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Makhana Farming : राजीव गांधी केनाल का पानी आने और वर्तमान में बारिश भी भरपूर होने से अब जोधपुर और इसके आसपास मखाना की खेती करने की संभावनाएं जग रही हैं। कायलाना, तख्तसागर, उम्मेद सागर, गुलाब सागर, रानीसर, पदमसर सहित शहर की बावड़ियों में मखाने पर प्रयोग किए जा सकते हैं। ग्लूटेन फ्री होने और डायबिटीज के प्रति रोग प्रतिरोधकता ने इसके महत्व को बढ़ा दिया है। जानकारों का कहना है कि मखाना की खेती के लिए पानी अधिक चाहिए। इसलिए अभी तक थार प्रदेश में किसी ने मखाने की खेती का प्रयास नहीं किया है, लेकिन वर्तमान में मानसून बारिश की अत्यधिक तीव्रता और पश्चिमी विक्षोभों से मिल रही अच्छी बारिश से मखाने की खेती की जा सकती है।
मखाने का पौधा कमल के साथ होता है। कमल के जैसा होने के कारण बोलचाल की भाषा में लोट्स सीड भी कहते हैं। इसकी पत्तियां बड़ी-बड़ी होती हैं, जिससे ये पूरे पानी को ढक देता है। मखाना उगाने के लिए तालाब चाहिए होता है।
मखाना एक ड्राई-फ्रूट और पोषक तत्वों की खान है। यह ग्लूटेन फ्री है। इसमें डायबिटीज प्रतिरोधकता के यौगिक एचबीएसी है। इसका ड्रग डिलीवरी में योगदान है। इसके साथ ही मखाना संवर्धन के साथ मत्स्य-पालन भी किया जा सकता है। वर्तमान में बिहार और आसपास के क्षेत्रों में ही मखाने की कटाई एवं इसकी प्रोसेसिंग, मार्केटिंग एवं इनसे बनने वाली विभिन्न रेसिपीज के उद्योग है। यहां मखाने की खेती के बाद रोजगार को भी बढ़ावा मिल सकता है। हाल ही में जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय की ओर से मखाने पर एक्सटेंशन लेक्चर का आयोजन किया था। एलएन मिथिला विवि के प्रोफेसर विद्यानाथ झा ने इसके महत्व पर प्रकाश डाला।
मखाने की खेती के लिए अधिक पानी चाहिए इसलिए अभी तक जोधपुर और आसपास के क्षेत्रों में इसके प्रयास नहीं किए गए हैं। अगर यहां कुछ तालाबों में इसका प्रयोग किया जाया तो अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। जिससे भविष्य में इसकी व्यविस्थत रूप से खेती की जा सकेगी।
प्रो ज्ञानसिंह शेखावत, वनस्पति विज्ञान विभाग, जेएनवीयू जोधपुर
Published on:
13 Oct 2024 06:17 pm
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