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सावधानः कहीं आपकी मिठाई पर चांदी की जगह एल्यूमिनियम का बर्क तो नहीं, ऐसे करें पहचान

त्योहारी सीजन पर चमकीली परत लगी मिठाइयां सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है। वजह मुनाफाखोरी के लिए कई दुकानों पर चांदी के वर्क की बजाए एल्यूमिनियम का वर्क लगाए जा रहे हैं।

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त्योहारी सीजन पर चमकीली परत लगी मिठाइयां सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है। वजह मुनाफाखोरी के लिए कई दुकानों पर चांदी के वर्क की बजाए एल्यूमिनियम का वर्क लगाए जा रहे हैं। चांदी की तुलना में एल्युमिनियम वर्क सस्ता होने के कारण इसकी बिक्री भी जोरों पर है। मिठाई के साथ एल्यूमिनियम सीधे पेट में जाने से किडनी और शरीर के अंगों पर सीधा असर पड़ता है। कमाई के लालच में कस्बों व ग्रामीण क्षेत्र में मिठाई वाले धड़ल्ले से एल्युमिनियम के वर्क का उपयोग कर रहे हैं। चिकित्सकों के अनुसार एल्युमिनियम का सर्वाधिक असर लीवर और गुर्दे पर असर पड़ता है। शरीर में एल्यूमिनियम के अधिक मात्रा में जाने से शरीर में कई घातक रोग भी हो जाते हैं। असली वर्क दिमाग की नसों को आराम देता है व सेहत के लिए फायदेमंद होता है।

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महंगा पड़ता है चांदी का वर्क
चांदी का वर्क के 800 से 1000 रुपए में सिर्फ 160 पीस मिलते हैं जबकि एल्युमिनियम वर्क महज 150 से 350 रुपए में आसानी से 100 पीस मिल जाता है। इस कारण कई दुकानदार एल्यूमिनियम का वर्क खरीदते हैं। त्योहार पर मिठाई की बिक्री जोरों पर होती है। ऐसे में ग्राहक भी वर्क पर ध्यान नहीं देते हैं। नतीजन उन्हें अपनी सेहत खराब करनी पड़ जाती है।

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ऐसे पहचानें असली-नकली
आम लोग भी मिठाई में चांदी के वर्क को लेकर उसमें मिलावट की पहचान कर सकते हैं। जहां एल्युमिनियम फॉयल लंबे समय तक चमकीला और चमकदार रहता है, वहीं चांदी हवा के सम्पर्क में आते ही ऑक्सीकृत हो जाती है जिससे वह हल्की लाल होने के साथ सफेद रंग फीका पड़ जाता है। खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम के तहत खाने योग्य चीजों में उपयोग के लिए चांदी की पन्नी 99.9 प्रतिशत शुद्ध होनी चाहिए। एल्युमिनियम फॉयल सफेद-ग्रे होता है और सांद्र हाइड्रोक्लोरिक एसिड में आसानी से घुलनशील होता है, जबकि सिल्वर फॉयल नहीं होता है। मिठाइयों पर गलत फॉयल का इस्तेमाल करने से एक्यूट गैस्ट्राइटिस, गंभीर डायरिया, पेचिश, डिहाइड्रेशन और किडनी में सूजन हो सकती है।