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मारवाड़ के ‘सेलुलर’ माचिया की उपेक्षा

आज माचिया की दुर्दशा हो रही है। हम इसे भूलते जा रहे हैं। यह आजादी के पावन संकल्प का हस्ताक्षर है। एक ऐसा शिलालेख है, जो हमारी आने वाली नस्लों का प्रेरणा पुंज है। यह कोई साधारण जेल नहीं थी, अंग्रेजी हुकूमत की यातनाओं का जीता जगता स्मारक है।

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Story of Jodhpur Machia Jail

अंग्रेजों की दासता से मुक्ति का हमारा एक कालजयी इतिहास है। भारत के कोने-कोने में परतंत्रता के खिलाफ महासंग्राम हुआ था। हमारे अमर शहीदों ने फांसी के फंदों को जयमाला की तरह पहना था। हमारे स्वतंत्रता सेनानी जेल की काल कोठरियों से डरे नहीं थे। स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने हर तरह का षड्यंत्र रचा। यही नहीं ऐसी जेलें तैयार की गई, जहां स्वतंत्रता सेनानियों को हर तरह की यातना दी जा सके।

इनमें प्रमुख है, अंडमान की सेलुलर जेल, इलाहबाद की नैनी सेंट्रल जेल, हिमाचल की डगशाई आदि। सही मायने में ये सब आधुनिक भारत के तीर्थ हैं। एक ऐसा ही तीर्थ हमारे मारवाड़ में भी है। माचिया का किला। कहने के लिए यह किला है पर हकीकत में बीहड़ में एक जेल थी। हकीकत में यह एक शिकारगाह था, जिसे जेल में परिवर्तित कर दिया गया था। इस जेल में अनेक स्वतंत्रता सेनानी कैद रहे हैं।

35 क्रांतिकारी माचिया फोर्ट में कैद रहे। सन 1942 से 1947 तक घोर यातनाएं सही हैं। कोड़ों से मारा जाता था, जानवरों के खानों से बदतर खाना मिलता था। इनमें प्रमुख थे रणछोड़दास गट्टाणी, तारकप्रसाद व्यास, श्रीकृष्ण कल्ला, राधाकृष्ण बोहरा तात, बालमुकंद बिस्सा, कालूराम मूंदड़ा, इंद्रमल फोफलिया, संपतलाल लुंकड़, हरिभाई किंकर, मौलाना अतर मोहम्मद, हुकम राज मेहता आदि थे।

आजादी के मतवालों ने एक बार यहां भूख हड़ताल भी की थी। जयनारायण व्यास के अथक प्रयासों के बाद भूख हड़ताल खत्म हुई। आज माचिया की दुर्दशा हो रही है। हम इसे भूलते जा रहे हैं। यह आजादी के पावन संकल्प का हस्ताक्षर है। एक ऐसा शिलालेख है, जो हमारी आने वाली नस्लों का प्रेरणा पुंज है। यह कोई साधारण जेल नहीं थी, अंग्रेजी हुकूमत की यातनाओं का जीता जगता स्मारक है।

सरकार की विभिन्न एजेंसियों के समन्वय के अभाव में इसकी दुर्दशा हो रही है। माचिया का किला वन विभाग की जमीन पर है। वन विभाग का काम देखरेख होता नहीं है। जिन एजेंसियों का काम इसकी देखरेख का है, वह वन विभाग की बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं। माचिया में छोटा मोटा काम बरसों पहले हुआ था पर उसके बाद कुछ नहीं हुआ। इसके विकास के लिए पिछली सरकार में बजट घोषणा हुई। बजट भी आया दो करोड़ का पर सरकारी एजेंसियों की लालफीताशाही के चलते काम धेले का भी नहीं हुआ।

आज माचिया जेल को विशेष दर्जा देने की आवश्यकता है। जिस तरह अंडमान निकोबार की सेलुलर जेल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है, उसी तरह माचिया किला जेल को राजकीय स्मारक घोषित कर इसका संरक्षण किया जाए। इस बार सरकार जोधपुर में स्वतंत्रता दिवस मना रही है। उसे मारवाड़ के इस आधुनिक तीर्थ को बिना देर किए राजकीय स्मारक घोषित कर देना चाहिए। तभी स्वतंत्रता दिवस पर सेनानियों को हमारी सही मायने में विनम्र श्रद्धांजलि होगी।


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