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FDDI में शूज रिसर्च सेंटर की स्थापना, सरकारी कार्मिकों से लेकर आम जनता के जूतों पर रिसर्च करेंगे विद्यार्थी

देश में बनने वाले जूते, चप्पल और सैंडल पर अब जोधपुर में शोध किया जाएगा। सेना के जवानों से लेकर आम आदमी की जूती तक इस शोध में शामिल होगी। फुटवियर डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (एफडीडीआइ) जोधपुर में शूज रिसर्च सेंटर की स्थापना की जा रही है। सेंटर का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है।

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shoes research center established at FDDI jodhpur

FDDI में शूज रिसर्च सेंटर की स्थापना, सरकारी कार्मिकों से लेकर आम जनता के जूतों पर रिसर्च करेंगे विद्यार्थी

गजेन्द्र सिंह दहिया/जोधपुर. देश में बनने वाले जूते, चप्पल और सैंडल पर अब जोधपुर में शोध किया जाएगा। सेना के जवानों से लेकर आम आदमी की जूती तक इस शोध में शामिल होगी। फुटवियर डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (एफडीडीआइ) जोधपुर में शूज रिसर्च सेंटर की स्थापना की जा रही है। सेंटर का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। यहां शोध छात्रों के साथ विशेषज्ञ भारत में पहने जाने वाले विभिन्न तरह के जूतों पर अनुसंधान करेंगे। देश में यह पहला शूज रिसर्च सेंटर है। वर्तमान में देश में 12 एफडीडीआइ हैं, जिसमें से छह एफडीडीआइ को विभिन्न तरह के रिसर्च सेंटर के लिए चुना गया है।

जूते की सोल से लेकर गहराई तक होगा अनुसंधानरिसर्च सेंटर में जूतों की सोल से लेकर उसकी गहराई तक अनुसंधान किया जाएगा। देश में विभिन्न तरह की जलवायु शीत, शीतोष्ण, उष्ण, पहाड़ों, घाटियों पर रहने वाले लोगों के लिए अलग-अलग मिलीमीटर मोटाई के जूते चाहिए होते हैं। जूते में कुछ मिलीमीटर का माप बिगड़ जाने से ही ऑर्थोपेडिक समस्या पैदा हो जाती है जिसके लिए लोगों को डॉक्टर के चक्कर लगाने पड़ते हैं। जूते के सोल का मटेरियल पर भी रिसर्च होगा ताकि सोल लंबे समय तक बना रहे। इसके अलावा बेहतरीन लेस भी बनाई जाएगी जिससे उसकी उम्र बढ़ सकें।

40 से लेकर 50 डिग्री तापमान सहने वाले बनेंगे जूते
शूज रिसर्च सेंटर में सियाचिन ग्लेशियर जैसे स्थानों पर जहां तापमान -40 डिग्री तक चला जाता है, सहने के लिए जूते बनाए जाएंगे। सेना के जवानों को ऐसे जूतों की जरुरत है। छत्तीसगढ़ के दुर्गम इलाकों में ड्यूटी देने वाले सीआरपीएफ सहित अन्य अद्र्धसैनिक बलों के जवानों को कठोर सोल वाले जूते चाहिए। वहां जूतों में कीलें अधिक घुसती हैं। भारत-तिब्बत सडक़ संगठन के जवानों को ग्लेशियर पर आसानी से चढऩे वाले जूते चाहिए। साथ ही फलोदी और जैसलमेर की 50 डिग्री झेलने वाले जूते भी तैयार किए जाएंगे। कोयला, कॉपर और इस्पात की खानों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए विशेष जूते और स्कूली बच्चों के जूतों पर भी शोध होगा।

इनका कहना है
‘हमारे कैंपस में शूज रिसर्च सेंटर की स्थापना की जा रही है। फिलहाल इसका संचालन नोएडा से हो रहा है। ’
अशोक चौधरी, कार्यकारी निदेशक, एफडीडीआई जोधपुर

12.6 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा जूतों का बाजार
भारत में वर्ष 2017-2018 में 225.70 करोड़ जूतों की जोड़ी का उत्पादन किया गया। देश में 50 हजार 750 करोड़ का सालाना जूतों का बाजार है जो हर साल 12.6 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। वर्ष 2023 तक इसके 84 हजार 770 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। लेदर एक्सपोर्ट काउंसिल के मुताबिक निर्यात होने वाले लेदर में 43.5 प्रतिशत जूते होते हैं लेकिन फिर भी विश्व में भारत का लेदर भाग केवल 3 प्रतिशत है। इसे बढ़ाने के लिए जूतों पर अनुसंधान की जरुरत है।