
पंजाब का कुख्यात गैंगस्टर लॉरेंस विश्नोई अपने सोपू ग्रुप के माध्यम से युवा पीढ़ी को अपराध के दलदल में धकेल रहा है। क्रांतिकारी विचारों से आकर्षित करने के बाद वह ऐसे व्यक्तियों को अपने साथ मिला लेता है, जिनके पास बड़ी संख्या में युवक हों और जो रुपए के लालच में कुछ भी करने के लिए तैयार हों। उसका लक्ष्य आर्थिक रूप से कमजोर तबके के युवाओं को रुपए का लालच देकर न सिर्फ खुद का मकसद पूरा करना होता है, बल्कि रंगदारी वसूलने के लिए दहशत फैलाना भी होता है। पिछले महीने सरदारपुरा सी रोड पर मोबाइल शोरूम के बाहर व्यवसायी की गोली मार कर की गई हत्या की जांच में यह तथ्य सामने आया है।
रुपए तो मिले नहीं, हत्या के केस में और फंसे
लॉरेंस ने बेरोजगार व आर्थिक रूप से कमजोर युवकों को अवैध वसूली कर के रुपए कमाने के सब्जबाग दिखाए। उन्हें जरूरत के हिसाब से लालच देकर गोलियां चलाने के लिए तैयार किया था। नई सड़क हनुमान भाखरी निवासी विनोद उर्फ विक्की, हरीश प्रजापत, फारूक अली, श्यामसुंदर प्रजापत व अन्य इसी लालच में हत्या के केस में जेल की सलाखों में पहुंचे हैं। अचरज की बात तो यह है कि उन्हें फूटी कौड़ी भी नहीं मिली।
जेल बनी मीटिंग पॉइंट
जोधपुर सेन्ट्रल जेल में न्यायिक अभिरक्षा के दौरान लॉरेंस व उसके गुर्गों ने स्थानीय बदमाशों को निशाना बनाया। उन्हें लॉरेंस से मिलाया और ऊंचे ख्वाब दिखाए। शहर में दहशत फैलाने वाला मुख्य शूटर हरेन्द्र उर्फ हीरा जाट और वासुदेव इसरानी हत्याकाण्ड में सक्रिय भूमिका निभाने वाला खिमांशु गहलोत व मण्डोर थाने का हिस्ट्रीशीटर पवन सोलंकी जेल में ही उससे सम्पर्क में आए थे। जमानत पर रिहा होकर बाहर आने पर लॉरेंस व गुर्गों ने उसे काम में लेना शुरू कर दिया। खिमांशु ने भोमाराम को न सिर्फ हरेन्द्र से मिलाया, बल्कि अपने साथियों को हत्याकाण्ड में मदद के लिए लगा कर फंसा दिया। जबकि पवन सोलंकी ने हरेन्द्र व अन्य को जोधपुर में छुपने की जगह उपलब्ध करवाई थी।
एक हत्या के लिए तीन ग्रुप हुए थे सक्रिय
रंगदारी के लिए दहशत फैलाने वाला लॉरेंस व उसके गिरोह ने युवा पीढ़ी को खुद के सोपू गिरोह से जोड़ा था। उन्होंने गोलियां चलाने व मोबाइल व्यवसायी की हत्या के लिए स्थानीय बदमाशों की मदद ली। वासुदेव की हत्या में लॉरेंस के अलावा खिमांशु व पवन सोलंकी के साथियों ने मदद की थी।
आंकड़ा एक दर्जन पार
पुलिस कमिश्नर अशोक राठौड़ का कहना है कि लॉरेंस लालच देकर युवाओं को अपराध के दलदल में फंसा रहा है। उन्हें रुपए तो मिल नहीं रहे, उलटा वे कानून के शिकंजे में फंस रहे हैं। वासुदेव हत्याकाण्ड की प्रारम्भिक जांच में आधा दर्जन लोगों के शामिल होने का अंदेशा था, लेकिन इनके पकड़ में आने के बाद यह आंकड़ा एक दर्जन से बाहर जा चुका है। परत दर परत खुलासे से यह बात सामने आई है कि प्रत्येक युवक के पकड़ में आने पर दो-तीन और युवकों की भूमिका सामने आ रही है।
Published on:
29 Oct 2017 01:46 pm
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