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2.5 साल की मासूम की खुली रह गई दिल की खिड़की, डॉक्टरों ने बगैर चीर-फाड़ ‘छतरी’ लगाकर बंद किया

ह्दय रोग विभागाध्यक्ष डॉ. रोहित माथुर की टीम ने 'डिवाइस क्लोजर' तकनीक का इस्तेमाल किया, ऑपरेशन के 2 बाद बच्ची पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौटी

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MDM hospital

फाइल फोटो- पत्रिका

सिर्फ आठ किलो वजन, हर दूसरे हफ्ते निमोनिया और सांस लेने में तकलीफ, यह थी जोधपुर की 2.5 साल की मासूम की जिंदगी। डॉक्टरों ने पाया कि बच्ची को एरोटा प्लमोनरी विंडो (एपी विंडो) नामक एक बेहद दुर्लभ जन्मजात हृदय रोग है। यह बीमारी बच्चों में केवल 0.2 प्रतिशत मामलों में होती है।

इस रोग में एरोटा यानी महाधमनी (यह ऑक्सीजनीकृत खून को हार्ट से शरीर के अन्य अंगों तक ले जाती है) और पल्मोनरी आर्टरी (अशुद्ध खून को हार्ट से फेफड़ों में ले जाती है) के बीच छेद हो जाता है, जिससे शरीर में ऑक्सीजन युक्त और ऑक्सीजन रहित खून मिक्स हो जाता है। नतीजा दिल पर अतिरिक्त दबाव, बार-बार निमोनिया और कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर का खतरा।

डिवाइस क्लोजर तकनीक का इस्तेमाल

आमतौर पर इसका इलाज ओपन-हार्ट सर्जरी से होता है, लेकिन मथुरा दास माथुर अस्पताल ने बिना चीरफाड़ के यह कर दिखाया। ह्दय रोग विभागाध्यक्ष डॉ. रोहित माथुर की टीम ने 'डिवाइस क्लोजर' तकनीक का इस्तेमाल किया। एंजियोग्राफी की तरह दिल के अंदर कैथेटर के ज़रिए एक छतरी जैसी डिवाइस लगाई, जिसने छेद को बंद कर दिया।

सबसे खास बात यह रही कि ऑपरेशन के 2 बाद बच्ची पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौट गई। वो भी मुख्यमंत्री आयुष्मान योजना के तहत बिना एक रुपए खर्च किए। डिवाइस क्लोजर प्रोसीजर में डॉ माथुर के अलावा, कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अनिल बारूपाल, डॉ. युद्धवीर सिंह, मेडिकल ऑफिसर डॉ. प्रदीप और निजी अस्पताल के डॉ. नीरज अवस्थी की देख रेख में किया गया।

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निटिनॉल एलॉय से बनी है छतरी

बच्ची के दिल में लगी छतरी निटिनॉल एलॉय से बनी है। यह एलॉय निकल और टाइटेनियम से बना है। निटिनॉल से बायो डिवाइस बनाए जाते हैं जो शरीर के लिए बेहतर रहते हैं। यह छतरी पूरे जीवन बच्ची के दिल की रक्षा करती रहेगी।