
Photo- Patrika
Latiyal mata temple : फलोदी की बसावट से पूर्व यहां कई नगर बसे और उजड़ गए, लेकिन 566 साल पहले अश्वनी मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी शारदीय नवरात्रि में फलोदी की स्थापना मां लटियाल का रथ रुकने के कारण हुई थी। इसी कारण नवरात्रि का फलोदी में खास महत्व है। मां लटियाल का मंदिर स्थापित होने के बाद बसा फलोदी नगर में मां लटियाल की छत्रछाया में विभिन्न विपरीत परिस्थितियों के बाद विभिन्न आपदाओं में सुरक्षित रहा है।
गौरतलब है कि मां लटियाल का मंदिर स्थापित होने के साथ ही यहां 566 साल पहले अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित की गई थी, जो वर्तमान में भी जल रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि ज्योति से निकलने वाला धुंआ कालिख नहीं देता, बल्कि केशर के रंग की तरह सुनहरा नजर आता है। जिसे स्थानीय लोग मां का आशीर्वाद ही मान रहे है। गौरतलब है कि 566 साल पहले फलोदी की स्थापना के समय मां लटियाल के मंदिर में प्रज्जवलित की गई अखण्ड ज्योति आज भी प्रज्ज्वलित है।
गौरतलब है कि फलोदी के वाशिंदों का इतिहास भी जैसलमेर से जुड़ा है। वहां तत्कालीन राजा से नाराज होकर मां लटियाल की प्रतिमा के साथ पुष्करणा समाज के पूर्वज व मां लटियाल के अनन्य भक्त सिद्धुजी कल्ला मां लटियाल के आदेश की पालना में ही जैसलमेर से पलायन कर जैसलमेर के आसनी कोट से रहवाना हो गए थे और जहां मां का रथ रूकेगा, वहीं अपने नए नगर की बसावट करने के संकल्प के साथ रवाना हुए थे और मां का रथ मां लटियाल के मंदिर परिसर में स्थित खेजड़ी के पेड़ में आकर अटक गया और फलोदी की बसावट यहां हो पाई।
राजाओं के राज में भी फलोदी की अपनी पहचान थी। फलोदी जोधपुर रियासत का हिस्सा रहा और उस समय भी राजाओं को फलोदी के भामाशाहों ने विपदा के समय आर्थिक मदद की। जिसके चलते यहां कभी टैक्स वसूली नहीं हुई।
गौरतलब है कि फलोदी शहर की बसावट व मंदिर निर्माण के समय खेजडी का पेड हरा-भरा था, जो अब भी 566 साल बाद भी हरा भरा है।
Published on:
03 Oct 2024 05:12 pm
बड़ी खबरें
View Allजोधपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
