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खुद बनवाने के बावजूद रानी ने कभी नहीं किए राजरणछोडज़ी मंदिर में दर्शन, किले से करती थी आरती के दर्शन

locationजोधपुरPublished: Oct 25, 2018 10:10:58 am

Submitted by:

Harshwardhan bhati

सोजती गेट से जालोरी गेट के मुख्य मार्ग स्थित राजरणछोडज़ी मंदिर का इतिहास भी खासा रोचक है।

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जोधपुर. मारवाड़ का इतिहास रोचक तथ्यों से भरा पड़ा है। यहां की राजधानी रहा जोधपुर अपने मेहरानगढ़ दुर्ग के लिए प्रख्यात रहा है। यहां के राजाओं और उनसे जुड़ा इतिहास आज भी इतिहासकारों को रोमांचित कर देता है। ऐसा ही एक वाक्या है यहां की एक ऐसी महारानी का जिसने कभी भी दुर्ग के बाहर कदम नहीं रखा था। आज जब शरद पूर्णिमा के अवसर पर कृष्ण मंदिरों में भव्य आयोजन किए जा रहे हैं। भगवान कृष्ण को विभिन्न प्रकार से सजा कर विशेष भोजन परोसा जा रहा है। वहीं एक मंदिर ऐसा है जिसको बनवाने वाली रानी ने वहां जाकर कभी दर्शन नहीं किए थे।
सोजती गेट से जालोरी गेट के मुख्य मार्ग स्थित राजरणछोडज़ी मंदिर का इतिहास भी खासा रोचक है। जोधपुर रेलवे स्टेशन के बिल्कुल सामने 30 फीट ऊंचे इस मंदिर को देख कर हर कोई मारवाड़ी वास्तुकला की सराहना कर उठता है। इस मंदिर का निर्माण जामनगर रियासत के राजा जामवीभा की पुत्री और महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय की पत्नी राजकंवर ने करवाया था। ईस्वी 1854 में 9 साल की राजकंवर का ब्याह जसवंत सिंह की तलवार से किया गया था। बाकी की रस्में जालोर में की गई थी। यहां दुर्ग में कुछ समय रुकने के बाद वे वापस चली गई थीं। इसके बाद 13 साल की आयु में मुकलावे के बाद वे यहां वापस आईं और इसके बाद फिर कभी भी दुर्ग के बाहर तक नहीं गईं। इतिहासकार बताते हैं कि रानी जाडेजी प्रत्येक वर्ष 1 लाख तुलसी दल द्वारका के लिए भिजवाती थीं। यह काम उनके दहेज में साथ आए पंडित व कामदार करते थे।
अपने खर्चे से दी थी 1 लाख रुपए की राशि


वृद्धावस्था को देखते हुए रानी ने बाईजी के तालाब के पास लाल पत्थर से द्वारका के पुजारी की सलाह से काले पत्थर की भगवान कृष्ण की विशेष मूर्ति का निर्माण करवाया था। साल 1905 में यह मंदिर बन कर तैयार हो गया था। इसके निर्माण के लिए रानी ने अपने खर्च से 1 लाख रुपए दिए थे। रणछोड़ जी के नाम के आगे रानी का नाम राज जोडकऱ इस मंदिर का नामकरण राजरणछोडज़ी किया गया था। इसके निर्माण के बाद तुलसी दल का अर्पण यहीं किया जाने लगा। आश्चर्य की बात है कि रानी खुद कभी इस मंदिर में दर्शन करने नहीं गईं। बल्कि पुजारी आरती को मंदिर के पीछे की ओर ले जाते। रानी दुर्ग की प्राचीर से ही ज्योत के दर्शन करती थी। इसके बाद रानी ने आमजन के लिए पास ही में जसवंत सराय का निर्माण करवाया था।
डॉ मोहनलाल : एक नजर में

सूचना व जनसंपर्क विभाग के पूर्व उप निदेशक डॉ मोहनलाल गुप्ता, वर्तमान में राष्ट्रीय विधि विवि में जनसंपर्क अधिकारी पद पर कार्यरत हैं। उनकी अब तक विभिन्न विषयों पर 76 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। गूगल व एमेजॉन आदि प्लेटफॉर्म पर उनकी करीब 126 ई-बुक्स प्रकाशित हुई हैं। महाराणा कुम्भा पुरस्कार से सम्मानित गुप्ता यू-ट्यूब पर अपना चैनल भी चला कर लोगों को इतिहास व समसामयिक मुद्दों पर जानकारी प्रदान कर रहे हैं।

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