थे। इसी बीच आर्य समाज के कार्यकर्ताओं ने शिक्षा और सामाजिक सुधार की अलख जगाई। हरदाराम, चुनाराम, थानाराम, सूरजाराम, चिमनाराम, कालूराम, लादुराम, हीराराम जैसे ग्रामीण कुरीतियों के खिलाफ डट गए। सन् 1952 में गांव की सामूहिक बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब से मृत्यु भोज नहीं होगा। तब से लेकर आज तक गांव में यह परंपरा बंद है।

1925 में खुल गया विद्यालय

सन् 1925 में गांव की ऐतिहासिक धरोहर समाध भवन में पहला प्राथमिक विद्यालय खोला गया। उस समय शिक्षक का वेतन (एक रुपया) गांव के लोग चंदा करके जुटाते थे। आजादी के बाद यह विद्यालय सरकार के अधीन आ गया।

शहीद करणीराम : प्रेरणा के स्रोत

भोजासर में 2 फरवरी 1914 को करणीराम का जन्म हुआ। उच्च शिक्षा के बाद उन्होंने वकालत के साथ सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष शुरू किया। वे झुंझुनूं जिला कांग्रेस कमेटी के पहले अध्यक्ष बने और सामंतवाद के खिलाफ खुलकर लड़े। 13 मई 1952 को चंवरा गांव में उन्हें और रामदेव को गोली मार दी गई। झुंझुनूं कलेक्ट्रेट, विद्यार्थी भवन, चंवरा और भोजासर में उनकी प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो लोगों को प्रेरणा देती हैं।

रस्सी डालकर तय हुआ पहला सरपंच

सन् 1952 में ग्राम पंचायत भोजासर का पहला चुनाव हुआ। इस चुनाव में मत पत्र व मत पेटी का प्रयोग नही हुआ था। गांव के बुर्जगों ने बताया कि उस समय प्रशासन ने रस्सा डालकर व हाथ उठवाकर चुनाव करवाया था। इस चुनाव में रेखसिंह दुलड़ व थानाराम सरपंच प्रत्याशी थे। चुनाव अधिकारी ने एक रस्सा बांध दिया। फिर कहा कि रेखसिंह के वोटर रस्सा के इधर तथा थानाराम के वोटर रस्सा के उधर आकर हाथ उठाकर समर्थन करे। रेखसिंह दूलड़ की अधिक लोगों हाथ उठाकर समर्थन दिया। जिसके परिणाम रेखसिंह को विजयी घोषित कर सरपंच बनाया गया था। उस समय पंचायत में कुल 15 गांव शामिल थे।

450 साल पुराना इतिहास

गांव का इतिहास साढ़े चार सौ साल से भी अधिक पुराना है। बताया जाता है कि भोजा जाट यहां आकर बसे और उनके नाम पर ही गांव का नाम भोजासर पड़ा। आज यहां करीब 900 घर और 4700 की आबादी है। यह गांव मुख्यत: जाट बाहुल्य है, जिनमें मील, महला, गढ़वाल, शेशमा, बलौदा, पुनियां और झाझड़िया गोत्र प्रमुख हैं।


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