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राजस्थान के किसान ने कर दिया बड़ा कमाल, बस एक साल में खेतों से गायब हो जाएगी दीमक !

खेतों में खड़ी फसलों को नुकसानदेह साबित होने वाली दीमक (उदई) (dimak ko bhagane ka trika) को अब जैविक पद्धति से तैयार नुस्खे से नष्ट किया जा सकता है।

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खेतों में खड़ी फसलों को नुकसानदेह साबित होने वाली दीमक (उदई) (dimak ko bhagane ka trika) को अब जैविक पद्धति से तैयार नुस्खे से नष्ट किया जा सकता है। इस उपाय से किसानों को दीमक से तत्काल राहत मिलेगी, वहीं अगले वर्ष में पूरे खेत से दीमक गायब हो जाएगी। इस नुस्खे को कृषि विभाग ने जांच के लिए प्रयोगशाला में भेजा है। दीमक नियंत्रण का नुस्खा तैयार करने वाले जैतीवास गांव के प्रगतिशील किसान शंभूसिंह ने अब तक कई नुस्खे तैयार किए। यह प्रयोग भी उसी कड़ी का हिस्सा है। इससे पहले किसान ने खेत में यज्ञशाला बनाकर ऋषि खेती से अधिक उत्पादन लेकर सभी को चौंकाया। अब इस देसी नुस्खे की जानकारी लेकर सहायक कृषि अधिकारी ने नमूनों को दुर्गापुरा स्थित प्रयोगशाला में भेजा है।

यूं होता है असर
गोबर दीमक का पसंदीदा खाद्य पदार्थ है। ऐसे में दीमक कंडों के पास आ जाती है। कंडों को खाने के बाद दीमक की भोजन पाचन की क्षमता और क्रियाशीलता घट जाती है। सर्वविदित है कि श्रमिक दीमक भोजन लेकर रानी दीमक के पास जाती है। भोजन खाने से रानी दीमक बीमार होकर समाप्त हो जाती है। इस प्रकार दो वर्षों में खेत से पांच से सात फीट गहराई पर रहने वाली दीमक की कॉलोनियां समाप्त हो जाती हैं।

यह है नुस्खा
500 ग्राम सूक्ष्म जीवाणु खाद, 250 ग्राम हर्बल अर्क और 250 ग्राम हवन की राख को मिलाकर एक बाल्टी पानी में डाला जाता है। ग्वारपाठा को सड़ा-गला कर हर्बल अर्क तैयार किया जाता है। इस पानी से गोबर व लकड़ी का बुरादा मिलाकर कंडे (छाणे) बनाकर कंडों को खेत में डेढ़ इंच खोदकर रख दिया जाता है। एक बीघा में 25 कंडे पर्याप्त होते हैं।

रसायन बेअसर
स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह रासायनिक कीटनाशक से दीमक नियंत्रण अब बेअसर होने लगा है। जैविक खेती करने वाले किसान तो खेतों में रासायनिक छिड़काव करते ही नहीं है। जिन खेतों में रसायन छिड़काव से दीमक नियंत्रण के प्रयास किए जा रहे हैं वहां भी लगातार छिड़काव होने से इसका असर अब नहीं के बराबर रह गया है।

किसान की यह विधि कारगर है। जांच के दौरान उसके खेत में दीमक बहुत कम मात्रा में पाई गई। नुस्खे से दीमक में अलग-अलग तरह के बैक्टीरिया फेल जाते हैं और उनकी संख्या घट जाती है। नमूनों को दुर्गापुरा प्रयोगशाला में भेजा गया है।
- महेंद्रराम, सहायक कृषि अधिकारी, बिलाड़ा

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