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कबाड़ वाहनों का हो रहा इस्तेमाल, वन्य जीवों की जान से खेल रहा वन विभाग

एक तरफ वनविभाग अक्टूबर माह में वन्यप्राणी सप्ताह मनाते हुए आमजन को वन्यजीवों को बचाने और उनके संरक्षण का संदेश दे रहा है तो दूसरी तरफ जोधपुर जिले में हर साल करीब दो हजार से अधिक घायल वन्यजीवों को बचाने और शिकार की रोकथाम के लिए 15 से 17 साल पुराने खस्ताहाल वाहनों का उपयोग कर वन्यजीवों के जीवन के साथ क्रूर मजाक किया जा रहा है।

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वनविभाग वन्यजीव मंडल की ओर से वर्ष 2005 से प्रयुक्त रेस्क्यू वाहन

जोधपुर । एक तरफ वनविभाग अक्टूबर माह में वन्यप्राणी सप्ताह मनाते हुए आमजन को वन्यजीवों को बचाने और उनके संरक्षण का संदेश दे रहा है तो दूसरी तरफ जोधपुर जिले में हर साल करीब दो हजार से अधिक घायल वन्यजीवों को बचाने और शिकार की रोकथाम के लिए 15 से 17 साल पुराने खस्ताहाल वाहनों का उपयोग कर वन्यजीवों के जीवन के साथ क्रूर मजाक किया जा रहा है।

क्या है नियम : विभाग में 10 साल या ढाई लाख किमी चलने के बाद नियमानुसार वाहन को ऑक्सन कर दिया जाता है। लेकिन जोधपुर वनविभाग की ओर से वन्यजीवों को बचाने में प्रयुक्त दोनों ही रेस्क्यू वाहन क्रमश: 17 साल व 15 साल पुराने और करीब 15 लाख से अधिक किमी चलने के बाद पूरी तरह बाकायदा नाकारा घोषित हो चुके है। दोनों ही रेस्क्यू वाहनों के अब तो कंपनी में भी कलपुर्जे मिलना दूभर हो चुके है।

हर साल 2000 से अधिक होते है घायल : नागौर, पाली, बाड़मेर के सीमा क्षेत्र सहित जोधपुर जिले के वन्यजीव बहुल क्षेत्रों से हर साल श्वान के हमलों , सड़क दुर्घटना, खेतों की तारबंदी व अन्य कारणों से करीब दो हजार चिंकारा व काला हिरण सहित नीलगाय घायल होते है। ऐसे में रेस्क्यू टीम अथवा उडऩदस्ता समय पर नहीं पहुंचने से वन्यजीव प्रेमियों व ग्रामीणों के आक्रोश का सामना करना पड़ता है। कई बार वाहन रास्ते में बंद होने पर घायल वन्यजीव दम भी तोड़ चुके है तो कई बार दूसरा वाहन मंगवाकर वन्यजीवों की जान बचाई गई है।