गांव के दर्जनों घरों व ढाणियों में लोग घर में उगे पेड़ से तोड़कर ही आम खाते हैं तथा यहां आम तो आम बात होकर रह गई। यह संभव हुआ गांव के निवासी पूर्व कैबिनेट मंत्री रामनारायण डूडी के प्रयासों से नहरी पानी पहुंचने के बाद। बरसों से पेयजल संकट से जूझ रहे रतकुड़िया गांव के कई लोगों ने व्यर्थ बहने वाले पानी का सदुपयोग कर न केवल अपने घर-बाड़ों में बगीचे लगाए हैं, बल्कि कइयों ने आम के पेड़ पनपाकर कमाल कर दिया है।
डार्क जोन एरिया, फिर भी लहलहा रहे पेड़:
रतकुड़िया से लेकर बनाड़ तक का इलाका रेतीला व डार्कजोन एरिया है। माणकलाव-खांगटा पेयजल परियोजना आने के बाद यहां पानी पहुंचा। तब से हालात बदल गए।
अधिकांश घरों में नजर आते हैं ये पेड़:
सबसे पहले डूडी एवं उनके भतीजे व रतकुड़िया सरपंच विरेन्द्र डूडी के पिता बुधाराम डूडी ने घर के सामने तरह-तरह के पेड़-पौधे लगाए। उन्होंने घर में आम, अनार, नींबू, पपीते, सेब व चीकू के पौधे भी लगाए। समय के साथ ये पौधे बड़े हुए और फल भी देने लगे।
फिर इन फलदार पेड़ों एवं खासकर आम के पेड़ों को देखकर ग्रामीणों ने भी ऐसा करना शरू किया। देखते ही देखते गांव के लगभग हर दूसरे घर में छोटी-मोटी बगिया के साथ इक्का-दुक्का आम के पेड़ नजर आने लगे और आज लगभग अधिकांश लोगों के घरों के आसपास व बाड़ों में अन्य पेड़-पौधों के साथ आम के पेड़ लगे नजर आते हैं।
हमारे गांव व आसपास इलाके में लोगों ने बरसों तक पेयजल संकट झेला है और लोगों को पानी का मोल पता है। लोगों ने नहाने-धोने में व्यर्थ होने वाले पानी का सदुपयोग करने के लिए घर-घर पेड़-पौधे लगाने शुरू किए और फालतू बहने वाले पानी से इनकी सिंचाई करने लगे। आज दर्जनों घरों में आम के पेड़ लगे हैं।
- रामनारायण डूडी, पूर्व राजस्व मंत्री