
Rajasthan News: भीतरी शहर स्थित कटला बाजार स्थित अचलनाथ महादेव आस्था का प्रमुख केन्द्र है। यहां ऐसी परंपरा है कि मंदिर में स्थापित प्रमुख पीले रंग के स्वयंभू शिवलिंग पर आमजन जल नहीं चढ़ाते हैं। यहां शिवलिंग पर केवल नागा साधु-संत व मंदिर मंहत ही जल चढ़ा पूजा करते है। यह परंपरा करीब 506 साल से चली आ रही है। यह भी खास बात है कि जल भी इसी शिवलिंग के साथ मिली बावड़ी का अर्पित किया जाता है, जो आज भी मौजूद है, लेकिन वहां जाना प्रतिबंधित है। जोधपुर के तत्कालीन राव गांगा व उनकी पत्नी ने संवत 1531 में शिवालय का निर्माण करवाया। तब शिवलिंग की जगह परिवर्तित करने का प्रयास हुआ, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. शिविलिंग अचल रहा, तब से अचलनाथ महादेव का नामकरण हुआ।
मंदिर में नागा साधु-महंतों की यहां कई समाधियां बनी हुई हैं, जो इस मंदिर में तपस्या करते थे। बताया जाता है कि महंत चैनपुरी ने अंर्तदृष्टि से पता कर बताया कि राव गांगा की आयु 20 वर्ष ही है। तब उन्होंने दो अन्य महंतों के साथ तपोबल से अपनी आयु का समय राव गांगा को दिया। इसके प्रति कृतज्ञता दिखाते हुए रावगांगा ने मंदिर की जिम्मेदारी महंतों को सौंप दी थी। यह परंपरा आज तक चली आ रही है कि अचलनाथ महादेव के शिवलिंग की पूजा सिर्फ साधु महंत ही कर रहे हैं।
महंत मुनिश्वर गिरी महाराज ने बताया कि करीब 506 साल से भी पहले इस स्थान पर गाय स्वत: ही अपना दूध देने लगी थी। साधुओं ने जब उसे देखा तो ध्यान करने पर पता चला कि वहां पर शिवलिंग है। 1977 में यहां नेपाली बाबा ने मंदिर का पूरा जीर्णोद्र्धार करवाया। उन्होंने प्राचीन अचलनाथ महादेव शिवलिंग के पास ही नर्मदा से लाकर एक शिवलिंग स्थापित किया। साधु-महंतों की सभी समाधियों पर यहां शिवलिंग बने हुए हैं।
अचलनाथ महादेव मंदिर का 506वां पाटोत्सव मंगलवार को महन्त मुनेश्वर महाराज के सानिध्य में मनाया जाएगा। इस अवसर पर पूजन व महारुद्राभिषेक कर मंदिर को सजाया जाएगा। शाम को भंडारा का आयोजन होगा। कार्यक्रम में महंत मुनेश्वर गिरी के शिष्य व मंदिर के उत्तराअधिकारी कंचनगिरी व सैनाचार्य अचलानन्द गिरी भाग लेंगे। मंदिर के प्रवक्ता कैलाश नारायण ने बताया कि मंगलवार को रात 8 से 10.30 बजे तक मंदिर एक तरफा कटला बाजार की तरफ से खुलेगा।
Published on:
11 Jun 2024 10:58 am
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